सत्संग कंप्यूटर के मोडम के समान : मुनि
संगरूर जैन धर्म में मेरी भावना के उच्चारण करने पर जोर दिया गया, क्योंकि इसके पढ़ने से मनुष्य में अहंकार खत्म हो जाता है तथा संतोष बढ़ जाता है। ईष्या व द्धेष की भावना खत्म हो जाती है। मनुष्य महापुरुषों के सत्संग में आकर पाप करने से बच जाता है। यह बात धर्म सभा को संबोधित करते हुए संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज के आज्ञानुवर्ती प्रवचन भास्कर अजित मुनि महाराज ने कही।
जागरण संवाददाता, संगरूर : जैन धर्म में मेरी भावना के उच्चारण करने पर जोर दिया गया, क्योंकि इसके पढ़ने से मनुष्य में अहंकार खत्म हो जाता है तथा संतोष बढ़ जाता है। ईष्या व द्वेष की भावना खत्म हो जाती है। मनुष्य महापुरुषों के सत्संग में आकर पाप करने से बच जाता है। यह बात धर्म सभा को संबोधित करते हुए संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज के आज्ञानुवर्ती प्रवचन भास्कर अजित मुनि महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि मेरा भावना बहुत ही प्रसिद्ध स्रोत है। इस श्रोत को महात्मा गांधी ने भी पढ़ा है, इसको पढ़कर उन्होंने प्रस्ताव रखा कि मेरा भावना का उच्चारण स्कूलों में प्रार्थना के समय शुरू किया जाना चाहिए। उनके प्रस्ताव को स्वीकृति देते हुए सरकार द्वारा शुरू भी कर किया गया, लेकिन जैन धर्म के लोगों की ढिलाई के कारण इसको बीच में बंद कर दिया गया है। इसे पढ़ने से मन के बुरे विचारों से छुटकारा मिलता है तथा शुद्ध विचारों का सेवन कर मनुष्य बुरे कर्म करने से बच सकता है। अजित मुनि ने आज इसके तीसरे पद पर चर्चा की जो हमें सत्संग के विशेष महत्व सिखाता है। सत्संग में जाने से पापी से पापी व्यक्ति भी तर जाता है। यह सच्ची गंगा है। इसे पढ़ने सुनने से सुधार व उधार हो जाता है। मनुष्य विषय कषाएं, राम द्वेष, झूठ बोलने से बच जाता है। बुराईयों से छुटकारा मिलता है व सभी प्रकार के वकार दूर हो जाता है। सतसंग में आने से व्यक्ति का मन महक उठता है। सत्संग कंप्यूटर के मोडम के समान है, जो हमें भगवान के साथ सीधा जोड़ देता है। मुनि जी ने कहा कि नियम पचकान करने से मनुष्य बुरे कर्म करने से बच जाता है। उसे गलत कार्य करने से पहले गुरुदेवों के नियम का ध्यान आ जाता है। जो गुरुओं का ध्यान रखते हैं। गुरुदेव भी उनका विशेष ध्यान रखते हैं। जो व्यक्ति दिन में एक बार मेरी भावना का उच्चारण करता है, वह कभी भी गलत काम नहीं करता। हमें प्रतिदिन उसका उच्चारण करने का नियम लेना होगा।
मधुर वक्ता नवीन मुनि महाराज ने कहा कि अगर हम भगवान नहीं बन सकते तो कम से कम इंसान बनने का प्रयास करें। अगर हम इंसान बन गए तो भगवान भी बन जाएंगे। अपने अंदर की बुराईयों को खत्म करना सीखें। अगर हम दूसरों के प्रति सच्चे नहीं रह सकते तो कम से कम अपने प्रति तो सच्चे रहें।