मां पार्वती को कहा जाता है शैल पुत्री
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा गांव दोदा में स्थित दुर्गा मंदिर में नवरात्रों के अवसर पर महामाई संकीर्तन का आयोजन किया गया।
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा गांव दोदा में स्थित दुर्गा मंदिर में नवरात्रों के अवसर पर महामाई संकीर्तन का आयोजन किया गया। इसमें परम वंदनीय सर्व श्री आशुतोष जी महाराज की शिष्या साध्वी सुमन भारती ने मां पार्वती जिन्हें शैल पुत्री कहा गया उनकी जीवन गाथाओं को प्रस्तुत कर बताया कि मां पार्वती जी ने जब अपने गुरदेव नारद की कृपा से अध्यात्म के मार्ग को जाना तब वो भगवान भोलेनाथ को प्राप्त करने के लिए घोर तप करती हैं। उस दौरान तारकासुर द्वारा तप को भंग करने के अनेकों प्रयास होते है, लेकिन वो मां की तपस्या को भंग नहीं कर पाया अर्थात मां ने अपने दिव्य कर्म के द्वारा मानव समाज को समझाया कि ए मानव तेरी जिदगी का लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति है क्योकि ईश्वर अराधना जब प्रांरभ होता है तो इसके पश्चात एक मानव की राष्टीय आराधना भी प्रांरभ होती है, यदि समाज को देखें अधिकतर लोग अपनी भारतीय संस्कृति को विस्मृत कर पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंग चुके है परन्तु हम भूल जाते है कि हमारी भारतीय संस्कृति बहुत महान है। चीनी में यदि मिठास नहीं उसे हम चीनी नहीं कह सकते। ठीक इसी प्रकार से यदि एक भारतीय नागरिक के ह्दय में भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण नहीं उसे हम भारतीय नागरिक कैसे कह सकते है। देश भक्तों को समर्पण उनकी कुर्बानियां, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को जिवंत करने के लिए भारती मां को कुर्बान कर दिया लेकिन प्रश्न करे एक नागरिक अपने आप से, क्या ऐसा जज्बा ऐसा प्रेम हमारे ह्दय में अपनी भारती मां के प्रति है यदि है तो आगे बढ़कर हम अपने देश को खोई हुई गरिमा पुन: लौटा दे।इसलिए धर्म के मार्ग का अनुसरण कर जिदगी को सर्व श्रेष्ठ बनाये। आखिर में वसुधा भारती एवं आंबला भारतीजी ने भजनों द्वारा मां की भेटों द्वारा मां के भक्तों को कृतार्थ किया।