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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल: गीतकार गुलजार का कहना है- सियासत की जुबान नई पीढी को खराब कर देगी

गीतकार, फिल्मकार गुलजार का कहना है- आज की सियासत में जिस तरह की जुबान इस्तेमाल हो रही, वह सियासत व दोस्ती को तो खराब कर ही रही है, अगली पीढी की जुबान भी खराब कर देगी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 25 Jan 2019 12:39 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2019 12:39 PM (IST)
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल: गीतकार गुलजार का कहना है- सियासत की जुबान नई पीढी को खराब कर देगी

Jaipur Literature Festival जयपुर, जेएनएन। गीतकार और फिल्मकार गुलजार का कहना है कि आज की सियासत में जिस तरह की जुबान इस्तेमाल हो रही है, वह सियासत और दोस्ती को तो खराब कर ही रही है, अगली पीढी की जुबान भी खराब कर देगी।

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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन फिल्म लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर की किताब जिया जले-स्टोरीज बिहाइंड द सांग्स पर नसरीन और संजोय के.राय के साथ चर्चा के दौरान न सिर्फ फिल्मों गीतों के पीछे की रोचक कहानियां बताई बल्कि अनुवाद के तरीके और फिल्मी गीत लिखने की प्रक्रिया पर भी चर्चा की। गुलजार ने कहा कि सियासत करने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो जुबान वो आज बोल रहे है, वह नई पीढी तक जाएगी, इसलिए इस पर ध्यान जरूर दें। उन्होंने हिन्दी और उर्दू के विवाद पर कहा कि उर्दू हिन्दी से अलग नहीं है। इसका सिर्फ लहजा और साउंड ही इसे अलग बनाता है। हम जो बोलते है उसे हिन्दुस्तानी नाम दे दीजिए, सब झगडा खत्म हो जाएगा।

फिल्मी गीत और कविता के अंतर- फिल्मी गीत और कविता के अंतर के बारे में गुलजार ने कहा कि कविता आपकी अभिव्यक्ति होती है। आपको पता होता है कि आपको क्या कहना है, लेकिन फिल्मी गीत ऐसा नहीं है। इसमें हमें एक सिचुएशन दे दी जाती है, किरदार का ध्यान रखना पडता है। उसकी जुबान का ध्यान रखना पडता है और फिर धुन के रूप में एक नपा तुला कपडा दे दिया जाता है। हम उससे बाहर नहीं जा सकते, लेकिन फिर यह लिखने वाले पर निर्भर करता है कि वह उपर की तह के नीचे कितनी और तहें बना सकता है। उन्होंने साफ कहा कि फिल्मी गीत हमेशा सिर्फ धुनों पर लिखे जाते है। उन्होने कहा कि फिल्मों में कहानियों पर गीत होते है, लेकिन हर गीत की भी एक कहानी होती है।

लता ने पहली बार मुम्बई से बाहर रिकाडिंग की- फिल्म दिल से के गीत जिया जले की चर्चा करते हुए गुलजार ने बताया कि इस गीत की रिकार्डिंग के लिए लता जी पहली बार मुम्बई से बाहर गई और चेन्नई में रिकार्डिंग की। वहां भी कुछ सैटिंग ऐसी थी स्टूडियों में लता जी के सामने सिर्फ एक दीवार थी।, उन्होंने कहा कि सामने कोई नहीं हो तो कैसे गाउंगी मै। तो फिर मैं खुद एक कुर्सी लगा कर उनके सामने बैठा और उन्होंने यह गीत गाया। फिल्म स्लमडाॅग मिलेनियर के गीत जय हो के बारे में गुलजार ने कहा कि यह गीत पूरी तरह रहमान के संगीत और सुखविंदर की गायकी का कमाल है। रहमान ने हिन्दी फिल्म संगीत के प्रचलित मुहावरे को पूरी तरह से बदला है।

नसरीन मुन्नी कबीर ने कहा कि गीतों का अनुवाद हास्यास्पद नहीं होना चाहिए और ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि लोग समझ ही न सकें। ऐेसे में शब्दों का चयन बहुत मुश्किल काम होता है। इस किताब के दौरान मुझे इस बारे में गुलजार से बहुत कुछ सीखने को मिला।

अपने नाम से लिखने की हिम्मत रखिए- वाटसएप् पर गुलजार के नाम से आनी वाली कविताओं के बारे में गुलजार ने कहा कि इनमें से एक भी मेरी नहीं है। जो लोग ऐसा कर रहे है, उन्हें अपने नाम से लिखने की हिम्मत दिखानी चाहिए। अपनी हरकतों से ही आदमी सिखता है। अपने नाम से लिखने की हिम्म्त रखिए।


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