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शहर का कोई हिस्सा नहीं जहां बेसहारा पशु ना हो

शहर में बेसहारा पशु इतना बढ़ गया है कि हर कोई इसे देखकर घबरा जाता है। शहर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है जहां पर यह बेसहारा पशु घूमते हुए दिखाई न दें। कुछ हिस्सों में तो इनकी संख्या इतनी अधिक होती है कि लोग बाहर निकलने से भी घबराते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Jun 2020 10:43 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jun 2020 10:43 PM (IST)
शहर का कोई हिस्सा नहीं जहां बेसहारा पशु ना हो

वेद प्रकाश, श्री मुक्तसर साहिब : शहर में बेसहारा पशु इतना बढ़ गया है कि हर कोई इसे देखकर घबरा जाता है। शहर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है, जहां पर यह बेसहारा पशु घूमते हुए दिखाई न दें। कुछ हिस्सों में तो इनकी संख्या इतनी अधिक होती है कि लोग बाहर निकलने से भी घबराते हैं। जिला प्रशासन की ओर से इनका हल करने के लिए कुछ समय के लिए मुहिम भी चलाई गई थी, लेकिन यह बीस दिन के बाद ही ठप होकर रह गई। वैसे तो शहर की हर रोड पर बेसहारा पशु घूमते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन सबसे अधिक माल गोदाम रोड, सब्जी मंडी, बस स्टैंड के पास, बूड़ा गुज्जर रोड, गोनियाना रोड पर सबसे अधिक पशु होते हैं। अब तो कोटकपूरा रोड पर डीसी की रिहायश के पास भी बेसहारा पशुओं ने डेरा जमा रखा है।

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चार व्यक्तियों की हो चुकी है मौत

इन बेसहारा पशुओं के कारण चार व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। इनमें कोटकपूरा रोड बाइपास पर पंप के समक्ष जीप में बैठे अबोहर रोड के व्यक्ति को बेसहारा पशु ने घायल कर दिया था। इसकी उपचार के दौरान मौत हो गई थी। इसी तरह करीब एक वर्ष पहले नामदेव नगर के एक व्यक्ति की बेसहारा पशु की ओर से घायल करने के कारण मौत हुई थी। इसके अलावा अबोहर रोड पर दुकान खोलते समय बेसहारा पशु की ओर से पीछे से हमला कर देने के कारण दुकानदार की भी मौत हो चुकी है। बठिडा रोड नहरी कालोनी के पास भी टक्कर मार देने के कारण बरकंदी निवासी एक व्यक्ति की मौत हुई थी। जबकि घायलों की तो संख्या ही नहीं है। घायल की घटनाएं तो सप्ताह में एक दो होती ही रहती हैं।

हल करने को तैयार लेकिन मिले साधन

मुक्तिसर वेलफेयर क्लब के प्रधान जसप्रीत छाबड़ा का कहना है कि उन्हें यदि रिकवरी वैन मिले तो वह खुद अपने साथियों समेत बेसहारा पशुओं का हल करने को तैयार हैं। एडवोकेट कदंबनी अरोड़ा ने कहा कि प्रशासन इनका हल ही नहीं करना चाहता। यदि वह चाहे तो इसका हल हो सकता है, लेकिन वह गो सेस समेत अन्य पैसे को गाय पर खर्च ही नहीं रहा है। आधे विभागों को तो इसका ज्ञान ही नहीं है कि उनके पास गो सेस कहां से आता है।


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