एग्जिट पोल को सही साबित करना कठिन
एग्जिट पोल मतदान के निर्णय को कितना प्रभावित करता है।
जयदेव गोगा, नवांशहर : एग्जिट पोल मतदान के निर्णय को कितना प्रभावित करता है। यह मुद्दा जिले के लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब पक्ष और विपक्ष के विभिन्न लोगों का मानना है कि कुछ एजेंसियां फेरबदल करके नतीजों को पेश करती हैं सकती हैं, जिससे किसी भी पार्टी उसे विजेता के रूम में पेश किया जा सके। साथ ही लोगों ने लगभग चार दशक से चलन में रहे एग्जिट पोल को सराहा भी। एडवोकेट एसएस कोहली ने बताया कि 23 मई एग्जिट पोल के अनुकूल रिजल्ट भी आएगा, यह बात तो उसी दिन की शाम तक पता चलेगी, लेकिन देश में 1980 में जब पहली बार एग्जिट पोल करपाए गए थे, तो सच्चाई के काफी करीब थे। एडवोकेट प्रदीप धीर ने बताया कि एग्जिट पोल की शुरुआत का श्रेय इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के मुखिया एरिक डी कोस्टा को जाता है। शुरुआती दिनों में ओपीनियन पोल जिस तेजी के साथ शुरु हुआ, उतनी ही तेजा से वह राजनीतिक दलों की आंखों की किरकिरी बनने लगा। 1999 के चुनाव आयोग ने बाकायदा एग्जीक्यूटिव आर्डर के तहत ओपीनियन पोल और एग्जिट पोल को प्रतिबंधित कर दिया। एक समाचार पत्रने आयोग के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इस आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि कोर्ट के पास ऐसे आर्डर जारी करने की शक्ति नहीं है और किसी मसले पर सर्वदलीय सर्वसम्मति उसके खिलाफ कानूनी प्रतिबंध का आधार नहीं होता है।
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