शौर्य व त्याग के प्रतीक महाराणा प्रताप को आज किया जाएगा नमन
वीरता बलिदान शौर्य व त्याग के प्रतीक महान योद्धा महाराणा प्रताप जयंती 25 मई को देश भर में मनाई जा रही है।
सुभाष शर्मा, नंगल : वीरता, बलिदान, शौर्य व त्याग के प्रतीक महान योद्धा महाराणा प्रताप जयंती 25 मई को देश भर में मनाई जा रही है। नंगल में नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाने के लिए कारगिल शहीद कैप्टन अमोल कालिया पार्क में नगर कौंसिल की ओर से करीब 60 लाख की लागत से महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगाई गई है। दो साल पहले ही इस भव्य स्मारक स्थल एवं प्रतिमा का उद्घाटन पंजाब के राज्यपाल महामहिम वीपी सिंह बदनौर ने किया था।
पंजाब विधानसभा के स्पीकर राणा केपी सिंह के प्रयासों से 18 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने का मकसद नई पीढ़ी को प्रेरणा देना है। स्मारक स्थल पर आने से पता चलता है कि किस तरह से सदियों पहले मुगल साम्राज्य का मुकाबला करने के लिए महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं ने अपने सिद्धांतों पर अटल रह कर भारत वासियों की रक्षा की है। मनोहारी स्थल अपने योद्धाओं के गौरवमयी इतिहास से अवगत करवाकर यह बता रहा है कि महाराणा प्रताप ने मानवता की रक्षा के लिए किस तरह से सिद्धांतों पर अडिग रह कर शूरवीरता की मिसाल पेश की थी। सोमवार सुबह आठ बजे स्मारक स्थल पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम भी आयोजित किया जा रहा है।
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फोटो 24 एनजीएल 01 में है।
अजर अमर है भारत के इतिहास में महाराणा प्रताप का नाम
शौर्य भूमि मेवाड़ को धन्य ही कहा जा सकता है जहां वीरता और दृढ़ संकल्प वाले महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान देते हुए इतिहास दिया। विक्रमी संवत केलेंडर के अनुसार प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष तृतीय को जयंती मना कर आवाम को जागरूक किया जाता है। आज भी सभी को महाराणा प्रताप जी जैसे चरित्र धारण करने की जरूरत है।
रछपाल सिंह राणा
योगाचार्य, नंगल।
महाराणा प्रताप की जीवनी से नई पीढ़ी को अवगत करवाना जरूरी
फोटो 24 एनजीएल 02 में है।
महाराणा प्रताप के सिद्धांतों को क्रियात्मक रूप से अपनाने की जरूरत है। संघर्षमयी बचपन में महाराणा प्रताप जी ने मानवता पर जुल्म के खिलाफ दास्तां को कबूल नहीं किया। सदैव बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महाराणा प्रताप महान सेनानी थे। उनके ऐसे बलिदानों से नई पीढ़ी को अवगत होना बहुत जरूरी है। इसलिए आज उनकी जयंती मना कर नई पीढ़ी को कौम व देश के प्रति संस्कारित करने का प्रयास किया जा रहा है।
दवेंद्र राणा, नंगल। कोट्स
फोटो 24 एनजीएल 03 में है।
शौर्यता से अक्बर भी था प्रभावित
महाराणा प्रताप ने युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ नया नगर बसाया जिसे चावंड नाम दिया गया। मुगल राजा अकबर ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वो महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर सका। उनकी शौर्यता से अकबर भी प्रभावित था। महाराणा प्रताप ने जीते-जी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया। विकट स्थिति में भी धैर्यता के साथ आगे बढ़ते रहे।
दिलबाग परमार
समाज सेवक, नंगल। कोट्स
फोटो 24 एनजीएल 04 में है।
धूल चटा दी थी अकबर के सैनिकों को
महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुए हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने 20 हजार सैनिकों के साथ अकबर के 85 हजार सैनिकों को धूल चटा दी थी। 81 किलो वजन का भाला व 72 किलोग्राम वाला छाती के कवच के साथ-साथ उनका सबसे प्रिय घोड़ा चेतक उनके शौर्य की अहम पहचान थे। युद्ध के दौरान मुगल सेना जब पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठा कर कई फीट लंबे नाले को पार किया। इसके बाद चेतक दम तोड़ गया। आज भी हल्दी घाटी में चेतक की स्माधि बनी हुई है।
युद्धवीर परमार,
अध्यापक, नंगल। कोट्स
फोटो 24 एनजीएल 05 में है।
महाराणा के सिद्धांत ले जा सकते हैं तरक्की की ओर
भारत माता के सपूत महाराणा प्रताप ने समूची मानवता तथा देश की रक्षा के लिए जिस तरह से अनेकों कष्ट उठाते हुए भूखे प्यासे रह कर मानवता की सेवा की है। इस लिए ही आज उन्हें याद करने के लिए जयंती मनाई जा रही है। उनके सिद्धांत समाज के लिए एक ऐसा मार्गदर्शन है जो देश को तरक्की की ओर ले जा सकते हैं।
अनुज ठाकुर,
एडवोकेट, नंगल।
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फोटो 24 एनजीएल 06 में है।
अकबर भी रोया था महाराणा प्रताप के देहांत पर
महाराणा के देहांत पर राजा अकबर भी रो पड़ा था। अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधे हिदोस्तान के वे वारिस होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी। लेकिन महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया। महाराणा एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिकों को काट डालते थे। पराधीनता स्वीकार न करते हुए वो जीवन भर अकबर से लोहा लेते रहे।
देविंद्र ठाकुर
समाज सेवक, नंगल। कोट्स
फोटो 24 एनजीएल 07 में है।
लोहार जाति के हजारों लोगों ने छोड़ दिया था घर
आज भी महाराणा प्रताप जी की तलवार, कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्राहालय में सुरक्षित हैं। महाराणा ने जब महलों का त्याग किया था तब उनके साथ लोहार जाति के हजारों लोगों ने अपना घर छोड़ा और दिन-रात राणा जी की सेना के लिए तलवारें बनाई। ऐसे लोगों को भी नमन है जिन्होंने घर बार छोड़कर स्वाधीनता की लड़ाई में महाराणा प्रताप जी का का साथ दिया था।
अनिल राणा
सोशल वर्कर, नंगल।