सपने देखो साहस करो..
उनके पास वह सब कुछ है, जिन्हें पाकर वे खुशी-खुशी जिंदगी गुजार सकती हैं, पर उनके लिए असली खुशी है, अपने सपनों के लिए संघर्ष करना। लीक से अलग हटकर ऐसी राह बनाना, जिसमें चुनौती हो, जोखिम हो..। वर्ल्ड माउंटेन डे पर मिलिए देश की ऐसी ही महिलाओं से, जिन्होंने हिमालय फतह करके दिखा दिया कि हौसला है त
उनके पास वह सब कुछ है, जिन्हें पाकर वे खुशी-खुशी जिंदगी गुजार सकती हैं, पर उनके लिए असली खुशी है, अपने सपनों के लिए संघर्ष करना। लीक से अलग हटकर ऐसी राह बनाना, जिसमें चुनौती हो, जोखिम हो..। वर्ल्ड माउंटेन डे पर मिलिए देश की ऐसी ही महिलाओं से, जिन्होंने हिमालय फतह करके दिखा दिया कि हौसला है तो सब है..
जब ठान लिया तो पीछे मुड़ना खुद के साथ धोखा है। अपने इरादों के साथ छलावा है..। हिमालय के अन्नपूर्णा रेंज की सबसे मुश्किल चोटी थोरांग ला पास (17,769 फीट) पर चढ़ाई करना कितना जोखिम भरा हो सकता है, इस बात का अंदाजा उन्हें वहां जाकर हुआ, पर वे इससे तनिक भी विचलित नहीं हुई। जोश उफान पर था। मंजिल पर पहुंचने की इतनी जल्दी थी कि वे काली-अंधेरी रात में भी अपना सामान पीठ पर लादे चढ़ाई के लिए निकल पड़ीं। वहां मौजूद गाइड की रात में चढ़ाई न करने की चेतावनी के बावजूद उनके कदम नहीं रुके। उन्हें जोखिम से खेलने की आदत है। वे अ'छी तरह जानती हैं कि डर के आगे जीत है..। वरिष्ठ पर्वतारोही बछेंद्री पाल के साथ महिला शूरवीरों का यह जत्था जब अपनी मंजिल पर पहुंचा तो उनके दिल में सुकून था..। वही सुकून, जो अपने बलबूते अपना सपना सच करने के बाद महसूस होता है..।
खुद को दी चुनौती
नैना धाकड़, छत्तीसगढ़
जगदलपुर छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित इलाका है। सहमा हुआ छोटा-सा गांव, जहां लड़कियां ऊंचे सपने देख सकती हैं, पर उन्हें पूरा करने के लिए कदम बढ़ाना बड़ी चुनौती है। पर्वतारोहण की तो बात ही बेमानी है। पर्वतारोहण में प्रशिक्षण के बारे में मां से जिक्र किया तो लगभग डांटते हुए बोलीं पागल हो गई क्या! शायद उन्हें आशंका थी कि मैं इतना ऊंचा न उड़ने लगूं कि अचानक मेरे पंख कतर देने की पीड़ा खुद मुझे ही झेलनी पड़े। स्थानीय स्तर पर पर्वतारोहण में झंडे गाड़ने लगी और टीवी पर लोग मुझे देखने लगे। यह देखकर पिताजी को पता चला कि मैं यह भी कर सकती हूं। अब मैं उनकी अच्छी और बहादुर बेटी थी। किताबों में बछेंद्री पाल के बारे पढ़ा था। टीवी पर उन्हें देखती तो उनके जैसा बनने का सपना देखने लगती। कहां मालूम था कि अपनी आदर्श महिला से जल्द ही मिल पाऊंगी..। एक दिन मुझे टाटा स्टील के एडवेंचर ट्रेनिंग प्रोग्राम की तरफ से ट्रेनिंग का ऑफर मिला। सपना सच होने की राह पर जो था। बछेंद्री पाल के साथ एवरेस्ट अभियान पर गई। यह मेरे जीवन के सबसे कीमती क्षणों में से एक है। ऐसा लगता है जीवन की हर मुश्किल को बौना कर सकती हूं..। अपने राज्य में अब मुझे हर कोई जान गया है। छत्तीसगढ़ की उड़नपरी के तौर पर भी लोग मुझे जानते हैं। सच है, मन में सोचने और कर दिखाने-दोनों में बहुत फर्क होता है। सबसे मुश्किल होता है खुद को चुनौती देना और कामयाब हो जाना।
मन की ताकत
शोभा हंसदा, झारखंड
मेरी बहन झानो हंसदा आर्चरी की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। वही मेरी प्रेरणा हैं, पर एक ताकत आती है अंदर से, जो आपको आगे बढ़ने के लिए लगातार प्रेरित करती है..। यह ताकत मैं हमेशा महसूस करती हूं। मैं सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर काम करती हूं। इस जॉब ने मुझे कठिनाइयों, जीवन की परेशानियों से लड़ने का हौसला भी दिया है, पर उस क्क्त खुद की ताकत को पहचान गई, जब मुझे एडवेंचर माउंटेनियरिंग के प्रशिक्षण के लिए चुना गया। मैं कामयाबी की ओर बढ़ रही थी। एक सिक्योरिटी गार्ड से माउंटेनियर बनने तक का सफर चुनौतीपूर्ण था, पर यह सब हो रहा था। जब टाटा स्टील के अन्नपूर्णा अभियान के लिए मेरा चयन हुआ तो किसी ने आश्चर्य नहीं किया। घरवालों ने भी सपोर्ट किया। यह मेरे लिए गर्व की बात थी कि मुझे चुने जाने में मेरे अनुभव व स्टेटस को नहीं, केवल मेरे हौसले और हिम्मत को देखा गया। दरअसल स'चाई है यह, जो महिलाएं कुछ करने के लिए साधन न होने, अनुभव न होने या घर-परिवार की जिम्मेदारियों की दुहाई देती हैं, उन्हें यह समझना होगा कि अपने इरादे को कमजोर न पड़ने दीजिए। जब इरादा पक्का होगा तो विरोधी भी साथ देंगे और परिस्थितियां भी आपके अनुकूल होती जाएंगी।
असंभव कुछ भी नहीं
ज्योति शर्मा, दिल्ली
यू कैन डू ज्योति, गो अहेड- बछेंद्री मैम की यह बात मेरे जेहन में बस गई है। प्रेरणा के ये शब्द काफी हैं। जब फेसबुक पर बछेंद्री मैम से संपर्क हुआ तो उनसे जुड़ने की इ'छा जताई। एकबारगी यकीन नहीं हुआ, पर उनका जवाब तुरंत आ गया। उन्होंने कहा था- ज्योति आ जाओ और पहले प्रशिक्षण लो। तुम यह कर सकती हो। बिना देर किए मैंने बछेंद्री मैम से जुड़ने का फैसला कर लिया और ट्रेनिंग के लिए निकल पड़ी। मैं एक बैंककर्मी हूं। मेरे इस फैसले के बारे में कम लोगों को पता था। ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ी, पर किसी को मालूम नहीं था कि क्यों, किसलिए। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि अपने फैसले के बारे में नहीं सोच पाई। क्या सही, क्या गलत-यह तो बाद की बात है। बछेंद्री मैम से जुड़ने के बाद लगा कि मेरा फैसला सही था। जब अन्नपूर्णा रेंज की चढ़ाई पर जाना था तो मेरे पास इस प्रशिक्षण के अलावा और कोई अनुभव नहीं था। साथ थी तो बस यह सोच कि यदि आपके इरादे में दम है तो असंभव कुछ भी नहीं। मेरे साथ टीम में भारत के अलग-अलग शहरों की वे महिलाएं भी थीं, जो बेहद निम्न तबके से आती हैं, लेकिन उनका उत्साह चरम पर था। वे हमें प्रोत्साहित कर रही थीं और यह साबित भी कर रहीं थी कि भारत बदल रहा है और साथ में बदल रही हैं भारतीय महिलाएं भी।
सास ने बढ़ाई आस
पायो मुर्मु, झारखंड
खतरों से खेलना बेहद पसंद है मुझे। महिलाएं क्या नहीं कर सकती हैं? वे वह सभी काम कर सकती हैं, जो पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था। मेरे दो ब'चे हैं। घर के कामकाज और डंपर ड्राइविंग जैसा भारी-भरकम काम। यह सब आसान नहीं है, पर मुश्किलें हैं तो रास्ते भी हैं। पति काम नहीं करते। घर भी संभालना पड़ता है। कमजोर नहीं पड़ती। कभी-कभी उदास होती हूं तो खुद को संभालना आता है। सास बहुत मानती हैं। नौकरी की परेशानियों को समझती हैं और जब पर्वतारोहण के क्षेत्र में आई हूं तो वे मुझे प्रोत्साहित भी करती हैं। मेरे ब'चों को संभालती हैं और हर कदम पर साथ होने का विश्वास दिलाती हैं। मेरे पति से भी ज्यादा..। बछेंद्री मैम ने मुझे टाटा स्टील में डंपर चलाते देखा था। उन्होंने मन ही मन मुझे पर्वतारोहण के क्षेत्र में लेने का इरादा बना लिया था, पर उस समय यकीन करना मुश्किल था, जब उन्होंने मुझे हिमालय अभियान से जुड़ने का प्रस्ताव दिया। वहां से लौटकर यही सीखा कि पर्वतारोहण भी जिंदगी की तरह है। यहां आने वाले संघर्ष और मुश्किलें आपको और निखारती हैं और आपको इस लायक बनाती हैं कि आप खुद के साथ दूसरों की जिंदगी भी रोशन करती रहें।
पापा का शुक्रिया
एल. अन्नपूर्णा, झारखंड
हमारे देश में लड़कियों की राह में अब भी हजारों रोड़े हैं, पर यही उनकी ताकत है। आगे बढ़ने के मंत्र मैने ऐसे माहौल में ही सीखा। जब बात-बात पर टोका जाता था कि कहां जा रही हो, क्या कर रही हो, अरे तुम लड़की हो, यह काम कैसे कर पाओगी? इससे पहले कि मैं इन बातों से हार जाती, मेरे पापा आगे आकर मेरा हौसला बढ़ाते। जब मैंने माउंटेनियरिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू की तो पापा की प्रेरणा साथ रहती। मैंने अपने दम पर किलिमंजारो और थार डेजर्ट अभियान को पूरा किया है। एडवेंचर प्रोग्राम में लड़कियों को प्रशिक्षण देने का काम भी करती हूं। पति का भी साथ मिला। वे ब'चे को संभालते हैं और परेशानियां सामने आने पर अगर सामंजस्य बिठा पाने में किसी तरह की समस्या आती है तो वे साथ खड़े होते हैं। अन्नपूर्णा अभियान मेरे लिए खास है, क्योंकि इसमें वे लड़कियां भी साथ थीं, जो बस अपने जुनून की वजह से कामयाबी के झंडे गाड़ कर आई हैं।
(सीमा झा)
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