चंद्रमा का उपछाया ग्रहण आज, नहीं होगा असर
श्री मुक्तसर साहिब उपछाया ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण ही होता है। इस साल पांच जून को होने वाले इस ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब
उपछाया ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण ही होता है। प्रत्येक चंद्र ग्रहण के घटित होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में अवश्य प्रवेश करता है और कई बार पूर्णिमा को, चंद्रमा उपछाया में प्रवेश कर, उपछाया शंकू से ही बाहर निकल आता है। इस उपछाया के समय चंद्रमा का बिम्ब केवल धुंधला पड़ जाता है। (ग्रहण की तरह) काला नहीं होता। इस धुंधलेपन को नंगी आंखों से देख पाना कठिन होता है, इसे ही उपछाया ग्रहण कहते हैं। मगर ग्रहण घटित होने पर पहले तथा बाद में चंद्रमा को पृथ्वी की उपछाया से गुजरना पड़ता है। इसलिए इसे ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। यह जानकारी सनातन धर्म प्रचारक प्रसिद्ध विद्वान ब्रह्माऋषि पं. पूरन चंद्र जोशी ने गांधी नगर में वीरवार को उपछाया ग्रहण की पूर्व संध्या पर दी।
पं. जोशी ने बताया कि इस बारे में मीडिया द्वारा इसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है, जबकि इससे ऐसा कुछ नहीं होगा। उन्होंने बताया कि उपछाया ग्रहण का भूलोक पर न कोई सूतक न ही 12 राशियों पर इसका कोई अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ता है। इस उपछाया ग्रहण में चंद्रमा की आकृति केवल थोड़ी सी धुंधली हो जाती है। इसलिए आप इस उपछाया को ग्रहण न मानते हुए सिर्फ पूर्णिमा का व्रत, दान, पूजा आदि कर सकते हैं।
इस साल भूलोक पर तीन उपछाया ग्रहण और दो कंकण सूर्य ग्रहण लगने हैं। पहला उपछाया ग्रहण 5/6 जून की रात्रि को को, दूसरा पांच जुलाई रविवार को भारत में अदृश्य तथा तीसरा ग्रहण 30 नवंबर को लगेगा। इन उपछाया ग्रहणों का भूलोक पर कोई अच्छा-बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
शुक्रवार को लगने वाला उपछाया ग्रहण रात्रि में 11:16 बजे शुरू होगा। 12:55 बजे रात्रि में पूर्ण चंद्रमा धुंधला दिखाई देगा और यह अगले दिन सुबह 2:34 बजे समाप्त होगा। इस साल घटित होने वाले असल ग्रहण दो ही हैं। जिनमें कंकण सूर्य ग्रहण 21 जून (रविवार) तथा दूसरा खग्रास सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर 2020 (सोमवार) को लगेगा।