अपनों ने ही कठिन बना दी जाखड़ के लिए फ्यूचर पॉलीटिक्स
हार के बाद काग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ की फ्यूचर पॉलीटिक्स कठिन हो गई है।
जासं, पठानकोट : हार के बाद काग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ की फ्यूचर पॉलीटिक्स कठिन हो गई है। गुरदासपुर हलके से पराजय के बाद काग्रेस के साथ ही जाखड़ के लिए व्यक्तिगत तौर पर इससे पार पाना बेहद कठिन होगा। पठानकोट में आशियाना खरीदने वाले सुनील जाखड़ आगे गुरदासपुर संसदीय हलके को ही अपनी राजनीतिक भूमि तय करते हैं या नहीं, यह सवाल भी अब उनके सामने होगा। लोकसभा चुनाव में राजनीति से अनजान सनी देयोल से पटकनी मिलने के बाद प्रदेश काग्रेस प्रधान की राहें अब आसान नहीं होंगी।
राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो सुनील जाखड़ के लिए पॉलीटिक्स काटों भरी रही है। वर्ष 2017 के विस चुनाव में उन्हें अपने ही गृहक्षेत्र अबोहर से करारी हार झेलनी पड़ी। जबकि, 2017 में गुरदासपुर के उपचुनाव में जाखड़ ने संगठन में अपनी पैठ से टिकट हासिल कर लिया। अपने गृहक्षेत्र से दूरदराज एवं बाहरी नेता होने पर भी जाखड़ ने भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाई थी। पर सवा साल के बाद उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद लोकसभा चुनाव को देखते हुए वह इस हलके में अपने पाव जमाने की तैयारी कर चुके थे। यही वजह थी कि फ्यूचर पॉलीटिक्स को देखते हुए पठानकोट में कोठी खरीदी और इसे अपना आशियाना बनाया। हालाकि, यह बात अलग रही कि इस कोठी में उनका स्थायी ठिकाना नहीं रहा और केवल पठानकोट दौरे में वह इसमें ठहरते रहे। आमतौर पर अपने इस आशियाने से दूरी के बावजूद इस क्षेत्र में लंबी राजनीतिक पारी खेलने की रणनीति तैयार कर चुके थे। इसके विपरीत लोकसभा के चुनाव परिणाम ने उनकी रणनीति को उलटकर रख दिया। पहले टिकट पाने और ग्राउंड लेवल का परिश्रम रंग नहीं ला सका। अपने नेता इस चुनाव में उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। उनके अपने घर के जिला पठानकोट में मतदाताओं ने बुरी तरह नकार दिया।
पठानकोट के तीनों विस हल्कों में वोटों के पिछड़ने का मार्जिन जाखड़ की हार के जनादेश में बदल गया। इसका सबसे बड़ा कारण स्थानीय काग्रेस नेताओं का संगठित न होना और अलग -अलग प्रचार करना रहा। पठानकोट, सुजानपुर और भोआ में काग्रेस का कैडर वोट भी जाखड़ के पक्ष में नहीं आया। अंदरखाते पार्टी आम जनता एवं अपने ही वर्करों को नहीं लुभा सकी।
इस बात का लाभ प्रतिद्वंद्वी भाजपा ने खूब उठाया और कैडर वोट को हासिल करने के साथ ही फैक्टर वोटर को भी अपने साथ ले गई। चुनाव प्रचार में जाखड़ ने पूरे संसदीय हल्के के साथ ही पठानकोट जिले में भी फोकस रखा। पर पार्टी के इस तरह की प्रदर्शन की किसी को उम्मीद तक नहीं थी। संगठन के तौर पर काग्रेस की रणनीति जिले में जिले में असफल रही। ऐसे में सुनील जाखड़ के लिए एक ऐस चुनौती बन गई है, जिससे निपटना उनके लिए सरल नहीं है। जबकि, संगठन और आला नेताओं के हल्कों में काग्रेस का लचर प्रदर्शन भी इसके लिए जिम्मेदार है।
अब सुनील जाखड़ के साथ ही स्थानीय काग्रेस नेता भी अपनी हार से बनी असहज स्थिति से निकलने में किस तरह की रणनीति अपनाते हैं, इस पर सभी की नजरें होंगी। खासकर जिले में इस हार से हतोत्साहित वर्करों को भी संभालना काग्रेस के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं है।
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