अब डाकिया चिट्ठियां ही नहीं बांटता, बैंक भी है..
आप कहते रहिए कि आधुनिक दौर आ गया है और डाकसेवा और डाकिये का औचित्य ही नहीं है।
अजय अग्निहोत्री, रूपनगर : आप कहते रहिए कि आधुनिक दौर आ गया है और डाकसेवा और डाकिये का औचित्य ही नहीं है। पर असलियत कुछ और है। आप ये जानकर हैरान होगे कि डाकिये की सेवाएं डाक विभाग चलते फिरते बैंक के रूप में ले रहा है। चिट्ठियां बांटना तो उनका काम है ही। एक डाकिया रोजाना 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने इलाके में डाक बांटता है। रोजाना 150 डाक बांटना एक डाकिये के जिम्मे आती है। यही नहीं, अब जब कोरोना संकट की शुरुआत हुई और कर्फ्यू रहा पर डाकघर की सेवा मात्र छह दिन ही बंद हुई थी। उसके बाद से लेकर अब तक डाकिए अपने काम डटे हुए हैं। जिले में पिछले दस सालों में आबादी तो बढ़ गई लेकिन डाकिए नहीं बढ़े बल्कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद संख्या कम होनी आरंभ हो गई है।
33 डाकघर और 75 हजार डाक बंटती है हर रोज
जिला रूपनगर में रूपनगर शहर के डाकघर समेत 33 डाकघर हैं, जिनमें से रोजाना 75 हजार डाक जिले में बांटी जाती है। इसमें स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्रियां, सामान्य डाक शामिल है। केवल रूपनगर डाकघर की 3000 डाक इसमें शामिल है।
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45 डाकिये हैं स्थायी: रेशमपाल
रूपनगर डाकघर के पोस्टर मास्टर रेशमपाल सिंह बताते हैं कि जिले में 45 डाकिए स्थायी हैं और 200 के करीब ग्रामीण डाक सेवक हैं। डाकिये के पास इलेक्ट्रानिक मनी अदायगी और आधार अनेब्लड पेमेंट सिस्टम के तहत अदायगी दे सकते हैं।
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व्यवहारिक हो व्यवस्था, उलझाव नहीं: मोहन लाल
रूपनगर डाकघर में तैनात डाकिया मोहन लाल बताते हैं कि अब कोरोना संकट है और लोग अपने घर में किसी के दाखिल होने पर एतराज करते हैं। लेकिन उनके पास स्मार्ट फोन में जो डाक रिसीव करने का एप है, उसे कोई इस्तेमाल करना नहीं चाहता। यही नहीं, कड़ी धूप में अपना मोबाइल पर आने वाला नंबर दिखाई नहीं देता, ऐसे में किसी का डाटा एप पर भरकर उसका साइन करवाना कैसे संभव है। डाकिये काम से नहीं घबराते। लेकिन उलझाव क्यों ये समझ नहीं आता। व्यवहारिक व्यवस्था ही बनानी चाहिए।
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डाकिया कोरोना संकट में भी डटे रहे, क्यों है अनदेखा: हरमेश सिंह
बुजुर्ग डाकिया हरमेश सिंह ने कहा कि डाकिये का जीवन आसान नहीं होता। सुबह लेकर दोपहर तक गर्मी में लोगों के घरों तक डाक पहुंचाना बड़ी शिद्दत का काम है। अब डाकियों से सरकार व डाक विभाग की आशाएं बढ़ गई हैं ये अच्छी बात है। लेकिन आशाएं बढ़ाना ही जरूरी नहीं है, डाकियों की सुविधाएं भी बढ़नी चाहिए।