डबल मुनाफा और बच्चों की मांग कारण नहीं थमने का नाम ले रहा ड्रेगन डोर का धंधा
मोनो काइट के नाम से मशहूर चाईना की डोर व्यापारी के लिए डबल मुनाफे का सौदा है। ब'चे भी मजबूत डोर की डिमांड करते हैं और ड्रैगन डोर ही लेते हैं।
जागरण संवाददाता, पटियाला
मोनो काइट के नाम से मशहूर चाईना की डोर व्यापारी के लिए डबल मुनाफे का सौदा है। बच्चे भी मजबूत डोर की डिमांड करते हैं और ड्रैगन डोर ही लेते हैं। चाइना को डोर के खतरनाक परिणामों के रूबरू होने के बाद भी व्यापारी मुनाफे के लालच में इस डोर का धंधा बंद नहीं कर रहे। देशी धागे वाली डोर के मुकाबले चाईना डोर कहीं सस्ती पड़ती है। इसके अलावा आसमान में ड्रैगन डोर का मुकाबला भारतीय डोर के न कर पाने की वजह भी ड्रैगन डोर को प्रमोट कर रही है।
बाजारों में चाईना डोर की कई वैरायटी मौजूद है। ये डोर मीटर के हिसाब से नहीं बल्कि भार के हिसाब से बिकती है। ग्राहक के हिसाब से व्यापारी पैसे वसूल रहा है। इस धंधे से जुड़े व्यापारी से मिली जानकारी के मुताबिक चाईना डोर रोल में पैक होकर आती है और इसका रेट हजार रुपए से लेकर 12 सौ रुपए किलो तक होता है। एक किलो डोर से 25 से 30 चरखड़ी तैयार हो जाती है। एक चरखड़ी में एक हजार मीटर तक डोर होती है जबकि धागे वाली डोर 5 सौ मीटर तक 120-130 रुपए में मिलती है। इस लिहाज के देशी डोर चाईना से दोगुणा अधिक महंगी रहती है।
डोर के धंधे से जुड़े जौड़ियां भट्ठिया इलाके के राजेश कुमार ने बताया कि पिछले 50 सालों से उनका परिवार डोर के धंधे से जुड़ा है। पहले पिता अब वे खुद देशी डोर का काम कर रहे हैं। चाइना डोर रखना डोर विक्रेताओं की मजबूरी है। देशी डोर महंगी होने की वजह कारण चाईना डोर अधिक बिक रही है। दूसरा किसी के पास इतना वक्त नहीं कि धागे को शीशे और मांजे के सूतने में घंटों बर्बाद करे।
चाईनिश डोर का काम कर रहे एक व्यापारी ने बताया कि अलग-अलग तरह की चाईना डोर थोक में 350 रुपए किलो से शुरू हो जाती है और 6 सौ रुपए किलो तक मिल जाती है। जो रिटेल में हजार से 12 सौ रुपए किलो तक बिक जाती है। चाईना डोर इस्तेमाल करना भी अब मजबूरी बन चुकी है क्योंकि आसमान में पतंगबाजी में देशी डोर चाईना के मुकाबले नहीं ठहरती। धागा प्लास्टिक डोर को नहीं काट सकता इस लिए बच्चे भी चाईना डोर की मांग करते हैं।