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संगरूर में बना पंजाब का पहला पराली बैंक, 15 गांवों ने करवाया रजिस्ट्रेशन, ऐसे हो रहा प्रबंधन

पर्यावरण को बचाएंगे अभियान का असर दिखने लगा है। इसी कड़ी के तहत पंजाब के संगरूर में पहले पराली बैंक की शुरुआत की गई।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 06:02 PM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 08:51 PM (IST)
संगरूर में बना पंजाब का पहला पराली बैंक, 15 गांवों ने करवाया रजिस्ट्रेशन, ऐसे हो रहा प्रबंधन
संगरूर में बना पंजाब का पहला पराली बैंक, 15 गांवों ने करवाया रजिस्ट्रेशन, ऐसे हो रहा प्रबंधन

संगरूर, [मनदीप कुमार]। दैनिक जागरण के पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे अभियान का असर दिखने लगा है। इसी कड़ी के तहत पंजाब के संगरूर में पहले पराली बैंक की शुरुआत की गई। बैंक को बनाने का आइडिया बीते दिनों मथुरा से आए गोस्वामी स्वामी अमृतानंद ने दिया था। शनिवार को साइंटिफिक अवेयरनेस एंड सोशल वेलफेयर फोरम के प्रतिनिधि डॉ. एएस मान के प्रयास से अकाल कॉलेज काउंसिल गुरसागर मस्तुआना साहिब की ओर से पराली बैंक की रस्मी तौर पर शुरुआत की गई।

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फिलहाल, अकाल सीड फार्म मस्तुआना साहिब की जगह पर मस्तुअाना साहिब के आपसास के 15 गांवों की पराली को एकत्रित किया जाएगा, जहां से इसे गोशालाओं में चारे के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए भी भेजा जा सकेगा। स्वामी अमृतानंद जी यहां जमा होने वाली सारी पराली अपने खर्च पर उत्तर प्रदेश लेकर जाएंगे।

पराली को गोवंश का चारे का नाम दे सरकारः स्वामी अमृतानंद

इस मौके पर स्वामी अमृतानंद ने प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मांग की कि पराली को 'गोवंश का चारा' का नाम दिया जाए। उन्होंने एलान किया कि वह संगरूर इलाके में न तो पराली के एक भी तिनके को आग लगने देंगे और न ही यहां जमा हुई पराली व्यर्थ होने देंगे।

स्वामी अमृतानंद ने कहा कि मेरठ के 40 किमी दायरे में पराली इकट्ठा करने में एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से खर्च आता है। गेहूं की नाड़ की तूड़ी पांच रुपये प्रति किलो मिलती है। वे 1500 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसान को भुगतान करके गोशाला तक पराली पहुंचाते हैं। स्वामी जी ने पंजाब सरकार से अपील की कि संगरूर को मिसाल बनाते हुए वह पराली के गट्ठर और ट्रांसपोर्टेशन के लिए करीब 15 करोड़ रुपये जारी करे, ताकि पराली जलाने की समस्या समाप्त हो सके।

स्वामी जी ने बताया कि वह पिछले 13 वर्ष से गोवर्धन, मथुरा, राजस्थान सहित अन्य क्षेत्रों में गोशालाओं का संचालन कर रहे हैं। वहां हजारों गोवंश को रखा जा रहा है। यहां चारे के रूप में पराली का ही इस्तेमाल किया जाता है। गेंहू की नाड़ की तरह पराली को भी चारे की अन्य सामग्री के साथ मिक्स करके पशुओं को डाला जाता है। इससे न तो गायों की सेहत पर कोई बुरा असर पड़ता है और न ही दूध के उत्पादन पर।

गांवों ने करवाया रजिस्ट्रेशन, पराली बैंक में पहुंचेगी पराली

जिला संगरूर के संत अतर सिंह की धऱती पर बने पहले पराली बैंक में पराली पहुंचाने के लिए मस्तुअाना साहिब में 100 एकड़, बेनड़ा में 20 एकड़, रोशन सिंह वाला में 30 एकड़, फग्गुवाला में 30 एकड़, बड़रुखां 40 एकड़, बहादुरपुर में 50 एकड़ जमीन के किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाई है। आसपास के गांवों के किसान अपने खेतों या किसी अन्य जगह पर पराली के गट्ठर एकत्रित करेंगे। यहां से यह पराली मस्तुआना साहिब के पराली बैंक में जमा करवाई जाएगी। एक एकड़ पराली के प्रबंधन के लिए दो हजार रुपये तक खर्च होंगे।

अकाल कॉलेज काउंसिल ने दी पराली बैंक के लिए जगह

पराली जलाए जाने से पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए अकाल कॉलेज काउंसिल ने कदम अागे बढ़ाया है। काउंसिल के प्रधान भूपिंदर सिंह पूनिया, सचिव जसवंत सिंह खैहरा ने कहा कि काउंसिल ने दो एकड़ जमीन पराली बैंक के लिए दी है। यहां आसपास के गांवों के किसान पराली जमा करवा सकेंगे। यहीं से गोशालाएं जरूरत अनुसार पराली प्राप्त कर सकेंगी। बची पराली स्वामी अमृतानंद अपनी गोशालाओं के लिए ले जाएंगे।

खेतीबाड़ी विभाग ने भी किसानों को किया प्रेरित

इस मौके पर मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. जेपीएस ग्रेवाल, कृषि विज्ञान केंद्र के डायरेक्टर डॉ. मनदीप सिंह, एसोसिएट डॉ. जसवीर सिंह ने किसानों को प्रेरित करते हुए कहा कि वे पराली को आग लगाने के बजाय अपने पशुओं को चारे के रूप में डालें या फिर पराली बैंक के माध्यम से गोशालाओं को मुहैया करवाएंं। इससे पर्यावरण भी अशुद्ध नहीं होगा और पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा।

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