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राजस्थान में स्वाइन फ्लू से आठ दिन में 14 लोगों की गई जान

swine flu in Rajasthan. राजस्थान में स्वाइन फ्लू से आठ दिन में 14 लोगों की मौत हो गई है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 06:52 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:52 PM (IST)
राजस्थान में स्वाइन फ्लू से आठ दिन में 14 लोगों की गई जान
राजस्थान में स्वाइन फ्लू से आठ दिन में 14 लोगों की गई जान

जयपुर, जेएनएन। राजस्थान में स्वाइन फलू इस वर्ष एक बार फिर कहर ढाता दिखाई दे रहा है। नए साल के पहले आठ दिन में ही इस रोग से 14 लोगों की मौत हो गई है। इनमें सबसे ज्यादा नौ मौतें खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शहर जोधपुर में हुई है। इसके अलावा 341 मरीज पाॅजिटिव पाए गए है। इनमें भी जयपुर के बाद सबसे बडा आंकड़ा जोधपुर का ही है। जयपुर में 111 और जोधपुर में 99 मरीजों में स्वाइन फलू पाया गया है।

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राजस्थान में वर्ष 2009 मे स्वाइन फलू का पहला आउटब्रेक हुआ था और तब से अब तक इस रोग से राजस्थान में 1220 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। इनमें से 224 लोग तो पिछले वर्ष ही मारे गए थे। नए साल की शुरुआत भी बहुत अच्छी नहीं हुई है। साल की शुरुआत से ही स्वाइन फलू जानलेवा साबित हो रहा है। हर रोज औसतन 50 नए मरीज सामने आ रहे हैं और दो मौतें हो रही हैं। मंगलवर को भी इस रोग के 57 नए मरीज सामने आए हैं और तीन मौतें हुई हैं।

इस रोग पर काबू पाने के मामले में चिकित्सा विभाग की बैठकें और दावे नाकाफी साबित हो रहे हैं। इंतजामों का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन रोग पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार हालात की समीक्षा कर चुके हैं और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा भी रोजाना समीक्षा कर रहे हैं, लेकिन इसका असर नजर नहीं आ रहा है। चिकित्सा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह संक्रामक रोग है और सर्दी का असर ज्यादा होने के कारण प्रकोप ज्यादा है। सर्दी का असर खत्म होने के बाद स्थिति सामान्य हो जएगी। वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि इस रोग की कोई अलग दवाई नहीं है। ऐसे में बचाव ही एक मात्र उपाय है।

खुद की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही बचा सकती है

जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅ. रमन शर्मा कहते है कि इस रोग से बचाव के लिए खुद की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होना जरूरी है। हालांकि इस रोग से बचाव के लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है जो हर वर्ष अप्रेल या सितम्बर में लगवा लेना चाहिए, लेकिन यह वैक्सीन अभी महंगा है, इसलिए सरकारी स्तर पर बडे पेैमाने पर इसे लगाया जाना सम्भव नहीं हो पा रहा है। उन्होने कहा कि यह वायरस करीब 400 साल पुराना है और भारत में 1989 में आ गया था। इसकी प्रकृति में छोटे मोटे बदलव होते रहते है, लेकिन समय रहते पहचान कर ली जाए तो मौजूदा दवाइयों से बचाव संभव है।

आयुर्वेद और घरेलू उपाय भी हैं कारगर

इस रोग से बचाव में आयुर्वेद और कुछ घरेलू उपाय भी कारगर हैं। जयपुर में स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. सीआर यादव का कहना है कि इस रोग से बचाव के लिए आयुर्वेद में एक काढा है। यह काढा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसका नियमित सेवन किया जाए तो रोग से बचा जा सकता है। इसके अलावा सर्दी में प्रतिदिन कच्ची हल्दी, आंवला, इस मौसम में आने वाले फलों और सूखे मेवों का सेवन किया जाए। प्रतिदिन आधा घंटा धूप में बैठा जाए और घर से निकलते समय नाक में तिल्ली के तेल की एक बूंद डाल ली जाए तो इस रोग से पूरी तरह बचाव संभव है। उन्होंने कहा कि संस्थान में यह काढ़ा उपलब्ध है।


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