अनूठा रक्षाबंधन: यहां महिलाएं पेड़ों को बांधती है राखी, इस तरह उजाड़ गांव बना कश्मीर
अनूठा रक्षाबंधनयहां रक्षाबंधन पर पेड़ों की राखी बांधने ही नहीं बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी यहां की महिलाएं रखती हैं। इसरो वैज्ञानिक भी सैटेलाइट के जरिए लिए फोटोग्राफ देख आए
उदयपुर, सुभाष शर्मा। रक्षाबंधन पर देशभर की बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती हैं लेकिन उदयपुर संभाग के पिपलांत्री गांव के लोग प्रकृति संग भी रक्षाबंधन पर्व मनाते हैं। इस गांव के लोगों की विशेषता ने ही पिपलांत्री को वैश्विक शोहरत प्रदान की है।
गांव की जानकारी प्राइमरी शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल है
राजस्थान में इस गांव की जानकारी प्राइमरी शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल है, वहीं डेनमार्क में भी इस गांव के बारे में उदाहरण दिया जाता है। पेड़ों के प्रति लोगों के विशेष बंधन का असर था कि इसरो के वैज्ञानिक भी सैटेलाइट के जरिए लिए फोटोग्राफ को देखकर यहां आए।
इस गांव पर सैकड़ों डॉक्यूमेंट्रीज बन चुकी हैं
राजसमंद में जिला मुख्यालय से महज दस किलोमीटर दूर पिपलांत्री गांव के लोगों, विशेषकर यहां की महिलाओं का ही यह कमाल है कि अब पिपलांत्री की पहचान ‘आदर्श ग्राम’, ‘निर्मल गांव’, ‘पर्यटन ग्राम’, ‘जल ग्राम’, ‛वृक्षग्राम’, ‛कन्या ग्राम’, ‛राखी ग्राम’ जैसे उपमाओं से होती है। इस गांव पर सैकड़ों डॉक्यूमेंट्रीज बन चुकी हैं। यहां की महिलाएं हर रक्षाबंधन पर पेड़ों को उत्साह से राखियां बांधती है। इसके लिए वह रक्षाबंधन आने से पहले ही तैयारी शुरू कर देती हैं।
डेढ़ दशक पहले शुरू हुई बदलाव की यह कहानी
रक्षाबंधन पर पेड़ों की राखी बांधने ही नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी यहां की महिलाएं रहती हैं। जिन महिलाओं ने यहां पौधे रोपे आज वह बीस से तीस फीट ऊंचाई के हो गए हैं। इस अनूठे रक्षाबंधन को लेकर यहां के ग्रामीण बताते हैं कि दो हजार से अधिक आबादी वाले इस गांव में बदलाव की कहानी लगभग डेढ़ दशक पहले शुरू हुई थी।
सरपंच श्याम सुंदर ने किया ये अनूठा प्रयास
ग्रामीण अरविन्द कुमार बताते हैं कि तब यहां के सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल हुआ करते थे। पिपलांत्री बेहद खूबसूरत था लेकिन मार्बल खनन क्षेत्र में बसे होने के चलते यहां की पहाडिय़ां खोद दी गई। भूजल पाताल में चला गया और प्रकृति के नाम पर कुछ भी नहीं बचा। ऐसे में पालीवाल ने क्षेत्र की पहाड़ियों पर हरियाली की चादर ओढ़ाने की कसम खाई। उनके इसी संकल्प के चलते आज 15 साल बाद पिपलांत्री देश के उन चुनिंदा गांवों की सूची में सबसे अव्वल नंबर पर आता है, जहां कुछ नया हुआ है।
बेटी पैदा होने एक सौ ग्यारह पौधे लगाए जाते हैं
उन्होंने यहां की महिलाएं एवं बच्चियों को आगे किया। अब इस गांव में बेटी पैदा होती है तो उसकी खुशी में एक सौ ग्यारह पौधे लगाए जाते हैं। डेढ़ दशक में गांव की सीरत और सूरत दोनों ही बदल गए। आज उनका गांव प्रकृति संग रक्षाबंधन पर्व के चलते कश्मीर की वादियों से कमतर नहीं।
इसरो वैज्ञानिक सैटेलाइट से लिए फोटो देखकर आ पहुंचे गांव
इसरो वैज्ञानिक मनोज राज दो साल पहले पिपलांत्री आए तथा यहां की हरियाली देखकर चकित रह गए। बताया गया कि साल 2006 से पहले पिपलांत्री गांव की पहाडिय़ां नंगी (खाली) थी। जबकि साल 2012 से 16 के बीच पिपलांत्री एवं आसपास के तीन गांव हरियाली से आच्छादित नजर आए। जिसकी सत्यता परखने यहां इसरो के वैज्ञानिक मनोजराज सक्सेना एवं फोटोग्राफर नरोत्तमराज अस्ताना भी यहां आए।