सरबजीत को किसने मारा..
[विवेक भटनागर] 23 साल पहले गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गए पंजाब के एक भारतीय साधारण किसान सरबजीत सिंह को मंजीत सिंह बनाकर जेल में डाल दिया गया और उस पर आरोप लगाया- लाहौर में बम विस्फोट कर बेगुनाहों की जान लेने का। पाकिस्तान की जेल में वर्षो बंद रहने के बाद सरबजीत सिंह को रोशनी की किरण तब दिखाई दी, जब पाकिस्तान के वक
[विवेक भटनागर] 23 साल पहले गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गए पंजाब के एक भारतीय साधारण किसान सरबजीत सिंह को मंजीत सिंह बनाकर जेल में डाल दिया गया और उस पर आरोप लगाया- लाहौर में बम विस्फोट कर बेगुनाहों की जान लेने का। पाकिस्तान की जेल में वर्षो बंद रहने के बाद सरबजीत सिंह को रोशनी की किरण तब दिखाई दी, जब पाकिस्तान के वकील अवैस शेख ने उनके पक्ष में केस लड़ने का फैसला किया। क्या था यह पूरा केस? किन चीजों ने उन्हें सरबजीत का वकील बनने को प्रेरित किया कि उन्होंने बिना किसी शुल्क के यह काम किया? पाकिस्तान में उन्हें किस तरह जिल्लत का सामना करना पड़ा? सरबजीत को जिस व्यक्ति की जगह गिरफ्तार किया गया, वह कौन है? इन सब तफ्तीशात को मानवाधिकार और शांति कार्यकर्ता रहे पाकिस्तानी अधिवक्ता अवैस शेख ने विस्तार से लिखा है अपनी किताब 'सरबजीत सिंह की अजीब दास्तान' में, लेकिन अफसोस की बात है कि यह किताब प्रकाशित तब हुई है, जब सरबजीत को जेल अधिकारियों की मिली भगत से मार डाला गया। खबर तो यह आई कि कैदियों ने मिलकर सरबजीत पर हमला कर दिया और उसे जिन्ना अस्पताल के आइसीयू में पहुंचा दिया, जहां उसकी मौत हो गई, लेकिन सच क्या है? सरबजीत तो 23 सालों से तिल-तिल कर मर रहा था। उसे किश्तों में मौत देने वालों में किन-किन लोगों का हाथ था और अंतत: उसकी मौत का कौन जिम्मेदार था, इसका अनुमान यह किताब पढ़कर लगाया जा सकता है। जिनमें घेरे में आते हैं पाकिस्तान में भ्रष्ट पुलिस, मीडिया का कुचक्र, नौकरशाही और राजनेताओं के चेहरे, न्याय-तंत्र का अन्यायी चेहरा और भारतीय कैदियों के साथ हो रहे जुल्म की अंतहीन दास्तां।
सरबजीत को पाकिस्तान की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। भारत-पाकिस्तान के बीच जब-जब अच्छे संबंधों की शुरुआत हुई, वह चाहे समझौता एक्सप्रेस शुरू करना हो या दोनों की जेलों में बंद कैदियों की रिहाई की बात, हर बार पाकिस्तान की राजनीति, पुलिस और नौकरशाही ने माहौल बदलने का प्रयास किया, इसका खामियाजा भी सरबजीत को भुगतना पड़ा। किताब में संतोष भारतीय को दिए गए एक इंटरव्यू में अवैस शेख कहते हैं, 'एक कश्मीर सिंह हैं हिंदुस्तान के। पाकिस्तान में 26 साल कैदी रहे। एक वहां के मिनिस्टर थे उस वक्त के, उन्होंने उसे निकलवाया माफी दिलाकर। फिर उसको शराब पिलाई, फाइव स्टार होटल में रखा। ढोल-धमाका हुआ, पूरा मीडिया बुलाया गया और उसे हार पहनाकर वाघा बॉर्डर से रुखसत किया। उसने जाते ही कह दिया कि मैं तो पाकिस्तान में भारत का जासूस था। इसी बैकग्राउंड में सरबजीत का केस खुला, इतनी जल्दी में सुप्रीम कोर्ट में फैसला हुआ और ये सारी मुसीबतें हुई।' ऐसा ही तब हुआ, जब सरबजीत के बजाय सुरजीत सिंह को छोड़ा गया, उसने खुद को भारतीय जासूस घोषित कर दिया और अति उत्साह में यहां तक कह दिया कि सरबजीत को जेल में बहुत अच्छे ढंग से रखा गया है।
जबकि सरबजीत को जेल में बेइंतहा यातनाएं दी जा रही थीं। इस पुस्तक में सरबजीत के वे पत्र भी उसकी लिखावट में शामिल किए गए हैं, जो उसने अपनी बहन, अपने वकील और इस पुस्तक के लेखक, भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, अपनी बहन और बेटियों को लिखे हैं। इसमें सरबजीत के हाथ से लिखी उसकी दास्तान को भी शामिल किया गया है, जिसमें जेल में उसके साथ हो रहे सुलूक का पता चलता है। इसमें सरबजीत ने लिखा है- मुझे जिस रात सेल में लाया गया, दरवाजे में घुसते ही सलामी दी गई यानी कि मुझे पता ही चल रहा था कि मुझे किस तरफ से मारा जा रहा है, क्योंकि आंखों पर पट्टी थी और हाथों में हथकड़ियां, जिन्हें सिपाहियों ने पकड़ा हुआ था। मारते-पीटते एक कमरे में लाया गया। सारी रात मार ने जगाए रखा। सुबह एक पूरी और प्लास्टिक के गिलास में चाय दी गई। पेट में डालते ही नींद आ गई। अचानक मुझे किसी सख्त चीज की ठोकर लगी। मैं बिलबिला उठा। फौजी की वर्दी में किसी ने मुझे बूट की ठोकर मारी थी। वह दूसरी ठोकर मारता कि मैं उठ गया।' इस तरह सरबजीत ने उस पूरी यातना का जिक्र किया है, जिसमें उससे यह कुबूल करवाया गया कि वह सरबजीत नहीं मंजीत सिंह है। सरबजीत ने अपनी बहन और सोनिया गांधी को लिखे पत्रों में भी लिखा था- 'मुझे खाने में कुछ दिया जा रहा है, जिससे मेरे पैर बेकार होते जा रहे हैं।' अपनी बहन को लिखे पत्रों में सरबजीत ने लिखा है कि जेल में उसके साथ बुरा बर्ताव हो रहा है। वह दर्द से परेशान है और रात में जब दर्द होता है तो जेल अधिकारी दवा भी नहींदेते हैं।
अवैस शेख ने उस अभियुक्त मंजीत सिंह के बारे में भी जानकारियां जुटाई हैं, जिसे पाकिस्तानी पुलिस ने पकड़कर भी छोड़ दिया और उसकी जगह सरबजीत को फांसी की सजा करवा दी। पुस्तक में मंजीत सिंह के कई फोटो, उसकी पत्नियों के फोटो और उसके कई देशों में किए गए कारनामे दर्ज हैं। पुस्तक में सरबजीत का पुलिस को दिया वह बयान भी है, जिसे रिव्यू पिटीशन में दाखिल ही नहीं किया गया है। अवैस शेख को सरबजीत के केस में अपने देश के लोगों की घृणा का पात्र बनना पड़ा, उन्हें भारत का एजेंट कहा गया, लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि वे एक बेगुनाह को निकाल कर रहेंगे। पुस्तक में इसका उल्लेख है, लेकिन सरबजीत शिकार हो गया पाकिस्तानी सोच का, वहां की पुलिस और जेल अधिकारियों की कारगुजारियों का और उन राजनीतिक तत्वों का, जो भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती चाहते ही नहीं।
पुस्तक : सरबजीत सिंह की
अजीब दास्तान
लेखक : अवैस शेख
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 195 रुपये
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