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राजस्थान में फिर लौटेंगे ‘पलाश’ के दिन, उदयपुर में पलाश महोत्सव के जरिए बताया जाएगा महत्व

ग्रीन पीपल सोसायटी की पहल पर वन विभाग उदयपुर में पलाश महोत्सव मनाएगा जिसमें पलाश के महत्व की जानकारी संभाग भर से आए स्कूली कॉलेज के छात्र-छात्राओं की दी जाएगी।

By Vijay KumarEdited By: Published: Sat, 14 Mar 2020 04:36 PM (IST)Updated: Sat, 14 Mar 2020 04:36 PM (IST)
राजस्थान में फिर लौटेंगे ‘पलाश’ के दिन, उदयपुर में पलाश महोत्सव के जरिए बताया जाएगा महत्व
राजस्थान में फिर लौटेंगे ‘पलाश’ के दिन, उदयपुर में पलाश महोत्सव के जरिए बताया जाएगा महत्व

सुभाष शर्मा, उदयपुर। दक्षिणी राजस्थान में आदिवासियों की आजीविका का सहारा रहा पलाश के दिन फिर से लौटेंगे। इस पौधे को फिर से पहले जैसी पहचान तथा पहले जैसा महत्व मिलेगा। इस तरह कवायद इन दिनों उदयपुर में जारी है। ग्रीन पीपल सोसायटी की पहल पर वन विभाग उदयपुर में पलाश महोत्सव मनाएगा, जिसमें पलाश के महत्व की जानकारी संभाग भर से आए स्कूली, कॉलेज के छात्र-छात्राओं की दी जाएगी।

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राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि किसी पेड विशेष को लेकर महोत्सव मनया जाएगा। पलाश महोत्सव उदयपुर जिले के किटोदा गांव के पलाश कुंज में आयोजित होगा, जो जिला मुख्यालय से पंद्रह किलोमीटर दूर है। पलाश के विशाल पौधे से घिरी यह जगह पलाश महोत्सव के लिए बेहतरीन मानी जा रही है। 

पलाश महोत्सव में प्रदेश भर के पर्यावरणविद् एकजुट होंगे, जो प्रतिभागी छात्र-छात्राओं को पलाश के महत्व और उसके उपयोग की जानकारी देंगे। पलाश महोत्सव के आयोजन की तैयारियों में जुटे सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक तथा ग्रीन पीपल सोसायटी के अध्यक्ष राहुल भटनागर का कहना है कि पलाश दक्षिण राजस्थान के आदिवासियों की आजीविका रहा है। औषधीय महत्व के साथ इसके पत्ते दोना-पत्तल के रूप में उपयोग लिए जाते रहे हैं। इसे लोग जंगल की आग भी कहते हैं। जिसके फूलों का उपयोग औषधियों के साथ गुलाल तथा हर्बल रंग बनाने में उपयोग लिया जाता है। एक पेड साल भर एक परिवार आजीविका का सहारा था, लेकिन आधुनिकता की होड में इसके पत्तों से बने दोने पत्तों का उपयोग बंद हो गया। अब वक्त आ चुका है जब लोग थर्माकॉल तथा प्लास्टिक कवर

युक्त कागज से बने दोनों पत्तल से परहेज करने लगे हैं। इसलिए एक बार लोगों को इस पौधे के उपयोग तथा रोजगार से जोडऩा होगा। युवाओं में जागरूकता तथा इसके फायदे से उन्हें अवगत कराने के उद्देश्य के साथ पलाश महोत्सव मनाए जाने का निर्णय लिया है। पलाश महोत्सव को वन विभाग के अलावा डब्ल्यू-डब्ल्यूएफ इंडिया का भी सहयोग करेगा। पलाश वृक्ष के संरक्षण एवं संवद्र्धन को लेकर चित्रकला व मौखिक क्विज प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी। साथ ही पलाश व उस पर जीवनयापन करने वाले पक्षियों, तितलियों व कीटों के चित्रों पर आधारित फोटो प्रदर्शनी का आयोजन भी होगा।

पर्यावरणविद् डॉ. सतीश शर्मा का कहना है कि पलाश को लोकल भाषा में ढाक, केसू तथा टेसू भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के राज्य पुष्प पलाश की सांस्कृतिक एवं आयुर्वेद उपयोगिता पर आधारित वार्ता एवं अन्य आयोजन पलाश महोत्सव में रखे जाएंगे। ‘पलाश महोत्सव’ में फोटोग्राफी प्रतियोगिता भी आयोजित होगी।

बहुउपयोगी है पलाश

डॉ. शर्मा ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान में आमतौर पर लाल रंग के फूल वाला पलाश ही पाया जाता है। सफेद तथा पीले फूल वाले पलाश संरक्षित श्रेणी में शामिल हैं। इसके बीज पेट के कीटे मारने का गुण रखते हैं। फूल से रंग तथा अबीर, छाल से निकलने वाला रेशा जहाज के पटरों की दरारों को भरने काम आता है। इसकी छाल से निकलने वाले रेशे से रस्सियां बनाई जाती हैं। इसके अलावा कागज, दरी तथा कत्था बनाने में भी यह काम आता है। आयुर्वेद में पलाश का उपयोग पित्त, कुष्ठ, मूत्र, वात, उदर, कृमि, प्रमेह, बवासीर, खांसी आदि रोगों के उपचार में किया जाता है।


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