सावधान! होमवर्क के बोझ से बच्चों के हार्मोस में आ रहा बदलाव
स्कूलों में गलाकाट प्रतियोगिता के कारण बच्चों पर होमवर्क का बोझ बढ़ रहा है। इससे बच्चों में हार्मोनल बदलाव आने लगे हैैं।
जेएनएन, पटियाला। सावधान! स्कूलों से मिलने वाला ज्यादा होमवर्क आपके बच्चों के हार्मोन में बदलाव ला सकता है। इससे हार्मोस में भारी बदलाव पाया जा रहा है, जो कि चिंताजनक है। विद्यार्थियों में आने वाले इस बदलाव के संबंध में दैनिक जागरण ने कुछ मनोवैज्ञानिकों से बातचीत कर उनके विचार जानने की कोशिश की।
पंजाबी विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की डॉ. दमनजीत कौर का कहना है कि यह सत्य है कि अत्याधिक होमवर्क के कारण बच्चों के हार्मोस में बदलाव देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि होमवर्क के दबाव के चलते लड़के और लड़कियों के हार्मोस में अलग-अलग तरह के परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं।
लड़के और लड़कियों में मोटापा बढ़ रहा है, जबकि वजन घट रहा है। वहीं लड़कियों के मासिक धर्म के आने की आयु भी कम हो रही है। इतना ही नहीं लड़के और लड़कियों की नजर भी कमजोर हो रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों को केवल पढ़ाई तक ही सीमित रख कर खेलों से दूर रखने के कारण भी हार्मोस में बदलाव पाया जा रहा है। बच्चों को प्रतिदिन कम से कम एक घंटा खेल में शामिल करना जरूरी है, क्योंकि खेल से इंसान का तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं, जबकि खेलों के पीरियड केवल दिखावे के तौर पर रह गए हैं। इसलिए पढ़ाई और खेलों में एक समान से अनुपात बनाने की बेहद जरूरत है।
सरकारी राजिंदरा अस्पताल के मनोविज्ञान विभाग के डॉ. बीएस सिद्धू का कहना है कि स्कूलों में होमवर्क को कम ही नहीं समाप्त ही कर देना चाहिए। स्कूल में पांच से छह घंटे की पढ़ाई के बाद भी घर में यदि बच्चों को केवल पढ़ाई तक ही सीमित रखा जाएगा तो इससे बच्चों का सर्वागीण विकास प्रभावित होना तय है।
स्कूल के बाद बच्चों को घरों में केवल वर्कशीट के अनुसार ही पढ़ाई करवाई जानी चाहिए। स्कूलों को बच्चों की किताबों को स्कूल में ही रख लेनी चाहिए। डॉ. सिद्धू ने कहा कि बच्चों पर केवल होमवर्क ही नहीं बैग का बोझ भी अत्याधिक पाया जा रहा है।
बच्चों के बैग तो उनके शरीर के भार से भी अधिक देखे जा रहे हैं। स्कूल प्रशासन को इस मामले पर गंभीरता से विचार कर इसका हल करना चाहिए। बच्चों को खेलों में शामिल करने की प्राथमिकता दी जाए, ताकि बच्चों पर पढ़ाई के बोझ को कम किया जा सके। मेरा मानना है कि बच्चों के समुचित विकास के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेल व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल करना चाहिए। इससे बच्चों में छिपी प्रतिभा को बेहतर ढंग से उभारा जा सकेगा।