राज्य पशु बनाने के बावजूद रेगिस्तान का जहाज कहा जाने वाला ऊंट की संख्या में आई गिरावट
प्रदेश में नई सरकार आने के बाद अब इस कानून में बदलाव की कवायद चल रही है। इस बारे में ऊंटपालकों और पशु पालकों तथा पशु चिकित्सकों से सुझाव मांगे गए हैं।
मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान की पहचान माने जाने वाले ऊंट भविष्य में हो सकता है कि सिर्फ किताबों और चित्रों में नजर आएं। प्रदेश में पिछले सात वर्षो में ऊंटों की संख्या में 34 प्रतिशत की कमी आई है। यह स्थिति तब है कि जबकि राजस्थान की पिछली भाजपा सरकार के समय ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दे दिया गया था।
राजस्थान में ऊंट का विशेष स्थान
देश भर के पशुओं की गणना के हाल में सामने आए आंकड़ों में राजस्थान में ऊंटों की यह स्थिति सामने आई है। राजस्थान में ऊंट की अपनी उपयोगिता के कारण पशुपालन में इसका विशेष स्थान रहा है। पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में ऊंट आवागमन ही नहीं, बल्कि खेती और दूध और आपूर्ति का भी प्रमुख साधन रहा है।
ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता
ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है, क्योंकि यह गर्म रेत पर बहुत कम पानी में भी आसानी से लंबी दूरी तय कर लेता है। यही कारण रहा है कि पश्चिमी राजस्थान की अर्थव्यवस्था में ऊंटों का विशष स्थान रहा है, लेकिन हाल में सामने आए पशु गणना के आंकड़े ऊंटों के धीरे-धीरे लुप्त होने के संकेत दे रहे हैं।
राजस्थान में ऊंटों की संख्या में गिरावट
इन आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में वर्ष 2012 में ऊंटों की संख्या 3.26 लाख थी, जो घट कर 2.13 लाख रह गई है। राजस्थान ही नहीं देश भर में भी ऊंटों की संख्या में 37 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2012 में देश भर में करीब चार लाख ऊंट थे जो अब घट कर करीब ढाई लाख रह गए हैं। राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी ऊंट पाए जाते हैं, लेकिन सभी जगह ऊंटों की संख्या में गिरावट आई है।
परिवहन के आधुनिक साधनों ने ऊंट की उपयोगिता कम कर दी
राजस्थान में पशुपालन विभाग के वरिष्ठ वेटनेरी अधिकारी डॉ. तपेश माथुर कहते हैं कि एक समय ऊंट राजस्थान में परिवहन का प्रमुख साधन हुआ करता था। विशेषकर पश्चिमी राजस्थान मे ऊंटों से ही सारे काम होते थे, लेकिन अब परिवहन के आधुनिक साधन आ गए हैं। रेत पर चलने वाले स्कूटर और गाडि़यां तक आ गई हैं। ऐसे में परिवहन के साधन के रूप में ऊंट की उपयोगिता काफी कम हो गई है। खेती में भी ट्रेक्टर व अन्य उपकरण काम आने लगे हैं। ऊंट के दूध का उपयोग पश्चिमी राजस्थान में ही होता था, लेकिन समय के साथ अब इसमें भी कमी आई है। इन सब कारणों से ऊंट की उपयोगिता पशुपालकों के लिए कम होती जा रही है और वे इसके प्रजनन में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे है।
राजस्थान में ऊंट को राज्य पशु का दर्जा
राजस्थान में ऊंटों को संरक्षण प्रदान करने के लिए पिछली भाजपा सरकार के समय ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया था। विधानसभा में कानून पारित कर ऊंटों को किसी भी तरह से मारने या इन्हें राजस्थान से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कानून में यहां तक प्रतिबंध लगाया गया था कि ऊंट को कोई गंभीर या लाइलाज बीमारी हो जाए तो वह भले ही बीमारी से मर जाए, लेकिन डॉक्टर भी उसे नहीं मार सकते थे। इसी तरह राजस्थान से बाहर ले जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
प्रतिबंध लगने से ऊंटों का संरक्षण कम नुकसान ज्यादा हुआ
पशुपालन क्षेत्र से जुडे़ विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रतिबंध से ऊंटों का संरक्षण होने के बजाय उन्हें नुकसान ज्यादा हुआ है। इसका कारण यह है कि पहले ऊंट के बीमार होने या बूढ़ा होने पर उसे बेचना आसान था। उसे राज्य से बाहर भी भेजा जा सकता था। ऊंट का चमडा अच्छी कीमत देता था। अब यह सब संभव नहीं है। ऐसे में जब ऊंट बूढ़ा या बीमार हो जाता है वह ऊंटपालक के लिए बड़ा बोझ बन जाता है। यही कारण है कि ऊंटपालक अब ऊंटों के प्रजनन मे ज्यादा रुचि नहीं लेते हैं।
कानून में बदलाव की चल रही है कवायद
प्रदेश में नई सरकार आने के बाद अब इस कानून में बदलाव की कवायद चल रही है। इस बारे में ऊंटपालकों और पशु पालकों तथा पशु चिकित्सकों से सुझाव मांगे गए हैं। बताया जा रहा है कि ऊंट के मारने पर तो प्रतिबंध रहेगा, लेकिन यदि वह किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हो जाता है तो उसे चिकित्सकीय पद्धति से मारने की इजाजत देने पर विचार चल रहा है। इसके अलावा ऊंट को राज्य से बाहर ले जाने पर लगे प्रतिबंध में भी कुछ छूट देने की तैयारी की जा रही है।