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Rajasthan: राज्यपाल की आत्मकथा पर आधारित कॉफी टेबल बुक खरीदने को लेकर कुलपतियों पर दबाव, बिल थमाया

राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा पर आधारित कॉफी टेबल बुक कलराज मिश्र निमित्त मात्र हूं मैं की खरीद प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। राजभवन की बिना जानकारी के लेखक व प्रकाशक ने कुलपतियों को कहा इन्हे बेचो विवाद बढ़ा तो राजभवन ने जारी किया बयान ।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 04 Jul 2021 01:54 PM (IST)Updated: Sun, 04 Jul 2021 01:54 PM (IST)
Rajasthan: राज्यपाल की आत्मकथा पर आधारित कॉफी टेबल बुक खरीदने को लेकर कुलपतियों पर दबाव, बिल थमाया
राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा पर आधारित कॉफी टेबल बुक "कलराज मिश्र निमित्त मात्र हूं मैं"

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा पर आधारित कॉफी टेबल बुक "कलराज मिश्र निमित्त मात्र हूं मैं" की खरीद प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। मिश्र के जन्मदिन पर राजभवन में 1 जुलाई को आयोजित कार्यक्रम में 27 सरकारी यूनिवर्सिटी के कुलपति शामिल हुए थे। प्रत्येक कुलपति को आत्मकथा की 19-19 प्रति के साथ ही उनका बिल थमा दिया गया। हर कुलपति को 68,383 का बिल दिया गया। इस तरह कुल 18 लाख 46 हजार 341 के बिल दिए गए।

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हालांकि राजभवन सचिवालय का किताब और बिल कुलपतियों को देने से कोई सरोकार नहीं है। राजभवन ने इस संबंध में रविवार को एक बयान भी जारी किया है। कुलपतियों को किताब और बिल देने का काम किताब के लेखक डॉ.डी.के टकनेट ने किया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और विधानसभा अध्यक्ष डॉ.सी.पी.जोशी ने किताब का विमोचन किया था। जानकारी के अनुसार पांच कुलपतियों ने राज्य सरकार के उच्च शिक्षामंत्री भंवर सिंह भाटी के समक्ष इस तरह से किताबों के बिल दिए जाने पर आपत्ति जताई है।

उधर राज्यपाल के ओएसडी गोविंदराम जायसवाल का कहना है कि किताब और बिल राजभवन के किसी कर्मचारी ने कुलपतियों को नहीं दिए। प्रकाशक के कर्मचारी ने अगर ऐसा किया हो तो कुछ कहा नहीं जा सकता। जायसवाल खुद इस किताब के सह लेखक हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव जसवंत गुर्जर ने इस तरह से कुलपतियों को किताब और बिल दिए जाने को गलत बताया है।

गाड़ी में बैठे तो ड्राइवर ने पकड़ाया बिल

एक सरकारी यूनिवर्सिटी के कुलपति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि राजभवन में पहुंचते ही एक व्यक्ति ने सभी के वाहन चालक के मोबाइल और गाड़ी नंबर ले लिए थे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद जैसे ही वे गाड़ी में बैठे तो चालक ने उनके हाथ में बिल थमा दिया। ड्राइवर ने बताया कि एक व्यक्ति ने गाड़ी की डिक्की में किताबें रखने के साथ ही कहा था कि साहब को कह कर इस बिल का भुगतान करवा देना। एक किताब की कीमत 3,999 रुपये है। इस तरह 19 किताबों की कीमत 75,981 हुई। लेकिन बिल में 10 प्रतिशत छूट के बाद 68,383 का भुगतान करने के लिए कहा गया। बिल का भुगतान इंटरनेशनल इंस्टीट्यृट ऑफ मैनेजमेंट एंड एन्टरप्रन्योरशिप (आईआईएमई) के खाते में करने के लिए कहा गया है। इस संगठन के कर्ताधर्ता टकनेट हैं। टकनेट इस संस्थान को राष्ट्रीय स्तर का शोध संस्थान बताते हुए कहते हैं कि यह केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौधोगिकी मंत्रालय के अधीन काम करता है।

राजभवन ने कहा, ऐसा नहीं हुआ

रविवार को राजभवन पीआर सेल की तरफ से एक बयान जारी कर कहा गया कि यह मुख्य रूप से प्रकाशक आईआईएम शोध संस्थान और खरीदने वालों के बीच की निजी जानकारियां है। प्रकाशक ने पुस्तक प्रकाशित कर राजभवन में उसके लोकापर्ण की अनुमति मांगी थी, जो उन्हे दी गई। किताब के विपणन की व्यावसायिक गतिविधियों में राजभवन की कोई भूमिका और संबंद्धता नहीं है। 


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