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¨जदगी व्यतीत करने व जीने में अंतर : साध्वी

संवाद सहयोगी, श्री मुक्तसर साहिब दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से शहर के मलोट रोड पर विशाल नगर

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Apr 2018 06:05 PM (IST)Updated: Sun, 15 Apr 2018 06:05 PM (IST)
¨जदगी व्यतीत करने व जीने में अंतर : साध्वी

संवाद सहयोगी, श्री मुक्तसर साहिब

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दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से शहर के मलोट रोड पर विशाल नगर स्थित आश्रम में सत्संग करते हुए साध्वी कात्यायनी भारती ने कहा कि दरअसल ¨जदगी को व्यतीत करने और जीना में काफी अंतर होता है। शायद इस अंतर से ही जीवन कला का जन्म होता है। यदि आम भाषा में कहें तो जन्म के बाद मिले आर्थिक, समाजिक, राजनितिक और धार्मिक हालातों में जीना या फिर इन्हें अपने अनुसार बदलने की कोशिश करना है। कुछ लोग इस कोशिश को जीवन कला का नाम देते हैं। बहुत से लोग लकीर के फकीर होते हैं। परन्तु जो लोग लकीर से हट के कुछ करते है वो समाज में चमकता सितारा बनते हैं। इन दोनों ही हालातों में वह जीवन व्यतीत ही करते है। पर इतना जरुर है कि उनके ढंग में फर्क जरूर होता है। परंतु कुछ लोग सोचते है कि मानव जन्म लेता है और फिर मर जाता है ऐसा क्यों हो रहा है। इसके पीछे क्या कारण है। जो ऐसा सोचते है उनके अंदर जीवन को समझने की लालसा पैदा होती है, जो सच के साथ मिलने व जीवन कला को प्राप्त करने का साधन बनती है। जीवन कला के सही अर्थों को जानने के लिए ¨जदगी के मर्म को समझना जरूरी है। परंतु इसका सही और स्टीक उत्तर केवल पूर्ण गुरु द्वारा ही मिल सकता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में संगत भी मौजूद थी।


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