झकझोर देता है इन बेटियों का दर्द, यह पता होता तो कभी पढ़ाई ही न करती
इन बेटियों का दर्द कई सवाल उठाती है। पेट्राेल पंपों पर कार्य करनेवाली युवतियों का कहना है कि यदि पता होता कि यह करने को मजबूर होना पड़ेगा तो कभी पढ़ाई-लिखाई नहीं करती।
श्री मुक्तसर साहिब, [शिवराज सिंह राजू]। इन बेटियों का दर्द झकझोर देता है और कई सवाल भी उठाती है। पेट्राेल पंपों पर कार्य करनेवाली युवतियों का कहना है कि यदि पता होता कि पढ़ाई करने के बाद भी यह कार्य करने को मजबूर होना पड़ेगा तो कभी पढ़ाई-लिखाई नहीं करती। वैसे, साथ ही वे यह भी कहती हैं कि यह कार्य करने में उनको कोई शर्म या हिचक नहीं है।
बीबीए पास और राष्ट्रीय स्तर की बॉस्केटबॉल खिलाड़ी सुखप्रीत कौर को पेट्रोल पंप पर वाहनों में तेल भरना पड़ रहा है। हालांकि है यह भी रोजगार, लेकिन वह इससे कतई संतुष्ट नहीं है। श्री मुक्तसर साहिब जिले के गिद्दड़बाहा गांव की सुखप्रीत कौर के अलावा 12 वीं पास परमजीत कौर भी पेट्रोल पंप पर काम कर रही हैं। दोनों ही अपने परिवार पर बोझ बनने के बजाय पेट्रोल पंप पर गाड़ियों में डीजल और पेट्रोल भरने के काम में पूरी शिद्दत से लगी हुई हैं।
सुखप्रीत बताती हैं कि मजदूरी करने वाले मेरे माता-पिता ने आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद मुङो खुशी-खुशी पढ़ाया। इसके अलावा खेलों में भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने पांचवीं कक्षा से बॉस्केटबॉल खेलना शुरू किया। बीबीए (बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) तक बॉस्केटबॉल में जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कई उपलब्धियां हासिल कीं।
सुखप्रीत ने कहा, हम पांच बहनें और एक भाई हैं। भाई और तीन बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है। छोटी बहन की पढ़ाई का खर्च और माता-पिता की जरूरतों को पूरा करने के लिए मैं पेट्रोल पंप पर काम करती हूं। मुझे इस काम के लिए वेतन के रूप में प्रति माह छह हजार रुपये मिलते हैं। किसी तरह गुजर हो रही है।
सुखप्रीत कौर कहती हैं, मैंने बीबीए की पढ़ाई और बॉस्केटबॉल में राष्ट्रीय स्तर तक शानदार प्रदर्शन किया। इतना कुछ करने के बाद भी पेट्रोल पंप पर काम करना पड़ेगा यह पता होता तो मैं पढ़ती ही नहीं। खेल में भी इतना मेहनत नहीं करती। वह कहती हैं, मुझे इस बात का दुख है कि इतनी मेहनत और इतनी लगन के बावजूद पढ़ाई और खेल में मिलीं सफलताएं मुझे एक संतोषजनक करियर तक नहीं दिला सकीं।
पेट्रोल पंप पर कार्य करतीं परमजीत कौर।
वहीं परमजीत कौर बताती है कि वह बारहवीं के बाद प्राइवेट तौर पर बीए कर रही हैं। परिवार वालों पर बोझ नहीं बनना चाहतीं, इसलिए पेट्रोल पंप पर काम कर रही हैं। ये तो हो गई पढ़ी-लिखी सुखप्रीत और परमजीत की बात। अबोहर की 19 वर्षीय तरुनप्रीत कौर भी घर का खर्च चलाने के लिए पेट्रोल पंप पर काम करती हैं। वह दसवीं तक ही पढ़ी हैं।
तरुनप्रीत कौर के पिता रिक्शा चलाते हैं। तरुनप्रीत के साथ ही 18 वर्षीय सिमरन भी पेट्रोल पंप पर काम कर रही हैं। सिमरन कहती हैं, जीविका चलाने के लिए पेट्रोल पंप पर काम करने में भला क्या बुराई है? कोई भी काम बुरा नहीं होता। उसे इस काम में न तो कोई हिचक है और न की शर्म।