संसदीय सचिवों पर लटकी तलवार, अधिकारियों और वकीलों में चला विचार-विमर्श का दौर
करीब 8 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार के सामने 10 संसदीय सचिवों को लेकर मुश्किल खड़ी हो गई है।
जयपुर, जागरण संवाददाता। करीब 8 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार के सामने 10 संसदीय सचिवों को लेकर मुश्किल खड़ी हो गई है। दिल्ली की तरह राजस्थान में भी 10 ससंदीय सचिवों को लाभ के पद पर मानते हुए पद से हटाने को लेकर हाईकोर्ट के कड़े रूख को देखते हुए सरकार में हलचल तेज हो गई है।
बुधवार को दिनभर राज्य के मुख्य सचिव,विधि सचिव और महाधिवक्ता संसदीय सचिव प्रकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट एवं चुनाव आयोग द्वारा विभिन्न राज्यों के संबंध में दिए गए अब तक के फैसलों का अध्ययन करते रहे । मुख्यमंत्री के निर्देश पर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों की सलाह भी ली जा रही है । उल्लेखनीय है कि संसदीय सचिवों को लाभ के पद पर मानते हुए इन्हे पद से हटाने को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका विचाराधीन है। करीब एक वर्ष से यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है।
राज्य सरकार ने इस मामले को लटकाए रखने की रणनीति के तहत अब तक हाईकोर्ट द्वारा दिए गए नोटिस का जवाब नहीं दिया है । मंगलवार को इस याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांद्रजोग और न्ययाधीश जी.आर मूलचंदानी ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार तीन बार समय मांग चुकी है,कोर्ट ने 2 अप्रैल को जवाब पेश करने के निर्देश दिए। याचिकाकर्ता दीपेश ओसवाल ने कहा कि सरकार इस मामले को चुनाव तक लटकाए रखना चाहती है । जवाब के लिए सरकार तीन बार समय मांग चुकी,लेकिन फिर भी जवाब पेश नहीं किया गया।
मंगलवार को हाईकोर्ट का रूख देखने के बाद बुधवार को दिनभर सरकारी अधिकारी भविष्य की रणनीति बनाते रहे। इस मामले को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भी बैठक हुई ।उल्लेखनीय है कि दीपेश ओसवाल द्वारा हाईकोर्ट में दर्ज याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई,2017 बिमोलांगशु रॉय बनाम आसाम राज्य के मामले में दिए गए निर्णय में साफ कहा कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव बनाने का अधिकार नही है,इसलिए हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना करवाते हुए संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कराए और सभी 10 संसदीय सचिवों को पद से हटाया जाए ।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सुरेश रावत,जितेन्द्र गोठवाल,लादूराम विश्नोई,ओमप्रकाश हूडला,कैलाश वर्मा,नरेन्द्र नागर,भीमा भाई,भैराराम,विश्वनाथ मेघवाल और शत्रुघन गौतम संसदीय सचिव है । इधर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अर्चना शर्मा का कहना है कि चुनाव आयोग दिल्ली की तरह राजस्थान के संसदीय सचिवों की भी विधानसभा से सदस्यता समाप्त करे ।