बच्चों ने मैं नहीं हम की भावना से पशु-पक्षियों से प्यार की ली सीख
दैनिक जागरण के अभियान संस्कारशाला का आयोजन शनिवार को लक्की मॉडर्न स्कूल में करवाया गया। सुबह मार्निंग असेंबली में बच्चों को एक दूसरे की सहायता करने और खुद के साथ अपने आसपास के इंसानों और जीवों का ख्याल रखने का महत्व बताया गया।
जागरण संवाददाता, पटियाला
दैनिक जागरण के अभियान संस्कारशाला का आयोजन शनिवार को लक्की मॉडर्न स्कूल में करवाया गया। सुबह मार्निंग असेंबली में बच्चों को एक दूसरे की सहायता करने और खुद के साथ अपने आसपास के इंसानों और जीवों का ख्याल रखने का महत्व बताया गया। इसके अलावा बच्चों को बताया कि बड़ों की संगति करने से जहां हमारे अंदर अच्छे संस्कार विकसित होते हैं। वहीं उन्हें भी अच्छा लगता है जब हम उनके साथ समय व्यतीत करते हैं। संस्कारशाला का विषय था 'मैं नहीं हम' इसके तहत बच्चों ने अच्छे संस्कार सीखने की हामी भरी। दैनिक जागरण में प्रकाशित कहानी सुनने के बाद बच्चों ने ¨प्रसिपल ज¨तदर चावला को भरोसा दिलाया कि अच्छे संस्कार सीख भविष्य को उज्ज्वल बनाएंगे। मॉर्निंग असेंबली के बाद शिरोमणि संस्कृत साहित्यकार अवार्ड विजयी और ¨हदी के रिटायर्ड लेक्चरर डॉ. महेश गौतम ने विशेषज्ञ के तौर पर विषय पर स्टोरी बच्चों के समक्ष रखी और मंच से संस्कारशाला अभियान की जानकारी दी। स्टोरी समापन के बाद विशेषज्ञ ने बच्चों से विषय पर प्रश्न पूछे, जिसका अधिकतर बच्चों ने सही जवाब दिया। बच्चों से पूछे गए कुछ सवाल इस तरह से हैं।
क्या गिलहरी के बच्चे को आरुषि अस्पताल ले जाने में सफल हुई?, मम्मी ने आरुषी को किस बात पर शाबाशी दी?.इत्यादि।
इसके साथ ही ¨जदगी से जुड़ी उदाहरणों से बच्चों को अपने साथ-साथ जीवों का भी ख्याल रखने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान डॉ. गौतम ने बताया कि हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने साथ-साथ भगवान द्वारा बनाए हर जीव की रक्षा और सहायता करना हमारा फर्ज बनता है।
सोशल नेटवर्किंग ला रहा रिश्तों में दूरियां
डॉ. गौतम ने बताया कि सोशल नेटवर्किंग हमारे रिश्तों में दूरियां ला रहा है। सोशल नेटरवर्किंग से जहां हम दूर बैठे लोगों के तो नजदीक आ गए हों, लेकिन अपने परिवार से दूर होते जा रहे हैं। आज के दौर में घर के हर सदस्य के पास अपना मोबाइल है और वो सारा दिन अपने मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। इससे हमारे निजी रिश्तों में दूरियां पैदा होनी शुरू हो गई हैं। इसलिए हमें चाहिए कि हम सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल सीमित करें और इसके लिए समय निर्धारित करें और अपने निजी रिश्तों और सामाजिक ¨जदगी को अहमीयत देना शुरू करें। तभी एक स्वस्थ देश का निर्माण किया जा सकता है।
आज के दौर व्यस्त दिनचर्या में बुजुर्गों को भूल रहा समाज : ¨प्रसिपल
¨प्रसिपल ज¨तदर चावला ने जागरण के अभियान की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज के दौर में व्यस्त दिनचर्या के चलते हम अपने संस्कारों को भूल रहे हैं। जहां हमें अपने घर में दादा दादी को प्राथमिकता देते हुए हर फैसले में शामिल करना चाहिए, वहीं हम उनको बिना बताए अपने स्तर पर ही फैसले लेने लगे हैं। इससे जहां उन्हें दुख होता है, वहीं कई बार नुकसान भी झेलना पड़ता है। क्योंकि घर में बड़ों को ¨जदगी का अनुभव होता है। इस लिए हर इंसान को चाहे वो स्टूडेंट हो या वर्किंग घर में बड़ों की इज्जत करनी चाहिए और रोज उनके लिए कुछ समय जरूर निकालना चाहिए। उनकी बातों से बच्चों में संस्कार विकसित होते हैं और बच्चों को बड़े ही सरल तरीके से अच्छे बुरे की समझ आ जाती है।
-¨प्रसिपल ज¨तदर चावला