नेशनल मेडिकल कमिशन के विरोध में उतरी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
रूपनगर रूपनगर में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) की जिला स्तरीय बैठक आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरएस परमार सहित रूपनगर के अध्यक्ष डॉ. अजय ¨जदल तथा महासचिव डॉ. बीपीएस परमार की संयुक्त अध्यक्षता में हुई जिसमें एसोसिएशन के सभी मेंबरों ने नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2017 को मेडिकल व्यवसाय विरोधी बिल करार दिया।
संवाद सहयोगी, रूपनगर
रूपनगर में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) की जिला स्तरीय बैठक आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरएस परमार सहित रूपनगर के अध्यक्ष डॉ. अजय ¨जदल तथा महासचिव डॉ. बीपीएस परमार की संयुक्त अध्यक्षता में हुई जिसमें एसोसिएशन के सभी मेंबरों ने नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2017 को मेडिकल व्यवसाय विरोधी बिल करार दिया।
इस मौके जानकारी देते डॉ. आरएस परमार ने बताया कि इसी साल अप्रैल माह के दौरान स्टेट आइएमए की बैठक के बाद अहमदाबाद में हुई आइएमए सेंट्रल वर्किंग कमेटी की बैठक में नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2017 पर बड़ी गंभीरता के साथ विचार किया गया था जिसके बाद हर किसी का यही कथन था कि यह बिल जन विरोधी व मेडिकल व्यवसाय विरोधी साबित हुआ है। उन्होंने बताया कि बैठक में यह भी माना गया कि इस बिल का मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। डॉ. परमार ने कहा कि नेशनल मेडिकल बिल की आड़ में कुछ राज्यों के प्राइवेट मेडिकल कालेजों ने एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए हर साल 20 से 30 लाख तक बढ़ा दिए हैं तथा 50 फीसदी आरक्षण भी समाप्त कर दिया गया है जोकि आने वाले समय में डाक्टरी का व्यवसाय करने वालों के लिए अनेकों परेशानियों का कारण बनने लगा है। डॉ. परमार ने बताया कि वर्तमान में ज्यादातर राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार ही फीस तय हैं जिनके अनुसार 50 फीसदी सीटों पर लगभग सरकारी कालेजों के बराबर कम फीस ली जाती है जबकि ऐसे कालेज केवल एनआरआई कोटे वाली 15 फीसदी सीटों से ही अतिरिक्त फीस वसूली जा सकती है तथा शेष 35 फीसदी सीटों से जायज फीस वसूली जा सकती है। उन्होंने कहा कि अगर नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2017 लागू होता है तो वर्तमान वाला सारा सिस्टम समाप्त हो जाएगा तथा प्राइवेट कालेज अपनी मर्जी के अनुसार विद्यार्थियों से फीस वसूल करते हुए उनका आर्थिक व मानसिक शोषण शुरू कर देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल के आने से गरीब वर्ग व पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों के लिए मेडिकल की पढ़ाई पहुंच से बाहर हो जाएगी क्योंकि गरीब विद्यार्थी प्राइवेट कालेजों की मर्जी अनुसार फीस भरने के लिए सामर्थ ही नहीं हो सकेंगे।