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पहली औलाद का चेहरा देखने भी नहीं उतरा, कहा-बेरोजगार हूं बेटी को क्या मुंह दिखाउंगा

संगरूर घर पर बेटी के जन्म को 20 दिन का समय बीत गया है आज तक अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं देखा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 11:17 PM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 06:10 AM (IST)
पहली औलाद का चेहरा देखने भी नहीं उतरा, कहा-बेरोजगार हूं बेटी को क्या मुंह दिखाउंगा
पहली औलाद का चेहरा देखने भी नहीं उतरा, कहा-बेरोजगार हूं बेटी को क्या मुंह दिखाउंगा

संवाद सहयोगी, संगरूर : घर पर बेटी के जन्म को 20 दिन का समय बीत गया है, आज तक अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं देखा है। बेरोजगारी का दंश पिछले कई वर्षों से झेल रहे हैं और अब रोजगार प्राप्ति के लिए पिछले 40 दिन से पानी की 80 फीट ऊंची टंकी पर डटें हैं। अब तो रोजगार मिलने के बाद ही अपने घरों को वापस लौटेंगे, अन्यथा इस संघर्ष में ही अपनी कुर्बानी दे देंगे। ईटीटी व टीईटी पास बेरोजगार अध्यापक सुखजीत सिंह की आंखों में बेशक अपनी बेटी को न देखने के आंसू हैं, लेकिन सरकार के खिलाफ रोष भरा हुआ है।

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सुखजीत सिंह पांच बेरोजगार अध्यापकों के साथ पानी की टंकी पर संघर्ष कर रहे हैं, जिनमें तीन महिला अध्यापक भी मौजूद हैं। सर्दी के मौसम में भी सभी अध्यापक 40 दिन से टंकी पर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन घर-घर सरकारी नौकरी का वादा करके सत्ता में आई कांग्रेस सरकार उन्हें रोजार नहीं मुहैया करवा रही है।

ईटीटी व टीईटी पास बेरोजगार अध्यापक यूनियन के पांच सदस्य जसवीर कौर मानसा, गुरप्रीत कौर मानसा, जनको रानी फाजिल्का, सुखजीत सिंह पटियाला व कुलवंत सिंह फिरोजपुर ने एलान किया कि रोजगार मिलने पर ही इस संघर्ष पर विराम लगेगा। दिन रात धूप, बारिश व ठंड में पांचों टंकी पर नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो कि उनका अधिकार भी है। सुखजीत ने बताया कि जब उसकी पत्नी को गर्भावस्था में अस्पातल में भर्ती करवाया गया तो वह बेहद व्याकुल हो चुका था। परिवार को उसकी जरूरत थी, लेकिन उसे पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने के लिए रोजगार की सख्त जरूरत है। बिना रोजगार न तो वह अपने परिवार का पालन पोषण कर सकता हैं और न ही अपनी औलाद को उज्ज्वल भविष्य प्रदान कर पाएगा। कई वर्षों से रोजगार की आस लेकर बैठे हैं, लेकिन सरकारें उन्हें नौकरी देने को गंभीर नहीं है। पूरा परिवार भी परेशान हैं व उन्हें हर दिन घर लौटने की बात करते हैं, लेकिन अब रोजगार मिलने पर ही घर लौटेगा।

जसवीर कौर ने बताया कि उनकी माता का ऑपरेशन हुआ था, घर में कोई उनकी देखभाल करने वाला नहीं है। मगर सरकार की नीतियों की वजह से वह अपनी मां के पास न होकर नौकरी के लिए पानी की टंकी पर संघर्ष करने को मजबूर हैं। जनको रानी ने बताया कि वह कई दिन तक पानी की टंकी पर ही बीमार है। प्रशासन की तरफ से चेकअप के लिए भेजे जाने वाले डाक्टरों ने भी टंकी पर चढ़ने की हिम्मत नहीं, की जबकि वह 40 दिन से लगातार टंकी पर रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपनी व्यथा बताते हुए जनको रानी की आंखें भर आई, लेकिन उसने कहा कि रोजगार प्राप्ति ही उनका उद्देश्य है। बेरोजगार अध्यापक कुलवंत सिंह ने बताया कि टंकी पर हर दिन सुबह सभी साथियों की सलामती के लिए वह पाठ करते हैं। सभी साथियों व उनके लिए खाना करीब 10 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा साहिब से लंगर लेकर आते हैं व नाश्ता प्रशासन की मर्जी से उनके पास पहुंचता है। कभी सुबह का नाश्ता मिलता है तो कभी सुबह की बजाए केवल दोपहर को ही खाना नसीब होता है। शाम ढलते ही साथियों व देश के सलामती के लिए अरदास करते हैं। रात का खाना खाकर बारी बारी सोते हैं, क्योंकि डर बना रहता है कि पुलिस वाले ऊपर न आ जाएं। रात को कम ही सोते हैं। अधिक बीमार होने पर भी यूनियन के सदस्यों द्वारा दी गई दवा से ही काम चलाते हैं। अब रात को ठंड अधिक होने लगी है, जिस कारण रात गुजारना बेहद मुश्किल होने लगा है, लेकिन सरकार इसके बावजूद भी उन्हें रोजगार देने प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा कि नौकरी हमारा हक है वह भी सरकार उन्हें देने से भाग रही है। घर-घर रोजगार देने के वादे से भाग रही सरकार बेरोजगारों से धोखा कर रही है।


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