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1971 की शौर्यगाथा: मामूली सी एमएमजी से चटा दी थी पाकिस्तानी सेना को धूल

भारतीय जवानों ने 1971 के जंग में अप्रतिम वीरता दिखाई थी। इस युद्ध के एक नायक कश्‍मीर सिंह ने बताया कि किए तरह भारतीय जवानों ने मामूली एमएमजी से पाक सेना को धूल चटा दी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 12:12 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 09:31 AM (IST)
1971 की शौर्यगाथा: मामूली सी एमएमजी से चटा दी थी पाकिस्तानी सेना को धूल
1971 की शौर्यगाथा: मामूली सी एमएमजी से चटा दी थी पाकिस्तानी सेना को धूल

तरनतारन, [धर्मबीर सिंह मल्हार]। भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 में हुई जंग हमारे जाबांज जवानों ने अपनी वीरता से दुश्‍मन के छक्‍के छुड़ा दिए। भारत के जवानों की बहादुरी की कहानी आज भी गर्व से सीना चौड़ा कर देती है। 1971 की जंग की बात करते ही बीएसएफ के पूर्व जवान कश्मीर सिंह की आंखें गर्व से चमक उठती हैं।

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कश्‍मीर सिंह पूरे जोश के साथ बताते हैं, लोग अभी 1965 की भारत-पाकिस्‍तान जंग को भूल भी नहीं पाए थे और पाक ने 1971 में फिर युद्ध छेड़ दिया। 1965 की ही तरह इस युद्ध में भी पाकिस्‍तान को मुंह की खानी पड़ी और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। वाकई वह गौरवशाली जीत थी। कश्‍मीर सिंह कहते हैं, मैं उस समय जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा क्षेत्र में वायरलेस पर तैनात था। जंग के दौरान मुझे भी दुश्मन के साथ दो दो-हाथ करने का अवसर मिला। जून 1967 में मैंने बीएसएफ ज्वाइन की थी और 1968 में तैनाती वायरलेस विभाग में हुई।

कश्‍मीर सिंह कहते हैं, जब 1971 में जंग का आगाज हुआ, तो मैं उस समय जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा क्षेत्र में नायब ऑपरेटर की पोस्ट पर तैनात था। कश्मीर सिंह ने बताया, बांदीपोरा से 65 किलोमीटर का सफर करने बाद बीएसएफ की टुकड़ी के साथ मुझे बड़ा पोस्ट (जगदीश गली) नीरूगरेज भेज दिया गया।

कश्‍मीर सिंह कहते हैं, लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी फौज ऊंचाई वाले क्षेत्र में थी। भारतीय क्षेत्र में मोर्चा संभाले बैठे बीएसएफ के जवान निचले क्षेत्र पर थे। 14 दिन की लड़ाई के दौरान भारतीय जवानों ने अदम्य साहस दिखाया। पाकिस्तानी फौज के पास उस समय अधिक क्षमता वाली एडवांस ब्राउनिंग मशीन गन (बीएमजी) थी, जबकि भारतीय जवानों के पास छोटी तोपें और मीडियम मशीन गन (एमएमजी) ही थी।इनसे मुकाबला करना काफी मुश्किल था, लेकिन जवानों ने जबरदस्त हौसला दिखाया। मीडियम मशीन गन इस लड़ाई में पाकिस्तानी फौज पर भारी पड़ी। आखिरकार पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेक दिए और सरेंडर कर दिया।

कश्मीर सिंह मई 2003 में इंस्पेक्टर रेंक से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें सेवाकाल में 20 अवॉर्ड मिले। कश्मीर सिंह समय-समय की सरकारों से आहत हैं। वह कहते हैं, जंग लड़ने के समय पूरी बहादुरी दिखाई। इसके बदले कई मेडल मिले, लेकिन दुख इस बात का है कि सरकार के दरबार में इन मेडलों की कोई कदर नहीं। न कोई 26 जनवरी काे गणतंत्र दिवस पर हमें याद करता है न ही 15 अगस्त को स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर।

 


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