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स्मृति शेष : गांव कुंडे में मिल्खा सिंह की हुई थी शादी, पगडंडियों पर सुबह-सुबह लगाते थे दौड़

भारत के मशहूर एथलीट स्वर्गीय मिल्खा सिंह का पठानकोट के गांव कुडें फिरोजपुर के साथ गहरा रिश्ता रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 02:54 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 02:54 AM (IST)
स्मृति शेष : गांव कुंडे में मिल्खा सिंह की हुई थी शादी, पगडंडियों पर सुबह-सुबह लगाते थे दौड़
स्मृति शेष : गांव कुंडे में मिल्खा सिंह की हुई थी शादी, पगडंडियों पर सुबह-सुबह लगाते थे दौड़

बाबा मेहरा, तेजिद्र सांवल (नरोट मेहरा) : भारत के मशहूर एथलीट स्वर्गीय मिल्खा सिंह का पठानकोट के गांव कुडें फिरोजपुर के साथ गहरा रिश्ता रहा है। यहां उनके ससुराल थे। मिल्खा सिंह की पत्नी स्वर्गीय निर्मल कौर का परिवार पाकिस्तान के शेरपुरा में रहता था। आठ अक्टूबर 1938 को पाकिस्तान के शेरपुरा में ही निर्मल कौर का जन्म हुआ था। भारत-पाक विभाजन के वक्त उनके पिता मेहर चंद परिवार समेत पठानकोट के जिला कुंडा फिरोजपुर में आ गए। मेहर चंद की छह बेटियां व दो बेटे थे। छोटी बहन का देहांत हो गया था।

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कुंडा फिरोजपुर गांव में उन्होंने एक मुस्लिम अब्दुल की करीब 200 एकड़ जमीन ले ली और अपनी पाकिस्तान की संपत्ति उसके नाम कर दी। यह सभी भाई कुंडा फिरोजपुर में रहते थे। पिता मेहर चंद सिविल कोर्ट में सेशन जज थे। 1955 में निर्मल कौर भारत वालीबाल टीम के हिस्सा लेने के लिए श्रीलंका के दौरे पर भी गई, वहीं पर उनकी मुलाकात उड़न सिक्ख मिल्खा सिंह से हुई, जिसके बाद 1962 में दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया। गांववासियों का कहना था कि शादी से परिवार वाले नाराज थे। उन्होंने एक साल तक मिल्खा सिंह को अपना जमाई स्वीकार नहीं किया। उसके बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई और फिर उनका आना-जाना शुरू हो गया। मिल्खा सिंह लगातार चार साल तक आते-जाते रहे। करीब चार से पांच दिन तक वह गांव में रुकते थे। गांववासी करतार चंद्र बताते हैं कि मिल्खा सिंह उसी के हम उम्र के थे। वह उनके साथ कुश्ती व जोर अजमाइश किया करते थे। रोज सुबह उठ कर वह गांव में ही दौड़ लगाते थे। कभी-कभी तो गांववासी उनका मजाक भी उड़ाते थे ओर हंसी मजाक भी किया करते थे।

हंसमुख मिजाज के जाने जाने वाले मिल्खा सिंह लोगों से मजाक किया करते थे। इनको शिकार खेलने का बड़ा शौक था। वह करीब चार साल तक गांव में आते रहे और सभी लोगों से जरूर मिलते थे। निर्मल कौर करीब डेढ़ साल पहले गांव में आई थी। कुंडा गांव के सरपंच गुरनाम सिंह का कहना है कि हम लोग उस समय छोटे थे।

बुजुर्ग बताते हैं कि जब इनकी सास का देहांत नहीं हुआ उस समय वह मिल्ट्री में थे जिस कारण वह नहीं आ पाए, लेकिन हमेशा गांव के लोगों से बात करके जानकारी हासिल करते रहते थे। अब तो इस गांव में उनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं रहता है। साला सोम राज और देव राज सारी प्रापर्टी बेच कर चंडीगढ़ शिफ्ट हो चुके हैं।


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