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Laxmi Vilas Hotel Case: लक्ष्मी विलास होटल मामले में हाईकोर्ट ने सीबीआइ कोर्ट के आदेश पर लगाई अंतरिम रोक

Laxmi Vilas Hotel Case उदयपुर के लक्ष्मी विलास पैलेस होटल के विनिवेश से जुड़े मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने मंगलवार को सीबीआइ कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। वहीं अरुण शौरी मामले में सुनवाई नहीं हो पाई।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 06:02 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 08:42 PM (IST)
Laxmi Vilas Hotel Case: लक्ष्मी विलास होटल मामले में हाईकोर्ट ने सीबीआइ कोर्ट के आदेश पर लगाई अंतरिम रोक
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) के लोगो की फाइल फोटो।

जोधपुर, संवाद सूत्र। Laxmi Vilas Hotel Case: राजस्थान में उदयपुर के लक्ष्मी विलास पैलेस होटल के विनिवेश से जुड़े मामले में जोधपुर स्थित राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने सीबीआइ कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। इसके साथ ही होटल को सील किए जाने के आदेशों पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आठ अक्टूबर से पहले कोर्ट में पेश होकर पांच लाख का जमानती मुचलके भरने के आदेश दिए। याचिकाकर्ताओं को बिना अनुमति देश छोड़कर बाहर जाने पर कोर्ट ने रोक लगा दी है। इश मामले में 15 अक्टूबर को फिर अगली सुनवाई होगी। वहीं, इसी मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी की ओर से लगाई गई याचिका के रजिस्टर्ड नहीं होने की वजह से उस पर सुनवाई नहीं हो पाई। संभवत उस मामले पर एक दिन बाद सुनवाई हो, लेकिन हाईकोर्ट के द्वारा आरोपितों के विरुद्ध सीबीआइ कोर्ट की ओर से जारी किए गए गैर जमानती वारंट को जमानती वारंट में तब्दील कर देने से उसकी पूर्व जितनी अहमियत नहीं रही है।

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सीबीआइ आदलत के आदेशों पर हाईकोर्ट की अंतरिम रोक के बाद अब उदयपुर की लक्ष्मी विलास होटल से जुड़े मामले में भारत होटल्स लिमिटेड की प्रबंध निदेशक ज्योत्सना सूरी, विनिवेश मंत्रालय के पूर्व सचिव प्रदीप बैजल व लाजार्ड इंडिया लिमिटेड नई दिल्ली के तत्कालीन प्रबंध निदेशक आशीष गुहा सहित अन्य पर गिरफ्तारी का संकट भी टल गया है। भारत होटल्स लिमिटेड की प्रबंध निदेशक ज्योत्सना की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वकील हरीश साल्वे व राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता उमेश कांत व्यास ने पैरवी की। साल्वे फिलहाल लंदन में हैं और वहां से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए वे सुनवाई में शामिल हुए। उन्होंने दलील दी कि सीबीआइ कोर्ट के आदेश में बहुत बड़ी त्रुटि है। उन्होंने जांच के साक्ष्य और रिकॉर्ड साक्ष्य में भिन्नता होने की दलील दी।

उन्होंने कहा कि अधीनस्थ कोर्ट द्वारा जो फाइडिंग रिकॉर्ड की गई है, वह पूरी तरह से गलत है तथा स्पष्ट रूप से अपने क्षेत्राधिकार के बाहर जाकर यह आदेश दिया है। सीबीआइ ने विगत दो बार पेश की गई रिपोर्ट की अनदेखी की है। इसलिए इसमें हाईकोर्ट का हस्तक्षेप करना आवश्यक है। इसके साथ अधिवक्ता ने ऐसे मामलों में आरोपितों के पद प्रतिष्ठा का जिक्र करते हुए इंदरमोहन गोस्वामी बनाम उत्तराखंड तथा रघुवंश देवचंद भसीन बनाम महाराष्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी उल्लेख किया, जहां  समन जारी करने से पूर्व प्रथम अवस्था में गैर जमानती वारंट जारी करना किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता हनन से जुड़ा है, ऐसे में गिरफ्तारी वारंट असंगत है।

वकीलों के तर्कों के बाद जस्टिस मेहता ने गत 15 सितंबर को सीबीआइ कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। इससे अब इन आरोपितों को गिरफ्तारी से राहत मिली है। हालांकि कोर्ट उनके विरुद्ध जारी गैर जमानती वारंट को जमानती वारंट में तब्दील किया है। साथ ही, लक्ष्मी विलास पैलेस होटल को सीज करने के आदेश पर रोक लगा दी है।

अरुण शौरी के मामले में नहीं हुई सुनवाई

सीबीआइ कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी के विरुद्ध भी क्रिमिनल केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं इस आदेश को शौरी ने चुनौती दी है तथा गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आग्रह किया है। शौरी की भी संबधित मामले से जुड़ी याचिका पर भी सुनवाई होनी थी, लेकिन लिस्ट में रजिस्टर्ड नहीं होने के कारण उस पर सुनवाई नहीं हो पाई।हालांकि शौरी की ओर से सुनवाई करने का आग्रह किया, लेकिन लिस्टिंग में इंद्राज नहीं हो पाने के कारण कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया। अब संभवत अगले दिन सुनवाई हो। हालांकि आज के आदेशों के बाद मामले में उसकी इतनी अहमियत नहीं रह जाती है।

अधिवक्ताओं ने ये दिए थे तर्क

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी व राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता निशांत बोड़ा ने प्रदीप बेजल की ओर से तर्क रखते हुए 77 वर्षीय बेदाग छवि का प्रशासनिक अधिकारी बताया। अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि ऐसे परिस्थितियों में गैर जमानती वारंट जारी किया जाता है, तब व्यक्ति के स्वेच्छा से कोर्ट में उपस्थित नहीं होने की आशंका हो या पुलिस समन देने के लिए ढूंढने में असमर्थ है या उस व्यक्ति को तुरंत कस्टडी में नहीं लिया तो वह किसी को नुकसान पहुंचा सकता है। उनके याचिकाकर्ता के साथ ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी। अधिवक्ताओं ने ऑनलाइन हियरिंग में हाईकोर्ट में कहा कि अधीनस्थ कोर्ट ने बिना दिमाग का इस्तेमाल किए गिरफ्तारी वारंट के आदेश जारी कर दिए, जो कि अनुचित है। उन्होंने कहा कि यह पुराना व प्रचलित कानून है कि कोई भी कोर्ट इस तरह से किसी को भी गैर जमानती वारंट जारी नहीं कर सकती है।इंदरमोहन गोस्वामी बनाम उत्तराखंड तथा रघुवंश देवचंद भसीन बनाम महाराष्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित कर रखा है कि समन जारी करने से पूर्व प्रथम अवस्था में गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं किया जा सकता है।


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