Jaipur Literature Festival 2020: सीएम अशोक गहलोत बोले, मन के साथ काम की बात भी जरूरी
Jaipur Literature Festival 2020 मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि मन की बात भी जरूरी है और काम की बात भी जरूरी है।
जयपुुर, जेएनएन। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) 2020 की गुरुवार को जयपुर के डिग्गी पैलेस में रंगारंग शुरुआत हुई। जेएलएफ का उद्धघान करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि यह ऐसा आयोजन है, जिसका हम साल भर का इंतजार करते हैं ताकि मन की बात कह सकें, लेकिन मन की बात के साथ काम की बात भी होनी चाहिए। इस मौके पर गहलोत ने राजस्थान के प्रसिद्ध लेखक विजयदान देथा की किताब बातां री फुलवारी के अंग्रेजी अनुवाद टाइमलैस टेल्स फ्राॅम मारवाड का लोकार्पण भी किया। यह अनुवाद विषेश कोठारी ने किया है।
जेएलएफ का यह 13वां संस्करण है और इस बार दुनिया भर के करीब 500 वक्ता यहां पांच दिन में होने वाले 200 से ज्यादा सत्रों में अपनी बात रखेंगे। गहलोत ने कहा कि यह फेस्टिवल राजस्थान की पहचान बन चुका है और दुनिया भर के चिंतक, विचारक, लेखक यहां आते हैं। इस मौके पर गहलोत ने विजयदान देथा को भी याद किया।
फेस्टिवल के निदेशक संजोय के राय ने कहा कि गांधी के देश में नफरत का बढ़ना चिंताजनक है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि चुप ना रहें। हमें एक-दूसरे की आवाज बन कर बोलना है और एक-दूसरे के साथ प्यार की भाषा बोलनी है। फेस्टिवल सह निदेषक नमिता गोखले और विलयम डेरम्पिरल ने कहा कि भारत में साहित्य की मौखिक परंपरा बहुत गहरी उतरी हुई है और यही कारण है कि यह लिटरेचर फेस्टिवल सफलता के नए कीर्तिमान रच रहा है।
मुख्यमंत्री ने किया उदघाटन, पर्यटन मंत्री ने स्पांसरशिप रोकी
जिस जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का राजस्थान के मुख्यमंत्री अषोक गहलोत ने उद्घाटन किया, उसी फेस्टिवल की स्पांसरशिप राजस्थान के पर्यटन विभाग ने यह रोक दी है। सरकार के पर्यटन मंत्री विष्वेन्द्र सिंह ने स्वयं इस बारे में ट्वीट किया है।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में राजस्थान का पर्यटन विभाग भी प्रायोजक के रूप में शामिल रहा है और इस के बदले फेस्टिवल को कुछ निष्चित राशि दी जानी थी, लेकिन यह राशि रोक ली गई। खुद पर्यटन मंत्री ने ट्वीट कर बताया कि नाराजगी जैसा कुछ नहीं है, बस इतना है कि यह फेस्टिवल जयपुर या राजस्थान की हमारी विपणन नीति से मेल नहीं खाता। जो मार्केटिंग रेवेन्यू वह चाहते थे, उतनी राशि हम देने की स्थिति में नहीं है। बताया जा रहा है कि फेस्टिवल में विष्वेन्द्र सिंह को आना भी था, लेकिन वे आए नहीं।
गौरतलब है कि विष्वेन्द्र सिंह ने हाल में अपने विभाग के अधिकारियों के कामकाज पर भी सवाल उठाए थे और अधिकारियों द्वारा जारी किए गए एक टेंडर को रोक दिया था।
जब तक कला समृद्ध है भविष्य बेहतर
उद्घाटन सत्र की मुख्य वक्ता शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल ने कला के विभिन्न स्वरूपों के आपसी संबंध के बारे में कहा कि हर कला आपस में जुड़ा हुई हैं। शिल्प, चित्रकला, नृत्य और संगीत सभी आपस में जुड़े हुए हैं और कोई भी एक-दूसरे से ऊपर नहीं है, हालांकि गायन को सबसे ऊपर रखा जाात है, लेकिन मैं कला जगत में किसी तरह की पदानुक्रम की पक्षधर नहीं हूं और मानती हूं कि हर कला आपस मे एक-दूसरे से जुड़ी हुई है।
उन्होंने कहा कि जब तक कला समृद्ध है, हम अपने लिए बेहतर भविष्य की उम्मीद कर सकते है। इस मौके पर साहिर लुधियानवी की एक नज्म भी सुनाई।
सत्र के दूसरे प्रमुख वक्ता गणितज्ञ मार्कोस डू सोएटे ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गणित में कविता और कविता में गणित है। भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ एस. रामानुजन कहा करते थे कि गणित में हर अंक की अपनी कहानी होती है। सोएटे ने आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव पर भी अपनी बात कही और कहा कि इसका बढता असर चिंतानजक है।
स्पॉट रजिस्ट्रेशन की फीस बढ़ाई
फेस्टिवल में इस बार सामान्य पास के लिए फ्री ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन बंद हो चुके हैं। ऐसे में 23, 24 और 27 जनवरी के लिए ऑन द स्पॉट रजिस्ट्रेशन की फीस इस बार 500 रुपये प्रति व्यक्ति कर दी गई है, जो पिछले वर्ष 300 रुपए थी और फेस्टिवल के शुरुआती वर्षों में यह फ्री हुआ करता था। वहीं, 25 और 26 यानी वीकेंड पर प्रति व्यक्ति टिकट की दर 300 रुपये बढ़ाकर 800 रुपये कर दी गई है।
धर्म को शासकों ने हमेशा इस्तेमाल किया
धर्म को शासकों ने हमेशा इस्तेमाल किया है। अकबर भी इससे अछूता नहीं था और आज भी हम इससे बच नहीं सकते। राजनीतिक दलों और नेताओं को इससे फायदा मिलता है। अकबर को अल्लाह ओ अकबर सुनना अच्छा लगता था, क्योंकि इसमे अकबर जुड़ा हुआ था। वहीं, चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी के लिए हर हर मोदी का नारा गढ़ लिया गया और भाजपा ने इसे स्वीकार भी कर लिया।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन बादशाह अकबर और दारा शिकोह पर लिखी दो अलग-अलग पुस्तकों पर चर्चा के दौरान यह बातें सामने आईं। अकबर पर पत्रकार मणिमुग्ध शर्मा ने दारा शिकोह पर इतिहास सुप्रिया गांधी ने किताब लिखी है। लेखक विलीयम डिरम्परेल ने उनसे चर्चा की। सत्र में मणिमुग्ध शर्मा ने कहा कि हमने राजाओं को हमेशा हिंदू, मुस्लिम या ईसाई के राजा के रूप में देखा है, उन्हें भारतीय राजा के रूप में नहीं देखा गया है और 1947 में जब से पाकिस्तान अस्तित्व में आया है भारत में किसी भी मुस्लिम शासक के प्रति ज्यादा सहानुभूति बची नहीं है, चाहे वह कितना भी अच्छा शासक रहा हो। मणिमुग्ध ने कहा कि आम जनता बुद्धिजीवियों की बातें नहीं समझती है और शोधकर्ताओं की किताबें भी नहीं पढ़ती है। आम जनता काले व सफेद में लोगों को परखती है।
शर्मा ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष एक आधुनिक शब्द है, अकबर के लिए सहिष्णु शब्द का इस्तेमाल सही रहेगा। उन्होंने कहा कि अकबर के दीन-ए-इलाही को भी धर्म नहीं बल्कि एक विचार और बहुत हद तक एक राजनीतिक विचार कहा जा सकता है। सुप्रिया गांधी ने अपनी किताब का जिक्र करते हुए कहा कि दारा शिकोह ने धर्म के साथ बहुत सारे प्रयोग किए गए। दारा शिकोह ने धर्म को निष्पक्ष रूप से देखा और अपने पूर्व शासकों के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास किया। दारा शिकोह एक दार्शनिक था और बादशाह बनने की इच्छा रखता था।