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नहीं बची मोलेला में जान फूंकने वाली मिट्टी, शिल्पकला के लिए विश्वभर में मशहूर हैटेराकोटा आर्ट

ण शिल्पकला के लिए विश्वभर में मशहूर है मोलेला का टेराकोटा आर्ट। जहां देश-विदेश के कलाकार यहां की शिल्पकला सीखने आते हैं लेकिन अब यहां मिट्टी का संकट गहराने लगाने हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 11 Jul 2019 12:44 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jul 2019 12:44 PM (IST)
नहीं बची मोलेला में जान फूंकने वाली मिट्टी, शिल्पकला के लिए विश्वभर में मशहूर हैटेराकोटा आर्ट
नहीं बची मोलेला में जान फूंकने वाली मिट्टी, शिल्पकला के लिए विश्वभर में मशहूर हैटेराकोटा आर्ट

उदयपुर, सुभाष शर्मा। मृण शिल्पकला के लिए विश्वभर में मशहूर है मोलेला का टेराकोटा आर्ट। जहां देश-विदेश के कलाकार यहां की शिल्पकला सीखने आते हैं लेकिन अब यहां मिट्टी का संकट गहराने लगाने हैं। गुणवत्तायुक्त मिट्टी नहीं मिलने से मृण शिल्पकारों को मनमुताबिक आकार देने में पसीने छूटने लगे हैं। यहां

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के शिल्पकारों की मानें तो अब मू र्तियों पर किए जाने वाला बारीक काम उतनी सफाई और गुणवत्ता से नहीं हो  रहा, जिसके वह पारंगत हैं।

उदयपुर संभाग के राजसमंद जिला मुख्यालय से लगभग पंद्रह किलोमीटद दूर मोलेला गांव में दो दर्जन से अधिक परिवार टेराकोटा आर्ट से प्रतिमाएं बना रहे हैं। यहां तैयार मृण शिल्प के लिए मोलेला और पास के गांव सेमा के दो तालाबों में विशेष मिट्टी पाई जाती है। जिसमें यहां की विशेष चिकनी मिट्टी का सबसे बड़ा योगदान है। टेराकोटा को पहचान दिलाने में यहां की विशेष जिसका भंडार अब लगभग समाप्त होने को है।

मोलेला के टेराकोटा के लिए जिस गुणवत्ता वाली मिट्टी चाहिए, वह मोलेला के आसुला तालाब और सेमा गांव के सोलह का सापा तालाब में पाई जाती है। मोलेला के आसुला तालाब को वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत गहरा कर दिया गया, जिससे इसकी गुणत्तापूर्ण मिट्टी समाप्त हो गई। वहीं सेमा के तालाब पर अतिक्रमण और भराव के चलते यहां की मिट्टी भी खत्म होने के कगार पर पहुंच चु की है। यहां तक आसुला तालाब के समीप ईंट भट्टा संचालकों ने भी भट्टे की पकी मिट्टी, ईंटों के टुकड़े बड़ी मात्रा में डाल दिए हैं,

जिसके चलते इस तालाब की मिट्टी कंकरीले हो गई है।

मूर्ति निर्माण के लिए चिकनाहट बेहद जरूरी है। बारिश के दौरान ईंटों की टुकड़ी तथा भट्टों की पकी मिट्टी तालाब की अच्छी मिट्टी में मिलने से उसकी चिकनाहट समाप्त होने लगी है। इस मिट्टी से बनाए जा रहे मृण शिल्प में दरार आने की समस्या बनी रहती है। जबकि एक समय था जब यहां की मिट्टी उदयपुर और पाली जिले के कुम्हार बर्तन बनाने के लिए ले जाते थे। वर्तमान में यहां के कुम्हारों के लिए ही पर्याप्त मिट्टी नहीं बची है। मृण शिल्प के कलाकार मनोहर प्रजापत बताते हैं कि जिन लोगों ने मिट्टी का भंडारण किया हुआ था, उनका काम अभी भी जारी है। हालांकि वह स्टॉक कब तक चलेगा, एक दिन तो खत्म होगा।

टेराकोटा रंगों से मिलता है जीवंत रूप

मोलेला की मृण शिल्प अंतरराष्ट्रीय पहचान रखती है। यहां के कलाकार मिट्टी से विभिन्न प्रकार के दीपक ही नहीं, बल्कि भगवान श्रीनाथ, महाराणा प्रताप, हाथी, घोड़े, बेल दीपक स्टैण्ड, गणेश जी, विविध प्रकार की घंटियां, स्थानीय लोक देवताओं की प्रतिकृति बनाते हैं। यहां के मृण शिल्पकार गीली मिट्टी को पहले विभिन्न प्रकार के सांचों में डालते हैं तथा बाद में चाक के अलावा विभिन्न प्रकार के औजारों से शिल्प को तैयार किया जाता है। बाद में इसे पकाया जाता है। अंत में टेराकोटा रंगों का उपयोग कर उसे आकर्षक बनाया जाता है।


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