20 साल से 15 किमी. साइकिल चला चिट्ठियां बांट रहीं बलजीत कौर
काम कोई भी छोटा या बढ़ा नहीं होता बल्कि सोच तो हमारी ही छोटी बड़ी बन जाती है।
जागरण संवाददाता, पटियाला : काम कोई भी छोटा या बढ़ा नहीं होता बल्कि सोच तो हमारी ही छोटी बड़ी बन जाती है। भले शुरुआत में हमें डाक बांटने के समय थोड़ी परेशानी झेलनी पड़ी और महसूस हुआ कि महिलाएं होने के बावजूद वे पुरुषों का काम करने के लिए फील्ड में जा रहीं हैं, लेकिन जब काम करना है तो शर्म क्या और डर किस बात का। इसी बात का हौसला रखा और चल पड़े डाक बांटने और वो सिलसिला आज भी जारी है । शहर की गली गली व मोहल्ले मोहल्ले में पैदल और साइकिल पर डाक बांटने वाली यह दोनों महिलाओं हर उस महिला के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं जो काम करने से हिचकिचाती हैं कि लोग क्या कहेंगे ।
कुछ इस तरह के अनुभव बांटे हैं शहर के घर घर जाकर डाक बांटने वाली बलजीत कौर व भिरांवा वाली ने । उन्होंने बताया कि वे अपने परिवार के किसी सदस्य के स्थान पर नौकरी पर नहीं आईं हैं बल्कि स्वैच्छा से इस पद पर नौकरी करनी चाही है। बलजीत कौर ने बताया कि वह 20 साल से शहर में 15 किलोमीटर तक रोजाना साइकिल चलती हैं और घर घर जाकर करीब 500 डाक बांटती हैं। उनमें से 100 के करीब ऐसे घर हैं जिनको नॉक करके उपभोक्ता के हस्ताक्षर भी करवाने होते हैं । पैदल चलने का कारण यह है कि शुरुआत में उन्होंने पैदल डाक बांटनी शुरु की थी और बाद में उनकी दिनचर्या बन गई कि जब तक वे पैदल नहीं चलती तब तक उनका शरीर तंदरुस्त नहीं रहता । भिरांवा वाली का कहना है कि उसने विवाह से पहले ही डाक बांटनी शुरु कर दी थी और विवाह के बाद भी डाक बांटने का सिलसिला जारी रखा था । अब उसे रिटायर हुए छह साल हो गए हैं लेकिन फिर भी उसने घर घर जाकर डाक बांटने का काम नहीं छोड़ा है । छह सालों से वो डाक विभाग के पास दिहाड़ी पर डाक बांटने का काम कर रही है । दोनो ही महिलाएं डाक बांटने से पहले स्टांप वैंडर का काम करती थीं और बाद में उन्होंने डाक बांटने का काम शुरु किया था ।