मोह को खत्म करने से दुख दूर हो जाएंगे: नवीन मुनि
संगरूर मोह को खत्म करने से दुख दूर हो जाएंगे। मोह मजबूत सेनापति के समान है, जिसे हम छोड़ना नहीं चाहते बल्कि इसमें फसते जा रहे हैं। मोह टूटने की बजाए बढ़ता जा रहा है। यह बात धर्म सभा को संबोधित करते संघ संचालक नरेश चंद महाराज के आज्ञानुवर्ती नवीन मुनि ने कहीं। उन्होंने कहा कि तृष्णा कभी भी बूढ़ी नहीं होती। इच्छाएं बढ़ती जा रही हैं, जिस कारण अनावश्यक इच्छाओं को कम करना होगा तभी हमारी आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं।
जागरण संवाददाता, संगरूर :
मोह को खत्म करने से दुख दूर हो जाएंगे। मोह मजबूत सेनापति के समान है, जिसे हम छोड़ना नहीं चाहते बल्कि इसमें फंसते जा रहे हैं। मोह टूटने की बजाए बढ़ता जा रहा है। यह बात धर्म सभा को संबोधित करते संघ संचालक नरेश चंद महाराज के आज्ञानुवर्ती नवीन मुनि ने कहीं। उन्होंने कहा कि तृष्णा कभी भी बूढ़ी नहीं होती। इच्छाएं बढ़ती जा रही हैं, जिस कारण अनावश्यक इच्छाओं को कम करना होगा तभी हमारी आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं। आज मानव तृष्णाओं के बंधन में उलझा हुआ है। मनुष्य को हमेशा अपनी अकल व दूसरों की माया अधिक नजर आती है। तृष्णा से व्यक्ति अपने दुखों को कम करने की जगह बढ़ा लेता है। आज का मनुष्य दुख दूर करना चाहता है ¨कतु तरीके गलत हैं। मनुष्य बाहर की चीजों में सुख मानते हैं जबकि सुख हमारे भीतर हैं। तृष्णाओं पर काबू करने वाले हमेशा खुश रहते हैं। उधर, प्रवचन भास्कर अजित मुनि ने श्रावक के 12 व्रतों पर चर्चा करते हुए आठवें अनुव्रत अनर्थ दंड पर रोशनी डालते कहा कि हमें निस्प्रायोजन ¨हसा, व्यर्थ ¨हसा, पानी को फिजुल बहाकर होने वाली ¨हसा, एसी, कूलर, पंखे, लाईटें इत्यादि के जरूरत न होते हुए भी फालतू चलाने में जो ¨हसा होती है उसे आनर्थ दंड कहा जाता है। अमीरी भी आनर्थ दंड को बढ़ाती है। हम हर वस्तु का इस्तेमाल सही तरीके से करने पर आनर्थ दंड से बच सकते हैं। यहां तक कि सुपारी देना, गलत सलाह देना, पाप करने के बारे में सोचना, अश्लील शब्दों का प्रयोग करना, आवश्यकता से अधिक संग्रह करना, होलिका जलाना, रावण को जलाना इत्यादि भी ¨हसा है, जो आनर्थ दंड में आता है। हमें श्रावक के 12 व्रतों में से आठवें अनुव्रत आनर्थ दंड को स्वीकार कर अपना जीवन सफल बनाने का प्रयास करना होगा।
भगवान महावीर स्वामी द्वारा बताए 4 शिक्षा व्रतों में आज पहले व्रत समायक पर चर्चा करते हुए मुनि अजित ने कहा कि भगवान ने समायक को आज्ञा में नहीं शिक्षा में माना है। भले ही यह शिक्षा है ¨कतु जरूरी है। समायक एक अभ्यास है, जिससे समता-शांति आती है। इससे मनुष्य अपने आप को साधना द्वारा नार्मल रख सकता है। समायक करने से अनादि काल से जो व्यक्ति नास्तिक है, यदि उसमें समकित आ जाए तो वह एक मुहूर्त के अंदर केवल ज्ञान केवल दर्शन को पाकर भगवान बन सकता है। सभा के मंत्री सत्भूषण जैन ने बताया कि इकाशनों की लंबी तपस्या में जीवन जैन 114वें, अतुल गोयल 95वें, अंजू जैन 6वें, हर्षिता जैन तीसरे दिन में प्रवेश कर चुके हैं।