नई बोतल में पुराना जायका देंगे अरविद खन्ना
2015 में धूरी से कांग्रेस विधायक अरविद खन्ना के सियासत से दूर होने के बाद टीम खन्ना भी कहीं गुम सी हो गई थी।
सचिन धनजस, संगरूर : 2015 में धूरी से कांग्रेस विधायक अरविद खन्ना के सियासत से दूर होने के बाद टीम खन्ना भी कहीं गुम सी हो गई थी। लेकिन मिशन 2022 के लिए अरविद खन्ना के साथ ही खन्ना टीम फिर से सक्रिय हो गई है। शहर में चर्चा है कि खन्ना संगरूर की जनता को नई बोतल में पुराने जायका देने की तैयारी कर रहे हैं। इसको लेकर जनता में अलग-अलग चर्चाएं भी हैं। हालांकि, अरविद खन्ना के आने का इंतजार सभी को था, लेकिन मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी, सरकार व जनता में सशक्त पैठ बनाए बैठे विजयइंद्र सिगला का मुकाबला करना खन्ना के लिए इतना आसान नहीं होने वाला है, जितना उन्हें दिखाया जा रहा है।
अरविद खन्ना के अकाली दल में शामिल होकर संगरूर से चुनाव लड़ने की चर्चाएं जोरों पर हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच अरविद खन्ना ने वीरवार को अकाली दल की सीनियर लीडरशिप के साथ लंच भी किया और शुक्रवार को वह अपने पुराने साथियों के साथ लंच सांझा कर रहे हैं। लेकिन खन्ना के पुराने साथियों में अधिकतर ऐसे हैं, जो हालिया समय में सिगला का साथ छोड़ने को कतई तैयार नहीं हैं। ऐसे में साफ है कि अरविद खन्ना के लिए आने वाली चुनौती बड़ी परीक्षा से कम नहीं होगी। टीम की कमान कौन संभालेगा, की भी चर्चा
दूसरी तरफ, शहर में चर्चा है कि अरविद खन्ना की टीम की कमान कौन संभालेगा। यही सवाल अरविद खन्ना को जनता से दूर करने में काफी साबित हो रहा है। बेशक अरविद खन्ना खुद कह रहे हैं कि अकाली दल की टीम को तवज्जो मिलेगी, लेकिन जनता को एहसास है कि बेशक इस बार नई बोतल है, लेकिन जनता को जायका वही पुराने वाला मिलने वाला है, जिसका उन्हें अभी से आभास होने लगा है। विजयइंद्र से मुकाबला नहीं आसान
अरविद खन्ना के एक खासमखास ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि हालात वैसे नहीं रहे हैं, जैसे पहले हुआ करते थे। 2002 चुनावों में जब अरविद खन्ना का जादू था, तभी भी उनकी जीत का फर्क सिर्फ 19 हजार के करीब था और 2017 में विजयइंद्र सिगला 30 हजार से ज्यादा के अंतर से जीते थे। इसलिए सब कुछ इतना आसान नहीं है, जितना समझा जा रहा है। बहरहाल, राजनीतिक भविष्य को देखते हुए अरविद खन्ना को संभल संभल कर कदम रखने होंगे, क्योंकि अभी न तो सात साल पहले वाले राजनीतिक परिदृश्य हैं और न ही उनका मुकाबला किसी आम राजनीतिज्ञ से है। परीक्षा कठिन है और ऐसे में एक भी गलत कदम खन्ना के लिए जोखिम भरा हो सकता है।