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गुरदासपुर सीट पर वर्चस्व कायम करने के लिए जाखड़ ने खेला तुरुप का पत्ता

संसदीय हलके में एक बार फिर से कांग्रेस का झंडा बुलंद करने के लक्ष्य से संसदीय हलके के प्रतिनिधि एवं पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ ने तुरुप का पत्ता खेलते हुए संसदीय हलके के दोनों जिलों की कमान दलितों के हाथ दी है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 12:48 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 12:48 AM (IST)
गुरदासपुर सीट पर वर्चस्व कायम करने के लिए जाखड़ ने खेला तुरुप का पत्ता

जासं, पठानकोट : संसदीय हलके में एक बार फिर से कांग्रेस का झंडा बुलंद करने के लक्ष्य से संसदीय हलके के प्रतिनिधि एवं पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ ने तुरुप का पत्ता खेलते हुए संसदीय हलके के दोनों जिलों की कमान दलितों के हाथ दी है। पठानकोट में 42 वर्षीय संजीव बैंस को जिला कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बना कर जाखड जहां उन्हें विस चुनाव में टिकट नहीं दिला पाने के कारण एडजेस्ट करने में सफल रहे हैं वहीं विस हल्का भोआ के विधायक जो¨गदर पाल को भी संकेत देने में सफल साबित हुए हैं कि पंजाब में वर्चस्व फिलहाल कैप्टन गुट का ही है। विधायक जो¨गद्र पाल को राज्य सभा सांसद प्रताप ¨सह बाजवा का खासमखास माना जाता है। इस हलके से संजीव बैंस भी टिकट के सशक्त दावेदार थे परंतु एन मौके पर वह टिकट से वंचित रह गए। कांग्रेस पार्टी में इस हलके से जिलाध्यक्ष कैप्टन के खास अनिल विज थे। विज का कार्यकाल पूरा हो चुका था। अटकलें यह भी थी कि विज को यह मौका दोबारा दिया जा सकता था परंतु पुत्र के विधायक होने के कारण उनसे यह पद लेकर उनके ही ग्रुप के संजीव बैंस को दे दिया गया।

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संसदीय हलके में लगभग पैंतालीस फीसद वोट दलितों एवं ईसाई वर्ग से संबंधित है। पठानकोट में यह सीट जहाँ दलितों को दी गई है वहीं गुरदासपुर जिले से अध्यक्ष बनने का मौका ईसाई भाईचारे को देकर कांग्रेस ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह दलितों और इसाइयों के सबसे ज्यादा करीब है।

पठानकोट से जिलाध्यक्ष बनने के लिए पूर्व प्रधान अनिल विज के अतिरिक्त बाजवा गरुप के जंग बहादुर वेदी भी दौड़ में थे। जिले की तीन विस सीटों में से भोआ के विधायक जो¨गद्र पाल और सुजानपुर में पार्टी के सक्रिय लीडर अमित मंटू यूँ तो संजीव बैंस के खिलाफ थे परंतु हाईकमान अंतत: बैंस के नाम पर ही सहमत हुई। बैंस के पिता किशन चंद बैंस 1992-97 के दौरान भोआ के विधायक रह चुके हैं। इसके बाद उन्हें साल 2009 में पठानकोट जिले का अध्यक्ष बनने का मौका भी मिला। बैंस परिवार पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्वनी कुमार के खास रहे हैं। अश्वनी कुमार इन दिनों संसदीय हलके में सक्रिय नहीं है परंतु अश्वनी गुट की हमेशा ही कैप्टन अम¨रदर के साथ नजदीकियां रही हैं। कुल मिलाकर कैप्टन गुट ने बैंस को जिले की कमान सौंप कर एक तीर से दो निशाने लगाए हैं। वह न केवल बाजवा गुट को पटकनी देने में सफल साबित हुए हैं बल्कि अश्वनी गुट को भी संतुष्ट कर पाने में सफल रहे हैं। जाहिर है कि जाखड़ का निशाना लोक सभा सीट पर है। इस उठा पटक से उन्हें कोई लाभ होगा या नहीं इसका पता तो चुनाव परिणाम ही बताएँगे परंतु इतना तय है कि पंजाब कांग्रेस के प्रधान फिलहाल अपने गुट को मजबूत करने में सफल हुए हैं।


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