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विवाह पूर्व समझौता लागू करने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर

वैवाहिक विवादों को रोकने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट में प्रीनैप्युअल एग्रीमेंट लागू करने के लिए एक याचिका दायर की गई है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 12:46 PM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 12:46 PM (IST)
विवाह पूर्व समझौता लागू करने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर
विवाह पूर्व समझौता लागू करने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर

जयपुर, जेएनएन। बढ़ते वैवाहिक विवादों को रोकने के लिए विदेशों की तर्ज पर शादी के समय प्रीनैप्युअल एग्रीमेंट (prenuptial agreement) लागू करने कोे लेकर राजस्थान हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसके तहत एक इकरारनामा होता है जो विवाह के समय पति और पत्नी के बीच बनाया जाता है। इसमें दोनों से जुड़ी सभी जानकारी शामिल की जाती है। इसमें उन शर्तों का उल्लेख होता है जो दंपति के बीच विवाद के बाद तलाक की स्थिति उत्पन्न होने पर अथवा किसी एक की मौत होने की स्थिति में एक पक्ष को देय होता है ।

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याचिका में हाईकोर्ट से आग्रह किया गया है कि इस मामले में कार्रवाई के लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से कहा जाए। दोनों सरकारों को विवाह पूर्व समझौता लागू करना चाहिए । हाईकोर्ट के वकील रविकांत अग्रवाल द्वारा दायर याचिका में केंद्र और राज्य सरकार को पक्षकार बनाया गया है । इस याचिका में कहा है कि वर्तमान समय में महिलाओं के संरक्षण के लिए बने दहेज प्रताड़ना कानून, घरेलू हिंसा संरक्षण और वैवाहिक विवादों में कानूनों का दुरूपयोग हो रहा है।

इन कानूनों से जुड़े विवाद नियमित रूप से कोर्ट में दर्ज होते हैं। वर्तमान में जयपुर पारिवारिक कोर्ट में ही करीब 8 हजार मामले लंबित चल रहे हैं । रविकांत अग्रवाल ने याचिका में कहा है कि अमेरिका, बेल्जियम, नीदरलैंड और इटली सहित कई देशों में विवाद पूर्व समझौते का कानून लागू है । अग्रवाल का तर्क है कि इस तरह का समझौता होने पर दोनों के बीच विवाद होने की स्थिति में कोर्ट जाने के हालात पैदा नहीं होंगे। 

तीन तलाक कानून को रद करने वाली याचिका खारिज 

राजस्थान हाईकोर्ट ने तीन तलाक कानून को रद करने वाली याचिका खारिज की दी है। जस्टिस सबीना और जस्टिस नरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता शंतनु  पारीक  को वुमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्टस आ्न मैरिज, 2019 से प्रभावित होना नहीं मानते हुए याचिका खारिज की है।

याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कानून खुद ही तीन तलाक शब्द को अवैध ठहराता है । लेकिन सायरा बानो मामले में जब सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि तीन तलाक शब्द की ही कानूनी वैधता और स्टेट्स नहीं है तो तीन तलाक को इस कानून के माध्यम से कैसे अवैध ठहराया जा सकता है।

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इस कानून में तीन तलाक को गैर कानूनी और सजा योग्य माना गया है, लेकिन जब तीन तलाक शब्द का कानूनी स्टेट्स नहीं है तो उसे कैसे गैर कानूनी और सजा योग्य अपराध माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने याचिका को मेरिट पर सुनने से पूर्व ही याचिककर्ता को इससे प्रभावित नहीं होना मानते हुए खारिज कर दिया । 

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