Rajasthan: तीन तलाक कानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाओ की स्थिति में सुधार, आने लगे बेहतरीन परिणाम
मुस्लिम महिलाओं के लिए यह कानून संवैधानिक - मौलिक लोकतांत्रिक एवं समानता का अधिकार बन गया हैजिससे महिलाओ की स्थिति में अब काफी सुधार आया है । कानून बनने के बाद ऐसे मामलों में 82 प्रतिशत की कमी आयी है।
जोधपुर, रंजन दवे। मुस्लिम विवाह संरक्षण अधिनियम 2019 के अब सार्थक व् बेहतरीन परिणाम सामने आने लगे है।केंद्र सरकार द्वारा 30 जुलाई 2019 को तीन तलाक को लेकर लागू किए गए मुस्लिम विवाह संरक्षण अधिनियम 2019 से मुस्लिम समाज में महिलाओं के हालात सुधरने लगे हैं। मुस्लिम महिलाओं के लिए यह कानून संवैधानिक - मौलिक लोकतांत्रिक एवं समानता का अधिकार बन गया है,जिससे महिलाओ की स्थिति में अब काफी सुधार आया है । कानून बनने के बाद ऐसे मामलों में 82 प्रतिशत की कमी आयी है।
तीन तलाक पुरुष वर्चस्व की निशानी बना तीन तलाक अब कहानी बनता जा रहा है। धर्म के नाम पर डराकर तीन तलाक को कभी चुनौती देने की कोशिश नहीं की गई थी, लेकिन अब इस कानून से मुस्लिम महिलाओ को भय से आजादी मिली है। पहले महिलाओं को हर वक्त यह डर सताता था की मामूली झगड़े पर कही उसका पति उसे तलाक ना दे दे। इतब ही नही मुस्लिम पुरुष भी तीन तलाक के खिलाफ बने कानून से खुश है। जिन घरों की बहनों, बेटियों को तीन तलाक की मुश्किलों से गुजरना पड़ा था, वे इससे खुश है। लोगो का मानना है की अब कम से कम आने वाली पीढ़ी की बेटियों को यह डर नहीं सताएगा कि उन्हें बिना कारण तलाक दिया जा सकता है।हालांकि, कानून में इनके अनुरूप सुधार की थोड़ी गुंजाइश अभी बाकी है।
जोधपुर महिला पुलिस थाना पूर्व की थाना अधिकारी निशा भटनागर के अनुसार कानून लागू होने के बाद उस प्रकार के मामलो में कमी आई है। पुरुष महिला को तीन तलाक बोल कर घर से निकाल देता था और उन पर अत्याचार किया करते थे, लेकिन गत वर्ष में तीन तलाक के एक दो मामले ही दर्ज हुए है ,उन्होंने इस कानून को महिलाओ के हित में बताया। और कहा की अब इसके सकारात्मक परिणाम आने लगे है। लोगो ने इस कानून की कठोरता को माना है ऐसे अपराधों में दंड का भी प्रावधान है जिससे समाज में मुस्लिम महिलाओ की स्थिति में सुधार हुआ है।
पहले थी यह स्थिति
मुस्लिम विवाह संरक्षण अधिनियम 2019 के आने से पहले ज्यादातर महिला थानों में दहेज, प्रताड़ना , मारपीट से जुड़े मामले धारा 498 - ए के मामले दर्ज होते थे, । दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा 498-ए का प्रावधान किया गया था। इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया था । अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यह कानून सभी जाती धर्म के लिए लागू था। जिसका मिसयूज भी जमकर हुआ और आज तक होता आ रहा है।
क्या कहते है आकड़े
कानून बनने के बाद पुरे हिंदुस्तान में इस तरह के मामलों में लगभग 82 प्रतिशत की कमी देखी गई है। वही राजस्थान भर में जहा इस कानून के लागू होने से पूर्व प्रति वर्ष 700 से 900 मामले दहेज प्रताड़ना के दर्ज होते थे और बाद कुछ तलाक तक पहुंच जाते थे वे अब इस कानून के लागू होने के बाद 80 से 90 तक ही दर्ज होते है। जोधपुर जिले में इस कानून के बनने से पूर्व महिला थानों में दहेज प्रताड़ना के 250 से 300 के लगभग प्रति वर्ष मामले दर्ज होते थे जिसमे से तलाक तक 10 से 12 मामले पहुंचते थे। तलाक - ए - बिद्दत पर कानून बनने के बाद अब तक जोधपुर जिले के दोनों महिला थानों में इस अधिनियम के तीन से चार मामले ही दर्ज हुए है। यह आकड़े दर्शाते है की बदलते समाज में तीन तलाक के मामले कम हुए हैं, जिसकी पुष्टि कानून लागू होने के बाद यह आंकड़े स्वत: ही कर रहे हैं।
जानकारों का मत :
अध्यक्ष, राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन रणजीत जोशी-पहले जो तलाक मामले थे जिनमे पुरुष महिलाओ को फोन से मेसेज के जरिये और फोन पर बोल कर तलाक दे देता था, अब वो अपराध बन गया है। इस अधिनियम की धारा 3 उसके तहत कोई भी मुस्लिम पति इस तरह से तलाक देता है तो वो गैर क़ानूनी होगा। उससे महिला के अधिकार खत्म नहीं होंगे और उसको तलाक नहीं माना जायेगा। इसी धारा चार के तहत तीन वर्ष के कारावास व आर्थिक दंड का भी प्रावधान है ।
राजस्थान काजी कौंसिल व शहर काजी, जोधपुर प्रदेशाध्यक्ष वाहिद अली-मुस्लिम समाज में तीन तलाक का काफी अधिक मिसयूज था। जो लोग बात-बात में पत्नी को तीन तलाक दे देते थे, अब उनमें कानून का भय उत्पन्न हुआ है। इससे तीन तलाक के में भी काफी कमी आई है। इसी का नतीजा है कि समाज में तीन तलाक के केस अब न के बराबर रह गए हैं ।महिलाओं के हालात पहले से काफी बेहतर हुए हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस कानून को लागू करने के लिए आभार प्रकट किया है।
शिक्षाविद, मुस्लिम स्कॉलर डॉक्टर अब्दुल रहमान खताई- एक बार में तीन बार तलाक−तलाक−तलाक (तलाक−ए−बिद्दत) कह कर किसी महिला की जिंदगी बर्बाद कर देने की 14 सौ साल पुरानी कुप्रथा अब इतिहास के पन्नों में सिमट गई है। अब मुस्लिम समाज में भी लड़कियां पढ़ी-लिखी हैं, जो इस तरह के रिवाजों को बिल्कुल नहीं मानतीं हैं।इस्लाम में तीन तलाक को नाजायज करार दिया गया है।