लॉकडाउन के कारण पढ़े लिखे बड़े- बड़े डिग्री धारी भी रोजी रोटी के लिए मनरेगा में मजदूरी करने में जुटे
डिग्रीधारी मनरेगा में कर रहे हैं मजदूरी-शहरों में बेरोजगारी के कारण गांव लौट रहे लोगों के लिए मनरेगा बना चूल्हा जलाने का साधन
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। कोराना महामारी के बीच करीब 65 दिन से जारी लॉकडाउन के कारण राजस्थान में कई लोगों की नौकरियां चली गई और वे बेरोजगार हो गए। ऐसे लोगों के सामने परिवार पालने का भी संकट खड़ा हो गया। संकट की इस घड़ी में सरकार की मनरेगा योजना ने बेरोजगारों को संबल दिया है। ना केवल मजदूर बल्कि डिग्री धारी लोग भी मनरेगा में मजदूरी करने में जुटे हैं।
मनरेगा योजना का लाभ अन्य राज्यों से आए प्रवासी श्रमिक भी उठा रहे हैं। प्रदेश में करीब 500 ऐसे लोग मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं, जिन्होंने या तो पीएचडी की डिग्री ले रखी है या फिर इंजीनियरिंग या बीएड़ और एमबीए कर रखा है। ये अब 220 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी कर रहे हैं,जिससे इनके घर का चूल्हा जलता है।
मजदूरों की संख्या 60 हजार से हुई साढ़े 38 लाख तक
प्रदेश में 15 अप्रैल तक मनरेगा में काम करने वालों की संख्या करीब 60 हजार थी। यही संख्या अप्रैल माह के अंत में बढ़कर 9 लाख 60 हजार हो गई। यह संख्या 1 मई को 13 लाख 4 हजार 128 हो गई और 20 मई को यह संख्या 35 लाख 60 हजार तक पहुंच गई। 22 मई को यह संख्या 36 लाख 54 हजार 130 एवं 25 मई को यह संख्या करीब 38 लाख हो गई। 1900 करोड़ रुपये इन लोगों द्वारा किए जा रहे कार्यों पर खर्च किए जा रहे हैं । मनरेगा मजदूरों की संख्या बढ़ने का मुख्य कारण शहरी इलाकों में बढ़ रही बेरोजगारी और सरकार की रियायत के बावजूद फैक्ट्रियों का सही ढंग से शुरू नहीं होना है। इस योजना के तहत सरकार "एक ग्राम चार काम " अभियान चलाया जा
डिग्रीधारी मजदूरों की पीड़ा
एमए,बीएड़ टोंक जिले के निमोला गांव निवासी संजय व रामवतार सिंह का कहना है कि पढ़ाई के बाद जयपुर में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने गया,वहां 15 हजार रुपये वेतन मिलता था, लेकिन अब नौकरी से हटा दिया। गांव आया तो मनरेगा में मजदूरी करने लग गया।
जयपुर जिले के ही बड़ के बालाजी निवासी जगन शर्मा का कहना है कि एमबीए कर दिल्ली में एक कंपनी में नौकरी करने गया था, लॉकडाउन में घर आ गया। अब यहां मनरेगा में मजदूरी कर रहा हूं, जिससे घर का चूल्हा जलता का कहना है। ठिकरिया गांव की राखी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी,लेकिन कोरोना व लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए । स्कूल मालिक वेतन भी नहीं दे रहे। ऐसे में जॉब कॉर्ड बनवाकर मनरेगा में मजदूरी करने लग गई।
इसी गांव के रमेश का कहना है कि एमकॉम तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह जयपुर में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था, लॉकडाउन में कंपनी में नौकरी से निकाल दिया। पहले बेरोजगार रहा, लेकिन फिर जॉब कार्ड बनवाया और मनरेगा में मजदूरी करने लगा।
सचिन पायलट बोले,मांगते ही काम देंगे
उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का कहना है कि देश में सबसे अधिक मनरेगा श्रमिक राजस्थान में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि मांगते ही जरूरतमंद को काम दिया जाए। जॉब कार्ड बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। 10 हजार शौचालयों का निर्माण ग्रामीण क्षेत्र में किया जा रहा है। 226 पंचायत समितियों में भवन निर्माण का काम प्रगति पर है ।