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राजस्थान उच्च न्यायालय ने पूछा- क्या कोई नाम के आगे राजा, महाराजा, नवाब लिख सकता, केंद्र व राज्य सरकार से मांगा जवाब

न्यायालय ने अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि संविधान में सभी को समानता का अधिकार दिया गया है। पूर्व राजा स्व.मानसिंह के दोनों पुत्रों के बीच जयपुर के बरवाड़ा हाउस स्थित सम्पति के बंटवारे को लेकर दस साल से विवाद चल रहा है। मामला न्यायालय में लंबित है।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 02:04 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 02:04 PM (IST)
राजस्थान उच्च न्यायालय ने पूछा- क्या कोई नाम के आगे राजा, महाराजा, नवाब लिख सकता

जयपुर, जागरण संवाददाता। देश में राजशाही समाप्त होने के बावजूद पूर्व राजपरिवारों के सदस्यों के नाम के आगे महाराजा, राजा एवं नवाब शब्दों के इस्तेमाल किए जाने पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है। भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के राजा स्व.मानसिंह के दो पुत्रों भगवती सिंह और लक्ष्मण सिंह के बीच चल रहे सम्पति विवाद की सुनवाई के दौरान जस्टिस समीर जैन ने एक दस्तावेज पर राजा शब्द लिखे होने पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

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पक्षकार लक्ष्मण सिंह के नाम के राजा शब्द लिखा हुआ होने पर जस्टिस जैन ने कहा कि 26वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद-363ए जोड़ने के बाद भी क्या कोई अपने नाम नाम के आगे महाराजा, राजा और नवाब शब्द लिख सकता है। जस्टिस जैन ने राज्य सरकार के महाधिवक्ता एम.एस.सिंघवी से पूछा कि क्या ऐसे शब्द लिखे जा सकते हैं। देश में राजशाही समाप्त होने के बावजूद पूर्व राजपरिवारों के सदस्यों के नाम के आगे महाराजा, राजा एवं नवाब शब्दों के इस्तेमाल किए जाने पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

जस्टिस जैन ने अनुच्छेद-363 एक का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत महाराजा, राजा और नवाब आदि की पदवी हटाते हुए उनका प्रिविपर्स दिए जाने पर पाबन्दी लगाई गई थी । लेकिन क्या संविधान के इस प्रावधान के बावजूद भी कोई अपने नाम के आगे महाराजा, राजा और नवाब की पदवी का इस्तेमाल कर के किसी न्यायालय में वाद दायर कर सकता है।

न्यायालय ने अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए कहा कि संविधान में सभी को समानता का अधिकार दिया गया है। उल्लेखनीय है कि भरतपुर के पूर्व राजा स्व.मानसिंह के दोनों पुत्रों के बीच उनकी जयपुर के बरवाड़ा हाउस स्थित सम्पति के बंटवारे को लेकर पिछले दस साल से विवाद चल रहा है। मामला न्यायालय में लंबित है। 


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