श्री गुरु नानक देव जी के चरण पड़ने से धन्य हो गई तरनतारन की धरती
। पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को लेकर विश्व भर में उत्साह देखने को मिल रहा है।
धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को लेकर विश्व भर में उत्साह देखने को मिल रहा है। ऐसे में जिला तरनतारन के भी कई गांव ऐसे हैं जो गुरु जी की चरणछोह प्राप्त हैं। इन गांवों में भी धार्मिक समागम करवाए जा रहे हैं जिनमें लोग भाग लेकर बाबा नानक जी की बाणी से जुड़ रहे हैं। गुरु जी की चरणछोह प्राप्त इन गांवों के विकास के लिए पंजाब सरकार द्वारा एक-एक करोड़ रुपये की ग्रांट जारी की गई है। पेश है इस पर आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट: गुरुद्वारा तपिआना साहिब खडूर साहिब की धरती पर आठ गुरु साहिबान जी के चरण पड़ चुके हैं। पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी इस नगर में शबद कीर्तन किया करते थे। गुरु जी के साथ भाई बाला जी, भाई मरदाना जी भी होते थे। इसी भूमि पर दूसरी पातशाही श्री गुरु अंगद देव जी ने भाई बाला जी से श्री गुरु नानक देव जी की जन्म साखी लिखवाई थी। जन्म साखी पूरी होने के बाद भाई बाला जी ने श्री गुरु अंगद देव जो को कहा कि अब मैं वृद्ध अवस्था में हूं और मुझे सचखंड जाने की अनुमति दें। यह सुनकर श्री गुरु अंगद देव जी ने कहा कि अभी आप की दो महीने की आयु बाकी है। भाई बाला जी के परलोक सुधारने पर गुरु अंगद देव जी ने अपने हाथों से उनका अंतिम संस्कार किया था। गुरु जी की याद में यहा पर गुरुद्वारा तपिआना साहिब आज भी मौजूद है। गुरुद्वारा के सरोवर की दूसरी ओर वह स्थान भी है जहां पर गुरु अंगद देव जी तप किया करते थे। गुरुद्वारा पहली पातशाही भारत-पाक सीमा के साथ सटे कस्बा खालड़ा में श्री गुरु नानक देव जी की याद में गुरुद्वारा पातशाही पहली सुशोभित है। 1501 ईसवी में श्री गुरु नानक देव जी पट्टी के किसानों को किरत करने का उपदेश देकर जब राय भोए की तलवंडी के लिए रवाना हुए तो कुछ देर के लिए उन्होंने खालड़ा में विश्राम किया। गुरु जी ने संगत को यहा पर किरत करने, नाम जपने और वंड छकने का उपदेश दिया। गुरु नानक देव जी के साथ भाई बाला जी और भाई मरदाना जी भी थे। खालड़ा में श्री गुरु नानक देव जी ने सर्व साझीवालता का संदेश देते हुए भेदभाव मिटाने लिए धर्मशाला भी बनवाई। इसी जगह पर आज गुरुद्वारा पातशाही पहली मौजूद है। गुरुद्वारा बेरी साहिब कस्बा खालड़ा में धर्मशाला का निर्माण करवाने के बाद श्री गुरु नानक देव जी गाव अमींशाह में पहुंचे थे। गुरु जी ने जाति भेदभाव मिटाने के लिए संगत को रोज दरबार में कीर्तन सुनने के लिए प्रेरित किया। गुरु जी ने गाव अमींशाह की उपजाऊ धरती का जिक्र करते कहा कि यह धरती देश दुनिया के अनाज से भरी रहेगी। इस धरती पर गुरु जी ने एक बेरी भी लगाई। इस स्थान की सेवा निभाने वाली छठी पीढ़ी के बाबा कुलवंत दास बताते हैं कि गुरु जी की याद में करीब 50 वर्ष पहले यहा पर गुरुद्वारा साहिब बनाया गया। इस गुरद्वारा साहिब में श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के मौके पर विशेष कार्यक्रम करवाए जाते हैं।
गांव पट्ठेविंडपुर पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू जी के जन्म स्थान के तौर पर जाने जाते गाव लुहार को 600 वर्ष पूर्व गाव पट्ठेविंडपुर के नाम से जाना जाता था। अब यहां पर गुरुद्वारा साहिब डेहरा साहिब स्थापित है। इसी गाव में बाबा मेहता कालू जी का जन्म हुआ और यहां पर उन्होंने पढ़ाई की। पढ़ाई में होशियार होने कारण बाबा मेहता कालू जी को पटवार की नौकरी मिल गई। राय बुलार के साथ बाबा मेहता कालू जी का काफी प्रेम था। राय बुलार के कहने पर बाबा मेहता कालू गाव पट्ठेविंडपुर को छोड़कर राय भोए की तलवंडी (अब पाकिस्तान) चले गए। वहा पर माता तृप्ता जी की कोख से श्री गुरु नानक देव जी ने अवतार लिया। राय भोए की तलवंडी को अब ननकाना साहिब जी के नाम से जाना जाता है। पिता जी के कहने पर कारोबार के लिए गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी जाते समय जब पता चला कि गाव पट्ठेविंडपुर उनका पुश्तैनी गाव है तो वह कुछ समय के लिए यहा पर ठहर गए। गुरुद्वारा नानक पड़ाओ साहिब 22 कतक 1501 को पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी जगत को तारने के लिए सुल्तानपुर लोधी से अपने बचपन के साथी भाई मरदाना जी को साथ लेकर पैदल चल पड़े। ब्यास दरिया के पास तीन दिन व तीन रातें गुजारने के बाद उन्होंने श्री गोइंदवाल साहिब नगर बसाने के लिए बख्शीश की। पैदल चलते हुए गुरु नानक देव जी कस्बा फतेहाबाद पहुंचे। यह वह कस्बा है जो शेर शाह सूरी मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। इस धरती पर चरण रखते हुए श्री गुरु नानक देव जी ने बलिहारी कुदरित वसिया।। तेरा अंत न जाई लखिया।। का उच्चारण किया। इसी स्थान पर गुरुद्वारा गुरु नानक पड़ाओ है। गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी से भाई मरदाना जी के साथ पैदल यात्रा पर निकले श्री गुरु नानक देव जी ने फतेहाबाद तक का सफर तीन रातों और तीन दिन में पूरा किया। इस दौरान श्री गुरु नानक देव जी ने अपने रबाबी भाई बाला जी के साथ एक दिन और एक रात दरिया ब्यास के किनारे पड़ते गाव दारापुर (वैरोंवाल) में विश्राम किया। श्री गुरु नानक देव जी ने यहां पर संगत को बाणी से जोड़ने का उपदेश दिया। देश की आजादी के बाद इस जगह पर गुरुद्वारा साहिब बनाया गया। करीब 25 वर्ष पहले गुरुद्वारा साहिब को सुंदर रूप देते हुए बकायदा गुंबद तैयार करवाए गए। इस गुरुद्वारा साहिब में हेड ग्रंथी की सेवा निभा रहे भाई बिक्रमजीत सिंह ने बताया कि 23 नवंबर को गुरुपर्व के मौके विशाल नगर कीर्तन सजाया जाएगा। यह नगर कीर्तन सुल्तानपुर लोधी पहुंचेगा। श्री गोइंदवाल साहिब बहन बेबे नानकी जी से आज्ञा लेकर श्री गुरु नानक देव जी जब दरिया ब्यास के रास्ते अमृतसर की ओर निकले तो उनके पास सात रुपये थे। गुरु जी ने सात रुपये की भाई मरदाना जी को रबाब लेकर दी। सुल्तानपुर लोधी से चलते हुए श्री गुरु नानक देव जी जंगल, थेह और उजाड़ वाले क्षेत्र में बैठ गए। वहा पर भाई मरदाना जी से रबाब सुनते शबद गायन करते रहे। इस दौरान श्री गुरु नानक देव जी की आख लग गई। आख खुली तो भाई मरदाना जी ने कहा, गुरु जी. आपकी भूख तो करतार (भगवान) ने छीन ली है। आप कोई देवता हैं या कोई निरंकार। मैं तो आदमी जगत का कीड़ा हूं। मैं आपके साथ तभी रह पाऊंगा जब मुझे खाने पीने को मिले। यह सुनकर श्री गुरु नानक देव जी प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, भाई मरदानिया फिकर न कर। इतने में एक जमींदार दूध और भुट्टे लेकर पहुंचा जबकि दूसरा जमींदार प्रसादे लाया जिसे छककर भाई मरदाना जी की भूख मिट गई। इसी जगह पर श्री गुरु नानक देव जी के आशीर्वाद से श्री गोइंदवाल साहिब नगर बसा।