पंजाब के थर्ड जेंडर बच्चों का भविष्य संवारने में जुटीं किन्नर डेरे की प्रमुख प्रीति महंत
भले ही अब हमें थर्ड जेंडर कहा जाने लगा है लेकिन समाज में किन्नरों की जिंदगी बेहद बदतर बनी हुई है। किसी प्रकार की सुविधा उन्हें नहीं दी जाती है।
मनदीप कुमार, संगरूर। संगरूर, पंजाब के किन्नर डेरे की प्रमुख प्रीति महंत थर्ड जेंडर बच्चों का भविष्य संवारने में जुटी हैं। डेरे की शरण में आए थर्ड जेंडर बच्चे स्कूल में सामान्य बच्चों संग पढ़ रहे हैं। अपनी इस दूरदर्शी सोच के कारण प्रीति महंत आम किन्नरों से कहीं अलग नजर आती हैं। वह नहीं चाहतीं कि डेरे में छोड़ दिए गए अनेक थर्ड जेंडर बच्चे केवल इसलिए दुरूह जीवन जिएं कि वे थर्ड जेंडर हैं, जिसमें उनका कोई कुसूर तक नहीं। प्रीति कहती हैं, इन बच्चों की जिंदगी बधाई मांगने तक ही सीमित न रहे, यही ध्येय है।
प्रीति आधा दर्जन से अधिक किन्नर डेरों में रहने वाले थर्ड जेंडर बच्चों को स्कूल भेज कर शिक्षित करने का काम कर रही हैं। कहती हैं, कुछ वर्ष पहले मैंने नवजात थर्ड जेंडर विश्वनूर को गोद लिया था। वह उस समय मात्र सात दिन की थी। जब वह कुछ बड़ी हुई तो डेरे के बाहर से रोजाना गुजरने वाली स्कूल वैन के पीछे भागती। मैंने उसी वक्त सोच लिया कि इसे आम बच्चों की भांति शिक्षित बनाऊंगी। मैंने उसे स्कूल में दाखिल करवाया। फिर यहीं से यह सिलसिला शुरू हो गया।
प्रीति चाहती हैं कि विश्वनूर उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक काबिल आइपीएस अफसर बने। यही नहीं, वह इस बारे में भी सोच रही हैं कि विश्वनूर का ऑपरेशन कराएंगी ताकि उसे एक सामान्य महिला बनाया जा सके। स्कूल अध्यापिका अंजलि वर्मा कहती हैं कि प्रीति की यह पहल बेहद सराहनीय है। शिक्षा पर सबका बराबर का हक है। विश्वनूर पढ़ाई में बहुत अच्छी है। वह हर चीज आम बच्चों की भांति ही सीखती है।
प्रीति कहती हैं, मेरा बचपन से जवानी तक का समय शहर की गलियों और शादियों में नाचते-गाते हुए गुजर गया। कोई नौकरी और कोई रोजगार नहीं। समाज ने भी हाशिये पर धकेलकर रखा। पढ़ने का शौक तो बहुत था, लेकिन मौका नहीं मिला। जिंदगी में हासिल तो काफी कुछ किया, लेकिन शिक्षा का अरमान दिल में ही रह गया। अब आगे किसी के साथ ऐसा न होगा। हमारी नई पीढ़ी को स्कूल-कॉलेज जाने का मौका मिले और वे आसान जीवन जी सकें। जीवन सड़कों पर नाचने-गाने और बधाई पर निर्भर न रहे। उच्च शिक्षा हासिल कर और अपने पैरों पर खड़े होकर वह समाज को दिखा देंगे कि वह भी समाज का एक अंग हैं...।
प्रीति के प्रयास से अलग-अलग शहरों में ऐसे बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। वहां उन्हें अन्य बच्चों के साथ ही शिक्षा मिल रही है। प्रीति बताती हैं कि कई स्कूल उन्हें दाखिला देने से मना कर देते हैं, लेकिन कुछ मान भी जाते हैं। आज भी लोगों की सोच किन्नरों के प्रति बदली नहीं है। कहती हैं, मैं इस सोच को बदलना चाहती हूं। मेरे परिवार ने भी किन्नर होने के कारण मुझे किन्नर डेरे में छोड़ दिया था। वह वक्त बेहद दुखदाई था, लेकिन इस जिंदगी को स्वीकार करना पड़ा। अब मैं महंतों के डेरे का संचालन कर रही हूं, तो सोचती हूं कि अपनी भूमिका के साथ न्याय कर सकूं।
भले ही अब हमें थर्ड जेंडर कहा जाने लगा है, लेकिन समाज में किन्नरों की जिंदगी बेहद बदतर बनी हुई है। किसी प्रकार की सुविधा उन्हें नहीं दी जाती है। अपने हकों के लिए भी वे जागरूक नहीं हैं। हमारी नई पीढ़ी यदि सुशिक्षित होगी तो ही इस दुर्दशा से उबर सकेगी।
- प्रीति महंत, किन्नर डेरा प्रमुख, पंजाब