पराली को खेत में जोत कर बीजा गेहूं
मनदीप कुमार, संगरूर पराली को आग लगाकर एक तरफ जहां कुछ किसान पर्यावरण को दूषित कर
मनदीप कुमार, संगरूर
पराली को आग लगाकर एक तरफ जहां कुछ किसान पर्यावरण को दूषित करने पर तुले हैं, वहीं जिला संगरूर के किसानों ने पराली को आग लगाए बिना ही गेंहू की सीधी बिजाई करने में रुचि दिखाकर न केवल पर्यावरण को दूषित होने से बचाने का प्रयास किया है, बल्कि साथ ही अन्य किसानों को भी पराली न जलाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष गेहूं की सीधी बिजाई करने प्रति किसानों ने तीन गुणा अधिक रुचि दिखाई है। कई किसान ऐसे है तो पिछले कई वर्षों से पराली को आग न जलाकर सीधे तौर पर गेहूं की बिजाई करके न केवल जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा रहे हैं, बल्कि फसल की अच्छी झाड़ प्राप्त करके बेहतर मुनाफा भी कमा रहे हैं। किसानों को धान की पराली न जलाने व गेहूं की सीधी बिजाई करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र खेड़ी द्वारा लगातार जागरूक किया जा रहा है, जिसमें केवीके खेड़ी ने काफी हद तक कामयाबी हासिल की है।
एक वर्ष में तीन गुणा हुआ रकबा
जिले के किसानों ने पराली को जलाने की बजाए हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रा चोपर/मल्चर, रोटावेटर डिस्क हैरो से गेहूं की पराली में सीधी बिजाई को पहल दी। कृषि विज्ञान केंद्र खेड़ी के निर्देशक डॉ. मनदीप ¨सह ने बताया कि केवीके खेड़ी के माहिरों की टीम द्वारा गांवों के किसानों को पराली न जलाने को प्रेरित किया गया। वहीं पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी लुधियाना द्वारा पराली की संभाल की विकसित तकनीकों व खेती मशीनरी की जानकारी दी गई। किसानों ने माहिरों द्वारा दिए सुझाव को समझा व अपनाया, जिसके परिणाम स्वरूप इस वर्ष जिला संगरूर में पराली को आग न लगाने का रकबा पिछले वर्ष के 15 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 48 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है।
कम हुआ रासायनिक खाद का उपयोग, बढ़ी उपजाऊ शक्ति
गांव शहीद उदय भान ¨सह के किसान सतवंत ¨सह का कहना है कि वह केवीके खेड़ी के सहयोग से पिछले तीन वर्षों से सात एकड़ में पराली जलाए बिना गेहूं की बिजाई करते रहे हैं। हैप्पी सीडर से गेहूं बीजने पर पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है। इस बार धान का झाड़ 32-34 ¨क्वटल प्रति एकड़ से बढ़कर 36-38 प्रति एकड़ हो गया है। हैप्पी सीडर से बीजी गेहूं का झाड़ भी पराली को आग लगाकर बीजी गई गेहूं के बराबर 21-22 ¨क्वटल प्रति एकड़ ही निकलता है। पराली को जमीन में मिलाने से खेत की शक्ति बढ़ती है रासायनिक खादों का प्रयोग कम होता है।
गेहूं की क्वालिटी बनती है बेमिसाल
गांव कनोई के किसान सुख¨जदर ¨सह चौहान ने बताया कि पराली को जलाए बिना गेहूं की हैपीसीडर की मदद से वह पिछले छह वर्ष से बिजाई कर रहे हैं। इस वर्ष उन्होंने 13 एकड़ जमीन पर हैपीसीडर से बिजाई की है। सीधी बिजाई करने से तैयार होने वाली गेहूं की क्वालिटी अन्य गेहूं से बेहतर होती है, क्योंकि पराली के बीच बिजी गई गेहूं जमीन पर नहीं गिरती। गेहूं के दाने का पुरा विकास होता है, जिससे फसल का पुरा मुनाफा मिलता है। अन्य किसानों को भी इस तकनीक को अपनाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान अवश्य देना चाहिए। साथ ही सरकार इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करने को आर्थिक मदद प्रदान करें।
इन गांवों के किसान बने मिसाल
केवीके केंद्र खेड़ी द्वारा विशेष तौर पर अपनाए गांव शहीद उदय भान ¨सह नगर लौंगोवाल, कनोई, तरंजी खेड़ा को पराली न जलाने वाले गांवों के तौर पर मॉडल बनाने के प्रयास किया। इन गांवों की ग्राम पंचायतों के सहयोग से 35 से 50 फीसदी रकबे में गेहूं की बिजाई पराली जलाए बिना की गई है।
गांव किसन रकबा एकड़ में
लौंगोवाल 20 107
कनोई 26 270
तरंजी खेड़ा 56 300