हैरानी! आजादी के इतने वर्षों बाद भी राजस्थान के लाखों लोगों को नहीं है वोट डालने का अधिकार
राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में बिना ठौर-ठिकाने के घूम रही घुमंतू जातियों के लाखों लोग आज भी मतदान से वंचित है। 8 फीसदी यानी 55 लाख लोग घुमंतू जातियों के है।
जयपुर, जागरण संवाददाता। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में बिना ठौर-ठिकाने के घूम रही घुमंतू जातियों के लोग बड़ी संख्या में मतदान से वंचित है। रोजी-रोटी की तलाश में इधर से उधर घूमने वाली इन जातियों की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ पाया है। एक तरफ तो चुनाव आयोग और राजनीतिक पार्टियां मतदान प्रतिशत बढ़ाने को लेकर अभियान चलाती है,वहीं दूसरी तरफ घुमंतू जातियों को वोट अधिकार नहीं मिल पाया है।
यही कारण है कि ठौर-ठिकाने के अभाव में घुमंतू जातियों के दो तिहाई से अधिक लोगों के पास अपनी पहचान के सरकारी दस्वावेज के नाम पर कोई कागज नहीं है। पहचान का सरकारी दस्तावेज नहीं होने के कारण ये लोग इनके लिए बनने वाली योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे है। वोट बैंक नहीं होने के कारण राजनीतिक दल भी इनकी कोई परवाह नहीं करते है ।
कुल आबादी का 8 फीसदी घुमंतू जातियां
राज्य में डूंगरपुर,सिरोही भीलवाड़ा, बांसवाड़ा जालौर और चित्तौड़गढ़ आदि जिलों के विभिन्न हिस्सों में ये घुमंतू जनजाति घूमती हुई देखी जा सकती है। अनुमान के अनुसार राज्य की आबादी का करीब 8 फीसदी यानी 55 लाख लोग घुमंतू जातियों के है।
अनुमान इसीलिए क्योंकि राज्य सरकार ने कभी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक पटल पर नहीं रखी, जिससे घुमंतुओं की 32 जातियों की असल संख्या का पता चल सके। आजीविका की तलाश में ये लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते है। राज्य में बंजारा, कालबेलिया, रेबारी, सांसी, कंजर, गाड़िया लोहार, साठिया, गरासिया, डामोर, मुंडा, नायक और कोरी समेत सहित कुल 32 घुमंतू जातियां है। मालवाहक, पशुपालक या शिकारी, धार्मिक खेल दिखाने वाले और मनोरंजन करने वाले लोग इनमें मुख्य रूप से आते है।
जानकारी के अनुसार 98 फीसदी घुमंतू जातियों के पास अपनी कोई जमीन नहीं है। इनमें से 57 फीसदी लोग झोंपड़ियों में रह रहे है। घुमंतू जातियों के 72 फीसदी लोगों के पास अपनी पहचान के दस्तावेज तक नहीं है। दस्तावेज के अभाव में ये सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते है।