Navratri 2022: मेवाड़ की रक्षा के लिए मुगलों की सेना पर मां की नाभी से निकली मधुमक्खियों ने कर दिया था हमला
नवरात्रि विशेष मेवाड़ की राजधानी रहे उदयपुर की सीमा देबारी में स्थित घाटा रानी का मंदिरजब इस मार्ग के लिए काम शुरू किया हाई वे इंजीनियर जब भी दूरबीन लगाकर सड़क बनाने के लिए यहां जांच करते थे तो हमेशा उनको एक खुले बाल में खड़गधारी बालिका नजर आती।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा के नजदीक तनोट माता के मंदिर की ख्याति से ज्यादातर लोग परिचित हैं, जहां 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना का गिराया एक भी बम नहीं फटा। इसे माता का चमत्कार ही माना जाता है। मेवाड़ की राजधानी रहे उदयपुर की सीमा देबारी में स्थित घाटा रानी का मंदिर मौजूद है। नवरात्रि पर्व में भक्तो की भीड़ लगी रहती है।
माता की नाभी से मधुमक्ख्यिों का झुंड निकल मुगलों पर टूट पड़ा
ऐसी ही चमत्कारी माता का मंदिर तत्कालीन मेवाड़ राज्य की राजधानी रहे उदयपुर की सीमा पर भी मौजूद है। जब मुगलों ने मेवाड़ पर हमला कर दिया और उनकी सेना राजधानी उदयपुर तक पहुंच गई तब पूर्वी द्वार की रक्षा कर रहे देवड़ा सैनिकों ने मेवाड़ की रक्षा के लिए घाटा रानी से प्रार्थना की तो माता की नाभी से मधुमक्ख्यिों का झुंड निकला और मुगलों की सेना पर टूट पड़ा। मधुमक्खियों ने मुगल सेना को एक कदर पांच किलोमीटर खदेड़ा कि उसके बाद मेवाड़ की ओर कदम नहीं रखा। आमतौर पर यहां हर दिन भक्त घाटा वाली रानी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं लेकिन नवरात्रि पर्व में भक्तो की भीड़ लगी रहती है।
मंदिर कितना प्राचीन इसके प्रामाणिक दस्तावेज नहीं मिल पाए
उदयपुर शहर के पूर्वी हिस्से में जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर चित्तौड़गढ़ मार्ग पर माता घाटा रानी का दरबार है। मेवाड़ स्टेट के समय उदयपुर में पूर्वी मार्ग से घुसने का यह एकमात्र रास्ता था। माता के मंदिर से लगभग तीन सौ मीटर आगे मेवाड़ की तत्कालीन राजधानी का परकोटा था और वहां विशाल दरवाजा बनाया गया था। इस दरवाजे में एक खिड़की भी थी जिसे बारी कहा जाता है, जिसके जरिए ही आम लोगों को प्रवेश और निकास मिलता था और इस जगह का नाम देबारी पड़ा। यहां पहाड़ियों की एक चोटी पर बने माता घाटा रानी का मंदिर कितना प्राचीन है, इसके प्रामाणिक दस्तावेज नहीं मिल पाए लेकिन कहा जाता है कि माता रानी का दरबार पांच सौ साल से अधिक प्राचीन है, अब यहां मंदिर को नया रूप दिया जा रहा है।
देवी मां ने पूर्वी द्वार पर हमेशा दुश्मनों से रक्षा की
मान्यता है कि घाटा रानी ने मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की दुश्मनों से हमेशा रक्षा की। मुगलों और मेवाड़ के बीच कभी भी नहीं बनी। मुगलों ने मेवाड़ को छोड़कर राजस्थान के सभी राजा-महाराजाओं को अपने आधीन कर लिया। वह मेवाड़ को किसी भी शर्त पर आधीन करना चाहते थे और इसके लिए महाराणा प्रताप से लेकर बाद के महाराणाओं से उनकी नहीं बनी। इसके लिए कई बार मुगलों ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग को छोड़कर उदयपुर को राजधानी बनाकर मेवाड़ के शासक खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे कि किन्तु मुगलों ने अपनी घेराबंदी जारी रखी।
चित्तौड़गढ़ जीत के बाद मुगलों ने मेवाड़ की राजधानी उदयपुर पर कब्जा जमाने के लिए बड़ी सेना के साथ हमला बोल दिया था। मुगल सेना देबारी तक पहुंच गई, जिसकी रक्षा का जिम्मा देवड़ा सैनिकों पर था। विशाल मुगल सेना को देखकर देवड़ा सैनिक घबराए नहीं। मुगल सेना से भिड़ने के लिए देवड़ा सैनिक मेवाड़ की रक्षा के लिए घाटा रानी के दरबार पहुंचे तथा पूजा करने लगे।
मधुमक्खियों के झुण्ड ने मुगल सेना को पांच किलोमीटर दूर तक खदेड़ा
अचानक उन्होंने देखा कि माता की नाभी से मधुमक्खियों का झुंड निकलने लगा और वह देबारी दरवाजे तक पहुंचे मुगल सेना पर टूट पड़ा। मधुमक्खियों के झुण्ड ने मुगल सेना को पांच किलोमीटर दूर नाहर मगरा तक खदेड़ दिया। मधुमक्खियों के हमले से बुरी तरह पस्त हुई मुगल सेना की कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह उदयपुर की ओर आंख उठाकर देख पाए और मेवाड़ को जीतने का सपना ही आंखों में लेकर लौट गई।
नेशनल हाईवे का रूट बदलना पड़ा
उदयपुर से चित्तौड़गढ़ जाने वाले नेशनल हाईवे 76 का निर्माण किया जा रहा था तब घाटा रानी माता का मंदिर बीच में आ रहा था। नेशनल हाईवे अधिकारियों ने देखा कि सीधा रास्ता बनाने पर माता रानी का मंदिर आ रहा था। इसके लिए इस मंदिर को शिफ्ट करने की योजना बनाई। अधिकारियों ने जब इस मार्ग के लिए काम शुरू किया और हाई वे इंजीनियर जब भी दूरबीन जैसे यंत्र लगाकर सड़क बनाने के लिए यहां जांच करते थे तो हमेशा उनको एक खुले बाल में खड़गधारी बालिका नजर आती। जिसके बाद इस हाईवे को मोड़ना पड़ा और पहाड़ काटकर नया रास्ता निकाला।
यही नहीं, जब इसके समीप से रेलवे लाइन भी नहीं निकाली जा सकी और काम करने वाले सभी श्रमिक बीमार हो गए। जब रेलवे इंजीनियरों ने माता रानी के मंदिर में मन्नत मांगी और रास्ता बदल दिया तब जाकर रेलवे का काम पूरा हो पाया।