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हमारी खामियों का अातंकियों ने उठाया फायदा, पठानकोट हमले को दिया अंजाम

एयरफाेर्स स्‍टेशन पर आतंकी हमले के बाद इसकी सुरक्षा पर कई सवाल उठ रहे हैं। इसके सुरक्षा मानकों की अनदेखी के कारण आतंकियों के इसके अंदर घुसने के कई रास्‍ते थे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 08 Jan 2016 05:32 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2016 10:13 AM (IST)
हमारी खामियों का अातंकियों ने उठाया फायदा, पठानकोट हमले को दिया अंजाम

अशोक नीर. पठानकोट। आतंकियों के एयरफाेर्स स्टेशन में घुसने के रास्ते आैर तरीके के लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं, कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। एयरपोर्ट के आसपास जांच करने पर पता चलता है कि यहां सुरक्षा मानकों की लिस कदर अनदेखी की गई है उससे अंदर घुसने और वहां की गतिविधियों पर नजर रखना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है।

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सेना की वर्दी में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने एसपी सलविंदर सिंह से छीनी गाड़ी को रात के घने अंधेरे में अकालगढ़ गांव के एक कच्चे रास्ते के एक किलोमीटर दूर एक खेत के कोने में खड़ी कर दी थी। इस खेत से एयर बेस स्टेशन मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है। जहां गाड़ी खड़ी की गयी थी उसके सामने ही एक अन्य कच्चे रास्ता है। इस रास्ते से बाहर निकलते ही गांव की लिंक रोड पर है।

नलवा नहर से जुड़ा ड्रेन।

सड़क के साथ बहने वाली नलवा नहर में एयर बेस स्टेशन के ड्रेनेज सिस्टम के दो बड़े 'होल' (आउटलेट) हैं। उसके बाहर लोहे के गेट हैं। इन आउटलेट्स से एयरबेस स्टेशन का ड्रेन नलवा नहर में गिरता है। वहां पर डेढ़ से दो फुट की जगह खाली छोड़ी हुई है।

अनुमान लगाया जाता है कि हो सकता है एसरफाेर्स स्टेशन तक पहुंचने के लए आतंकियों ने इस ड्रेन का इस्तेमाल किया हो। वे सूखे ड्रेन से भीतर प्रवेश करने के बाद वह उस तरफ पहुंच गए हों जहां से एयरबेस की चारदीवारी मात्र पचास मीटर की दूरी पर है।

नलवा नहर के इस तरफ कई सफेदे के पेड़ लगे हुए हैं। इनमें से कई सफेदे के पेड़ गिरे हुए है जिनका ऊपरी छोर चारदीवारी के ऊपर गिरा हुआ है। इन गिरे पेड़ों पर चढ़कर एयरफोर्स स्टेशन के अंदर कूद कर जाना ज्यादा मुश्किल नहीं लगता है। आतंकियों से नेशनल सिक्योरिटी गार्ड आैर गरुड़ कमांडो का मुकाबला इसी ड्रेन के साथ स्थित रिहायशी स्थलों में हुआ है।

दीवार के साथ ही लगे हैैं मिट्टी, रेत व ईंटों के ढेर

एयरफोर्स स्टेशन की दीवार से लगे ईंट व रेत के ढेर।

यही नहीं, नलवा नहर के साथ साथ स्थित एयर बेस स्टेशन की चारदीवारी के कई स्थानों पर मिट्टी के ढेर लगे हुए है। इनके ऊपर चढ़ कर 11 फुट की दीवार को फांदना मुश्किल काम नहीं है। अकाल गढ़ में रहने वाले एक युवक मंगल का कहना है कि रात का समय यहां पर कोई नाका या गश्त नहीं होती। आतंकवादियों को भीतर जाने के कई रास्ते थे।

नहर के निकट स्थित घर में तीन गोलियां लगी हैैं। इस घर में रहने वाली कविता ने बताया कि उसने देखा कि भीतर जहां सामने एयरफोर्स अधिकारियों व नौजवानों के घर हैं, जमकर गोलीबारी हो रही थी। यह घर ड्रेन के पास है और संभावना है कि आतंकवादी इसी के आसपास से भीतर घुसे थे।

दो दस्ते उज्ज दरिया के बाद हो गए अलग-अलग

सूत्रों के मुताबिक, रावी नदी के साथ सटे दरिया उज्ज के ऊबड़ खाबड़ रास्तों से भारत में प्रवेश करने के बाद आतंकवादी दरिया के किनारे स्थित गांवों की लिंक सड़कों से होते हुए एयरबेस स्टेशन का रास्ता खोज रहे थे। आतंकवादी दो गुटों में थे। एक गुट में दो व दूसरे गुट में चार आतंकवादी थे। उज्ज दरिया को पार करने के बाद दोनों गुट के आतंकवादी एक दूसरे से अलग अलग हो गए। दो आतंकी एयरबेस में पहले घुसे।

आतंकियों के साथ मुखबिर होने का भी शक

एसपी की गाड़ी छीन कर उनके अपहरण करने के बाद जिस प्रकार गाड़ी को अकाल गढ़ के खेत तक लाया गया है, उससे शक है कि आतंकियों के साथ मुखबिर भी था।

एयरफाेर्स स्टेशन की चारदीवारी के साथ बने घर सुरक्षा में छेद

एयरफोर्स स्टेशन की चारदीवारी से सटे मकान।

स्टेशन की चारदीवारी के साथ एक घर बिल्कुल सटा हुआ है। यह घर चारदीवारी से एक लगभग एक मंजिल ऊंचा है। कहीं आतंकी इस घर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने स्थित सीढिय़ों पर चढ़ कर लगभग डेढ़ फुट की दूरी फांद कर एयरबेस में तो नहीं गए थे, यह भी जांच हो रही है।

न सीसीटीवी कैमरे न इलेक्ट्रिक अलार्म

एयरबेस स्टेशन की सुरक्षा के लिए एयरफोर्स के अधिकारियों ने गंभीरता से कोई प्रयास नहीं किए थे। अब तो लोग घरों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरा व हाई अलार्म सिस्टम लगा रहे है। देश की सुरक्षा के अति महत्वपूर्ण क्षेत्र पठानकोट के इस एयरबेस स्टेशन के लगभग 25 किलोमीटर के क्षेत्र में सुरक्षा के लिए न तो सीसीटीवी कैमरे और न ही किसी व्यक्ति के चारदीवारी फांदने पर कोई अलार्म बजे ऐसा कोई प्रबंध नहीं था। जहां तक कि एयरबेस स्टेशन की चारदीवारी के साथ बनाए गए मचानों पर भी कोई एयरफोर्स का जवान तैनात नहीं था। अन्यथा आतंकवादियों को एयरबेस स्टेशन में प्रवेश करने से पहले ही ढेर किया जा सकता था।


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