संत्सग से इंसान को मिलती है शांति : साध्वी रत्ना
संगरूर कोकिल कंठी जैन भारती महासाध्वी मीना जी महाराज की सुशिष्य साध्वी रत्ना महाराज ने जैन स्थानक के प्रवचन हाल में धर्म सभा को संबोधित करते कहा कि भगवान महावीर स्वामी घमंडी व्यक्ति तथा जिनवाणी को न सुनने वाले व्यक्ति को पसंद नहीं करते। उन्होंने कहा कि जैसे हमें शरीर के पालन-पोषण के लिए रोटी की जरूरत है
जागरण संवाददाता, संगरूर : कोकिल कंठी जैन भारती महासाध्वी मीना जी महाराज की सुशिष्य साध्वी रत्ना महाराज ने जैन स्थानक के प्रवचन हाल में धर्म सभा को संबोधित करते कहा कि भगवान महावीर स्वामी घमंडी व्यक्ति तथा जिनवाणी को न सुनने वाले व्यक्ति को पसंद नहीं करते। उन्होंने कहा कि जैसे हमें शरीर के पालन-पोषण के लिए रोटी की जरूरत है, उसी तरह हमारी आत्मा की खुराक सत्संग है। सत्संग सुनने से हमारी आत्मा कर्मों के बोझ से हलकी हुई चली जाती है। हमें जिस वाणी को सुनकर उसको आचरण में लाना होगा। एक बार किसी शिष्य ने गुरु से पूछा कि सत्संग सुनने का क्या फायदा है तो गुरु ने उसे एक बांस की टोकरी देते हुए कहा कि मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर बाद में दूंगा पहले तुम इस टोकरी में पानी भरकर लाओ। शिष्य बिना कोई तर्क किए टोकरी को अपनी कुटिया में ले आया और उसे पानी में छोड़ दिया। कुछ दिनों उपरांत बांस की टोकरी फूल गई और उसके छेद भर गए। शिष्य टोकरी में पानी भरकर गुरु के पास आ गया। गुरु ने कहा कि आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया है, शिष्य समझा नहीं, गुरु ने शिष्य को समझाते हुए कहा कि जैसे पानी के छेद लगातार पानी में पड़े रहने से भर गए, उसी तरह लगातार सत्संग सुनने से हमारी आत्मा जो कर्मो से बंधी पड़ी है, धीरे-धीरे हलकी होती चली जाएगी और हम कर्मों के बंधन से मुक्त होकर इस जीवन से पार हो सकते हैं। यदि हम भगवान महावीर को खुश करना चाहते हैं तो सत्संग को सुनकर उसे आचरण में लाएं तभी हमारा कल्याण हो सकता है। साध्वी समबुद्ध ने कहा कि मनुष्य को धन, दौलत का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह हमारे किसी भी काम आने वाली नहीं है। उन्होंने महाराजा सिकंदर की उदाहरण देते बताया कि आखरी समय में सिकंदर भी बिलकुल खाली हाथ गया था जबकि उसने अपने राज्य में बेशुमार धन दौलत इकट्ठी की हुई थी। हमें पाप की कमाई को छोड़कर पुण्य से कमाया हुआ धन अच्छे कर्मों में लगातार अपना जीवन सार्थक करने का प्रयास करना होगा। सभा के महामंत्री सुनील जैन ने कहा कि सक्रांति के पावन अवसर पर सभी प्रवचन में समय पर पहुंचे।