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घर से निकलेे जूठन को बेकार नहीं जाने दिया जा रहा, कचरे व जूठन से लाखों कमा रही डूंगरपुर नगर परिषद

कचरे और जूठन से कोई नगर निकाय हर माह लाखों की कमाई की जाए यह सोच मुश्किल भले ही लगे लेकिन राजस्थान में डूंगरपुर नगर परिषद ने इसे साबित कर दिखाया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 03:50 PM (IST)Updated: Thu, 16 May 2019 03:50 PM (IST)
घर से निकलेे जूठन को बेकार नहीं जाने दिया जा रहा, कचरे व जूठन से लाखों कमा रही डूंगरपुर नगर परिषद

उदयपुर, सुभाष शर्मा। कचरे और जूठन से कोई नगर निकाय हर माह लाखों की कमाई की जाए, यह सोच मुश्किल भले ही लगे लेकिन राजस्थान में डूंगरपुर नगर परिषद ने इसे साबित कर दिखाया है। एक मिशन के तहत शुरू किए गए इस कार्य से नगर परिषद डूंगरपुर अब हर माह तीन से चार लाख रुपये प्रतिमाह की कमाई कर रही है।

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कचरे और जूठन से नगर परिषद जैविक खाद बनाकर बेच रही है। डूंगरपुर नगर परिषद में वर्ष 2015-16 से शहर के गीला कचरा और सूखा कचरा अलग-अलग एकत्रित करने का मानस बनाया। शुरुआत में लोगों के लिए यह अटपटा था लेकिन नगर परिषद के कर्मचारियों ने एक सोच और एक मिशन के तहत इस काम को लिया और चुनौतीभरे इस काम को पूरी लगन से कर दिखाया। अब कचरे से हर माह दो से तीन टन जैविक खाद मिलने लगा है। इससे नगर परिषद को रूटीन आय शुरू हो गई है। रसोईघरों से घर-घर से निकलने जूठन को अब बेकार नहीं जाने दिया जा रहा है। इस कचरे को एकत्रित करके लेड़सेंड फील ले जाकर वर्मी कंपोस्ट बदला जा रहा है। इसमें बड़ी मात्रा में रसोई से निकलने वाला कार्बनिक वेस्ट भी शामिल है। शुरूआती चरण में थोड़ी परेशानी अवश्य हुई

लेकिन अब यह काम दैनिक किया जा रहा है। इससे तैयार जैविक खाद अब आम आदमी अपने घरों में हरियाली बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि किसान भी उसका भरपूर उपयोग करने लगे हैं। इससे जहां लोगों को रासायनिक खाद से मुक्ति मिली है, वहीं इसका फायदा शहर और शहरवासियों को होने लगा है। 

 

बढ़ती जा रही है खाद की डिमांड

बाजार में वर्मी कंपोस्ट खाद की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है। शुरूआती सालों में जहां इसे मिशन के रूप में लिया गया है, वहीं अब यह आदत बनने लगी है। कचरे और जूठन से बनी जैविक खाद को लोग बाजार से सात से आठ रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीद रहे हैं। आगमी फसली सीजन में जैविक खाद की मांग बढऩे की उम्मीद की जा रही है। नगर परिषद के इस मिशन के बाद आम लोगों की भी सोच बदली है और वह भी मानने लगे है कि इससे फसल को नुकसान नहीं होगा। वहीं, जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बरकरार ही नहीं रहेगी बढ़ेगी

बढ़ेगी। 

पहले डंपिंग यार्ड में फेंका जाता था कचरा

इस अभियान से पहले शहर का सारा कचरा डंपिंग यार्ड में फेंका जाता था। जिसे शहर के निकटवर्ती भंडारिया घाटा में एकत्रित किया जाता था। इससे बदबू फैलती वहीं कचरा उडक़र आसपास के घरों और कॉलोनियों में फैलता था। इसके बाद इसी यार्ड में पिट्स या वैज्ञानिक डिजाइन के गड्ढ़े बनाए गए। यहां बारिश से पहले शेड की व्यवस्था की गई है। इससे शहर के प्रतिदिन 5 से 6 टन कचरे को खाद में बदला जा रहा है। इस खाद में 3 से 4 टन जैविक खाद बनती है। इससे अब कचरा लगभग गायब हो गया। रसोई का वेस्ट सहित ऑर्गेनिक पदार्थ को किण्वन प्रक्रिया से खाद बनाई जा रही है।

इनका कहना है

पूर्व में नगर निकाय स्वयं की आय बढ़ाने के सिर्फ जमीन बेचकर ही कमाई की जाती थी। अब परिषद को प्रति माह खाद बेचकर कमाई हो रही है। साथ ही शहर सफाई में अपने जैसे शहरों में देश में अव्वल हो गया।

-के.के. गुप्ता, सभापति, नगर परिषद, डूंगरपुर

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