उदयपुर में फिर से खेला जाएगा पोलो, मैदान तैयार
Polo to be played again in Udaipur उदयपुर के पास बूझड़ा गांव में तैयार पोलो ग्राउंड।
सुभाष शर्मा
उदयपुर। शाही खेल पोलो उदयपुर में फिर से खेला जाएगा। इसके लिए शहर के
नजदीकी बूझड़ा गांव में पोलो ग्राउंड पूरी तरह तैयार है। इस बार भी नए
ग्राउंड का निर्माण राजपरिवार से जुड़े सदस्य को जाता है। अब सौ साल बाद
इस मैदान पर पोलो खेलते देखा जा सकेगा। हालांकि यहां कुछ चैरिटी मैच खेले
जा चुके हैं।
पूर्व मेवाड़ राजपरिवार के जुड़े वीरमसिंह देव कृष्णावत ने लगभग सौ साल
बाद फिर पोलो ग्राउंड तैयार कराया है। जो उदयपुर से लगभग आठ किलोमीटर दूर
बूझड़ा गांव में है। वीरमसिंह खुद पोलो खिलाड़ी हैं और मेयो कॉलेज में
अध्ययन के दौरान पोलो खेलना सीखे। पोलो के प्रति उनके जुनून ने उन्हें
उदयपुर में पोलो ग्राउंड तैयार कराने के लिए दिशा प्रदान की। इसके लिए
उन्हें शहर के नजदीक ऐसा बड़ा स्थान चाहिए था जहां भूजल की उपलब्धता हो।
बूझड़ा गांव उदयपुर के नजदीकी गांवों में सबसे हरा-भरा गांव है जहां भूजल
स्तर सबसे उपर है। पास ही नांदेशमा बांध के होने तथा सीसारमा नदी के
गुजरने के कारण इस गांव में पानी की उपलब्ध अच्छी ही नहीं, बल्कि श्रेष्ठ
है। इसके लिए बूझड़ा की जमीन पर उन्होंने विशाल पोलो ग्राउंड तैयार
कराया, जिसे पूरा करने में आठ माह से अधिक का समय लगा। पोलो मैदान को
हरा-भरा रखने के लिए विशेष घास लगवाई। इस मैदान को परखने के लिए यहां
चैरिटी मुकाबले भी कराए गए। पोलो मैदान के मालिक वीरमसिंह देव की सोच भी
इस मैदान से होने वाली आय को लेकर विशेष ही है। उनका कहना है कि इस मैदान
से होने वाली आय का हिस्सा वह सामाजिक कार्यों में लगाएंगे। इसके लिए
बाकायदा एक ट्रस्ट बनाया है।
सौ साल पहले शहर में था पोलो ग्राउंड, अब वहां बसी है कॉलोनी
उल्लेखनीय है कि सौ साल पहले उदयपुर शहर में ही पोलो ग्राउंड था और यहां
राजपरिवार पोलो मैचों का आयोजन कराते थे। सौ साल पहले तक तत्कालीन
महाराणा फतहसिंह के राज तक यहां पोलो ग्राउंड में पोलो देखने वालों की
भीड़ जुटा करती थी। इसके बाद समय बीतता गया और राजा-महाराजाओं के हाथ से
शासन खत्म हो गया तो पोलो खेल के प्रति क्रेज खत्म होने लगा। यहां तक
पोलो मैदान भी खत्म हो गया। जहां अब पोलो ग्राउंड के नाम से उदयपुर की
प्रख्यात कॉलोनी है, जहां अमीर लोग रहते हैं। हालांकि उदयपुर राजघराने के
सदस्य अरविन्दसिंह मेवाड़ ने पोलो की टीम तैयार ही नहीं की, बल्कि
प्रेसिडेंट कप से लेकर कई टूर्नामेंट खेले और जीते। उदयपुर के
लोकेन्द्रसिंह उन दिनों भारतीय टीम के कप्तान हुआ करते थे लेकिन तब
मेवाड़ की टीम पोलो का अभ्यास जयपुर या दिल्ली में करती थी।