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शिक्षा को राजनीतिक संकीर्णता से मुक्त रखा जाए

दुनिया में तेज रफ्तार से हो रहे बदलावों के चलते केंद्र सरकार द्वारा देश में नई शिक्षा नीति लागू करना सराहनीय कदम है। जिले के प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि यह नीति उसकी मूल भावना के साथ तभी लागू हो सकती है जब कि केंद्र सरकार के साथ-साथ सभी राजनैतिक दलों व नौकरशाही का भी सहयोग मिले।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 04:33 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 04:33 PM (IST)
शिक्षा को राजनीतिक संकीर्णता से मुक्त रखा जाए

जयदेव गोगा, नवांशहर : दुनिया में तेज रफ्तार से हो रहे बदलावों के चलते केंद्र सरकार द्वारा देश में नई शिक्षा नीति लागू करना सराहनीय कदम है। जिले के प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि यह नीति उसकी मूल भावना के साथ तभी लागू हो सकती है, जब कि केंद्र सरकार के साथ-साथ सभी राजनैतिक दलों व नौकरशाही का भी सहयोग मिले।

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सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल मूसापुर के पूर्व अध्यापक राजेश शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद से लेकर आज तक शिक्षा नीति में बदलावों को लेकर देश में हौसलाकुन माहौल नहीं बन पाया है। अब आई नई शिक्षा नीति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भेड़ चाल से मुक्ति का मार्ग बताया है। लेकिन इसे तभी अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, जबकि सभी राज्य सरकारें व नौकरशाही इसके लिए अपना पूरा-पूरा सहयोग दें।

हिदी अध्यापक दयानंद गांधी का मानना है कि देश की नई शिक्षा नीति को अंध विरोध और राजनैतिक संकीर्णता से बचाने की जरूरत है। यह नीति समय रहते उसकी मूल भावना के साथ लागू हो जानी चाहिए। यह केवल कागजों तक ही सिमट कर नहीं रह जानी चाहिए। सरकार द्वारा इन तत्वों को हतोत्साहित करने की जरूरत है। जिन्होंने अपनी संकीर्ण राजनीतिक के कारण नई शिक्षा नीति के खिलाफ मोर्चे खोल रखे हैं।

नवांशहर के पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी दिलबाग सिंह ने बताया कि नई शिक्षा नीति लागू करते समय सरकार को राज्य सरकारों के अलावा शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों और शिक्षकों का भी सहयोग लेना चाहिए। किसी को भी इस नई शिक्षा नीति का सूक्ष्म अध्ययन किए बिना उसके खिलाफ अपना बयान नहीं देना चाहिए। मनन और चितन के बाद ही त्रुटियों पर अंगुली रखी जा सकती है।

सीनियर सिटीजन हेमराज का कहना है कि नई शिक्षा नीति लागू करने से विलंब नहीं होना चाहिए। हालांकि अभी पाठ्यक्रम में सुधार करे की भी दरकार है। जोकि एक बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने है। स्कूलों में पांचवीं कक्षा तक स्थानीय भाषा में पढ़ाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हमें यह मालूम होना चाहिए कि घर पर बोली जाने वाली भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाकर बच्चों की नींव मजबूत होती है और सीखने की उनकी ललक भी बढ़ती है।


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