Jaipur Literature Festival: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में दूसरे दिन अर्थव्यवस्था पर हुई चर्चा
Jaipur Literature Festival कोरोना महामारी के कारण इस बार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल वर्चुअल हो रहा है। प्रतिवर्ष शहर के डिग्गी पैलेस में होता था।फेस्टिवल के दूसरे दिन की शुरुआत गढ़वाली और कुमाऊं लोक संगीत के साथ हुई। ढोलक हारमोनियम और बांसुरी लोक संगीत में साज थे।
जागरण संवाददाता, जयपुर। Jaipur Literature Festival: साहित्य के महाकुंभ जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शनिवार को कई सत्र हुए। एक सत्र में देश के विख्यात अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि कोरोना के बाद देश की अर्थव्यवस्था ऐसी स्थिति में है जैसी विश्वयुद्ध के दौरान भी नहीं होती। उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़ों में बहुत गलतियां होती हैं, उनके आधार पर अर्थव्यवस्था के बारे में सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसी सत्र में प्रो. वृजेंद्र उपाध्याय, रघुवीर पूनिया और सुरेश देमन ने चर्चा करते हुए कहा कि नोटबंदी और जीएसटी पहल ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला चुके थे, जिस पर कोरोना का कहर टूट पड़ा है। स्टॉक मार्केट पर चर्चा करते हुए पूनिया ने कहा कि कहते हैं कि सेंसेक्स को अर्थव्यवस्था का मापक नहीं कहा जा सकता। उपाध्याय ने विश्व बैंक के आंकड़े दर्ज करते हुए पिछले दिनों पेश किए गए बजट पर अपनी राय रखी।
कोरोना महामारी के कारण इस बार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल वर्चुअल हो रहा है। प्रतिवर्ष शहर के डिग्गी पैलेस में होता था।फेस्टिवल के दूसरे दिन की शुरुआत गढ़वाली और कुमाऊं लोक संगीत के साथ हुई। ढोलक, हारमोनियम और बांसुरी लोक संगीत में साज थे। केवल तीन साजों के रिदम के संयोजन के बीच निकले इस लोकगीत की सभी ने प्रशंसा की। हिमाली मोऊ लोक संगीत के कलाकारों ने जो गीत पेश किया उसमें कलाकारों ने बताया कि किस तरह से पीतल को पीट-पीट कर कैसे उसे अलग रूप दिया जाता है। इस दौरान नेपाल और पिथौरागढ़ के बीच मौजूद काली गंगा नदी और बॉर्डर के खुलने व बंद होने के साथ ही वहां की गतिविधियों को दर्शाने वाले लोकगीत भी प्रस्तुत किए गए।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की इस तरह हुई वर्चुअल शुरुआत
साहित्य के महाकुंभ नाम से देश-दुनिया में प्रसिद्ध जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुक्रवार को वर्चुअल की शुरुआत हुई। आयोजन की शुरुआत के मौके पर पहले सत्र में प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी और शास्त्रीय गायिका विधा शाह का सत्र हुआ। शास्त्रीय, लोक और फिल्मी संगीत पर इस सत्र में चर्चा हुई। इस दौरान गीत-संगीत की सभी विधाओं में प्रसून जोशी ने लोक संगीत की तुलना एक तराशे हुए पत्थर से की। उन्होंने कहा कि लोक संगीत ऐसा है कि इसको बार-बार सुनने के बावजूद पुराना नहीं पड़ता है। यह उसकी खूबसूरती है। प्रसून जोशी ने कहा कि कई बार कठिन शब्दों पर कुछ लोगों को आपत्ति होती है। असल में मूल भाव में मिलावट से आसान तो बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन उसका मूल भाव खत्म हो जाता है।
लोक संगीत हो या शास्त्रीय संगीत सभी के साथ एक ही बात होती है। कठिन शब्दों का विलोपन करने से उसकी गहराई और खूबसूरती नहीं रहती। उन्होंने कहा कि किसी शब्द को यदि कठिन समझकर हम मिलावट करेंगे तो वह नहीं चलेगा। उसकी लोक भावना नष्ट हो जाएगी। जोशी ने कहा कि लोक संगीत हमारी आत्मा है, क्योंकि वह संस्कृति के कण-कण में है। विघा शाह ने कहा कि लोक-संगीत की उपस्थिति हिंदुस्तानी संगीत की दुनिया में रही है। उसमें 200 साल पहले ठुमरी और दादरा गाया जाता था। लोक संगीत हर तबके का संगीत है। इस पर जोशी ने कहा इसे भी ठीक से समझने की जरूरत है। लोक संगीत में भी ठूमरी का अंश है। उल्लेखनीय है कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन प्रतिवर्ष फरवरी में जयपुर के डिग्गी पैलेस होटल में होता है, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण वर्चुअल आयोजन हो रहा है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल दौरान देश-विदेश की हस्तियां विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करती हैं। यह सिलसिला पिछले काफी समय से जारी है। इस बार भी देश-विदेश के अहम मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है।