शिक्षक दंपती ने सोच और परिश्रम से घोल ली जीवन में मिठास, यूं दिखाई आत्मनिर्भरता की राह
संगरूर के शिक्षक दंपती ने दूसरों के लिए मिसाल स्थापित किया है। उन्होंने पहले खेती शुरू की फिर मधुमक्खी पालन। दोनों आज कई लोगों को आत्मनिर्भरता की राह दिखा रहे हैं।
संगरूर [मनदीप कुमार]। पढ़ाई-लिखाई की, शिक्षक भी बन गए, लेकिन घर का गुजारा मुश्किल हो रहा था। खर्च ज्यादा, आमदन कम। ...लेकिन कुछ नया करने की सोच ने उनका जीवन ही बदल दिया। शिक्षक दंपती बलजिंदर सिंह और सरबजीत कौर ने मधुमक्खी पालन को अपनाया, जिसने उनका जीवन ही बदल दिया। शहद उत्पादन में कई पुरस्कार जीते। शहद के उत्पादन, प्रोसेसिंग व मार्केटिंग के इनोवेटिव तरीकों से अच्छी कमाई कर रहे हैैं। उन्होंने न केवल अपनी. बल्कि अपने जैसे अनेक युवाओं की जिंदगी में मिठास भर दी है।
संगरूर जिले के छोटे से दिड़बा कस्बे के बलजिंदर सिंह व उनकी पत्नी सरबजीत कौर दोनों पोस्ट ग्रेजुएट हैं। बलजिंदर छह वर्ष तक इलाके के एक निजी स्कूल में अध्यापन करते रहे। सरबजीत अब भी प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका हैं। बलजिंदर बताते हैैं कि अध्यापक की नौकरी करते हुए मुश्किल से पांच हजार रुपये महीना मिलते थे। घर मुश्किल से चलता था। बहुत बार प्रयास किया, लेकिन अच्छी नौकरी नहीं मिली। उसके बाद खेतीबाड़ी शुरू की, लेकिन जमीन कम होने के कारण प्रयास विफल रहा। शहद उत्पादन की सोची।
कृषि विज्ञान केंद्र से कुछ तकनीकी जानकारियां लेने के बाद सब्सिडी लेकर 26 बक्सों के साथ मधुमक्खी पालन का धंधा अपनाया। 2016 में राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड उत्तरप्रदेश से एक सप्ताह की ट्रेनिंग ली। 2017 में लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से ट्रेनिंग ली। इसका बहुत लाभ मिला।
दूसरों के लिए बने प्रेरणा
शिक्षक दंपती ने शहद के कारोबार की बदौलत अलग पहचान बनाई है। शहद की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग से अच्छी आय हो रही है। इस दंपती की प्रेरणा से गांव के कई बेरोजगार युवकों ने मधुमक्खी पालन शुरू किया है। वे भी इनके साथ किसान मेलों में स्टॉल लगाते हैं। बलजिंदर बताते हैैं कि शहद के प्रोसेसिंग प्लांट को एक यूनिट के तौर पर विकसित करने की कोशिश है। मधुमक्खियां खरीदते-बेचते भी हैं। फिलहाल 350 बॉक्स हैं। नए मधुमक्खी पालकों को भी कम पैसों में बॉक्स बेचते हैं।
एक बक्से में 40 किलो, एक हजार किलो का स्टॉक मौजूद
बलजिंदर की पत्नी सरबजीत कौर बताती हैैं कि अगर मौसम अच्छा हो तो एक बॉक्स से 40-45 किलो शहद मिल जाता है। एक हजार किलो शहद का स्टॉक अभी पड़ा है। शहद के अलावा मक्खियों से मोम व पोलेन (पराग) भी प्राप्त कर रहे हैं। शहद का उत्पादन व मंडीकरण घर से ही चलता है। शहद के बॉक्स वे खुद तैयार करती हैं। पैकिंग का काम भी उनके पास है। इसमें गांव की कुछ महिलाओं का सहयोग लेती हैं। दो एकड़ खेती की जमीन को ठेके पर दे दिया है।
अमेजन तक पहुंची शहद की मिठास
बलजिंदर सिंह ने बताया कि 2018 में उनके शहद को भारत सरकार से एगमार्क (गुणवत्ता प्रमाणन) मिल चुका है। जीवन केयर मार्का का शहद स्नैपडील पर मौजूद है। अमेजन ने भी संपर्क किया है। डील हो गई है, आने वाले कुछ दिनों में वहां भी शहद मिलने लगेगा।
दूसरों को आगे लेकर जा रहे
संगरूर के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. जसपिंदरपाल ग्रेवाल का कहना है कि बलजिंदर सिंह ने खुद का विकास तो किया ही, दूसरों को भी आगे लेकर जा रहे हैं। इन्हीं प्रयासों के कारण खेतीबाड़ी व किसान भलाई विभाग, बागबानी विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र व पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने उन्हेंं श्रेष्ठ मधुमक्खी पालक के रूप में सम्मानित किया है।